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देश की आजादी के साथ आया था बंटवारे का बवंडर, रो रहा था दिल और आंखें थीं नम

उस दिन हर किसी के आंसू उलझन में थे। करें भी तो क्या एक ओर ट्रेन की बोगियों में लाशें भरी हुई निकल रही थीं तो दूजी ओर स्वाधीनता के जश्न को दिल्ली सजधज गई थी।

By JP YadavEdited By: Published: Sat, 11 Aug 2018 11:23 AM (IST)Updated: Sat, 11 Aug 2018 11:37 AM (IST)
देश की आजादी के साथ आया था बंटवारे का बवंडर, रो रहा था दिल और आंखें थीं नम
देश की आजादी के साथ आया था बंटवारे का बवंडर, रो रहा था दिल और आंखें थीं नम

नई दिल्ली (गौतम कुमार मिश्र)। एक तरफ बंटवारे की टीस थी तो दूसरी तरफ आजादी के तराने हर किसी के लबों पर सजे थे...उस दिन मानों बादलों को भी हिंदुस्तान की धरा पर होती इस हलचल की सुगबुगाहट थी। तभी तो 14 अगस्त की रात बदरा ऐसे बरसे थे...कि हर चेहरे से खुशी और गम के आंसुओं को अपने में सिमटा ले रहे थे...। जश्न के दिन यानी 15 अगस्त की भोर में ऐसी अनुभूति हो रही थी कि दिल्ली की हर धरोहर...धरा...पेड़- पौधे सभी नहा धोकर आजादी का जश्न मनाने को उत्सुक हैं।  

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एक आंख बंटवारे के दर्द में नम थी तो दूजी

हर किसी की आंखें आजादी की चमक से गीली थी। उस दिन हर किसी के आंसू उलझन में थे। करें भी तो क्या एक ओर ट्रेन की बोगियों में लाशें भरी हुई निकल रही थीं तो दूजी ओर स्वाधीनता के जश्न को दिल्ली सजधज गई थी। चांदनी चौक, इंडिया गेट, रायसीना रोड सभी जगह ये किसी ने सोचा भी नहीं था कि आजादी की कीमत इतनी लाशों से चुकानी होगी। बंटवारे का दर्द हर किसी के चेहरे पर साफ दिख रहा था। लेकिन अपने वतन में सांस लेने की आजादी भर से मन उत्साह से भर जाता था। आने वाले स्वर्णिम कल की कल्पना मात्र से ही मन प्रसन्न हो जाता था।

एक सप्ताह मना जश्न

मूसलाधार बारिश के बाद संसद भवन के बाहर हजारों की तादाद में लोग आजादी की घोषणा के ऐतिहासिक पल का गवाह बनने के लिए खड़े थे। जो संसद भवन आज सुरक्षा से बिंधा रहता था। जहां र्पंरदा भी बगैर अनुमति के पर नहीं मार सकता उसी संसद भवन की दीवारों पर सड़कों पर गलियारों में चारों ओर आजादी की छटपटाहट कौतुहलता से इधर-उधर भाग रही थी। वहीं पूरे कनॉट प्लेस को तिरंगे से सजाया गया था। तब आगामी एक सप्ताह तक दिल्ली जश्न में डूबी रही थी। कहीं गीत-संगीत पर लोग नृत्य कर रहे थे तो कहीं युवाओं, महिलाओं के दल देशभक्ति गीतों से आजादी के माहौल को और अधिक गौरवान्वित कर रहे थे। कहीं दुकानों पर मुफ्त सामान मिल रहे थे तो कहीं सांस्कृतिक आयोजन से अभिव्यक्ति की जा रही थी। प्रभात फेरी के जरिए छोटे बच्चे अपनी खुशी का इजहार कर रहे थे। भारत के कोने-कोने से लोग इस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनने आए थे।

12 बजे हुआ शंखनाद

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 14 अगस्त 1947 की आधी रात को जो भाषण दिया था उसे ट्रिस्ट विद डेस्टिनी के नाम से जाना जाता है। नेहरू के सचिव रहे एमओ मथाई अपनी किताब रेमिनिसेंसेज ऑफ नेहरू एज में लिखते हैं कि जब नेहरू के पीए ने भाषण टाइप करके मथाई को दिया तो उन्होंने देखा कि नेहरू ने एक जगह ‘डेट विद डेस्टिनी’ मुहावरे का इस्तेमाल किया था। मथाई ने रॉजेट का इंटरनेशनल शब्दकोश देखने के बाद उनसे कहा कि ‘डेट’ शब्द इस मौके के लिए सही शब्द नहीं है क्योंकि अमरीका में इसका आशय महिलाओं या लड़कियों के साथ घूमने के लिए किया जाता है। उन्होंने डेट की जगह रान्डेवू या ट्रिस्ट शब्द का इस्तेमाल करने की सलाह दी। नेहरू ने एक क्षण के लिए सोचा और अपने हाथ से टाइप किया हुआ डेट शब्द काट कर ट्रिस्ट लिखा। नेहरू के भाषण का वो आलेख अभी भी नेहरू संग्रहालय के पुस्तकालय में सुरक्षित है। 14 अगस्त की रात 11 बजकर 55 मिनट पर संसद के सेंट्रल हॉल में नेहरू ने यह भाषण पढ़ा। जैसे ही घड़ी में रात के बारह बजे शंख बजने लगा। हॉल में मौजूद लोगों की आंखों से आसूं बह रहे थे। वहीं संसद भवन के बाहर मूसलाधार बारिश में हजारों की तादाद में लोग खड़े थे। जैसे ही नेहरू संसद भवन से बाहर निकले मानों हर कोई उन्हें घेर लेना चाहता था।

सड़कों पर उमड़ा सैलाब

15 अगस्त के दिन सड़कों पर मानों लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा। शाम पांच बजे इंडिया गेट के पास प्रिंसेज पार्क में माउंटबेटन को भारत का तिरंगा झंडा फहराना था। इतिहासकार कहते हैं माउंटबेटन के सलाहकारों का ऐसा अनुमान था कि इस उत्सव में 30 हजार लोग शामिल होंगे। लेकिन उस दिन छह लाख लोग इकट्ठा हुए थे। ऐसा कहा जाता है कि भारत के इतिहास में तब एक साथ एक समय में इतने लोग कभी एकत्रित नहीं हुए थे। माउंटबेटन की बग्घी के चारों ओर लोगों का इतना हुजूम था कि वो उससे नीचे उतरने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे।

नेहरू लोगों के सिरों पर पैर रखकर पहुंचे थे

माउंटबेटन की 17 वर्षीय बेटी पामेला भी दो लोगों के साथ उस समारोह को देखने पहुंचीं थीं। अपनी किताब इंडिया रिमेंबर्ड में वो लिखती हैं कि नेहरू लोगों के सिरों पर पैर रखते हुए किसी तरह मंच पर पहुंचे थे। हालांकि बग्घी में बैठे माउंटबेटन नीचे नहीं उतर पा रहे थे। उन्होंने वहीं से चिल्लाकर नेहरू से कहा-लेट्स होएस्ट द फ्लैग’। जिसके बाद तिरंगा झंडा फहराया गया।

दिवाली थी दिल्ली में

वहीं कृष्णा सोबती ने अपने प्रथम स्वतंत्रता समारोह संबंधी कलेक्शन में लिखा है कि दिल्ली में मानों दीवाली हो। हर घर को सजाया गया था। कनॉट प्लेस में लोगों का हुजूम उत्सव के लिए उमड़ा था। हर आयु वर्ग के लोगों का मुंह गुलाब जामुन, लड्डू, मोतीचूर लड्डू, कलाकंद, बेसन की तुकरियान, पेठा, बालूशाही, हलवा-पूरी खिलाकर मीठा करवाया जा रहा था। तांगों पर बैठकर लोग चांदनी चौक पहुंच रहे थे।


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