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न तो जोहड़ बचे और न ही रह गए हैं शाही हाथी, बची है सिर्फ वो मीनार...

हस्तसाल के बुजुर्गों का कहना है कि हाथी वहीं रहेंगे जहां पानी और जंगल होगा। इस जगह पर दोनों की कमी नहीं थी।

By Amit MishraEdited By: Published: Sun, 17 Jun 2018 03:21 PM (IST)Updated: Sun, 17 Jun 2018 03:44 PM (IST)
न तो जोहड़ बचे और न ही रह गए हैं शाही हाथी, बची है सिर्फ वो मीनार...
न तो जोहड़ बचे और न ही रह गए हैं शाही हाथी, बची है सिर्फ वो मीनार...

नई दिल्ली [गौतम कुमार मिश्रा]। दिल्ली का हस्तसाल गांव। कभी इस इलाके में बड़े-बड़े तालाब हुआ करते थे। मुगल काल में इन तालाबों में शाही हाथियों का झुंड घंटों मस्ती करता था। सैनिक इन हाथियों पर दूर से नजर रख सकें इसके लिए बकायदा एक मीनार बनाई गई थी। वक्त बदला, माहौल बदला। अब हाथी तो रहे नहीं, तालाब भी बचे नहीं, रह गई है तो सिर्फ वह मीनार।

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मिट गया तालाबों का अस्तित्व

दिल्ली के हस्तसाल गांव व आसपास के इलाके में तालाब बहुतायत में होते थे, लेकिन शहरीकरण व दूरदर्शिता के अभाव में कई तालाबों के अस्तित्व या तो मिट गए या इसके संकट से जूझ रहे हैं। हस्तसाल के बुजुर्गों का कहना है कि हाथी वहीं रहेंगे जहां पानी और जंगल होगा। इस जगह पर दोनों की कमी नहीं थी। आज का नजफगढ़ नाला कभी साहिबी नदी तंत्र का एक हिस्सा हुआ करता था। हस्तसाल गांव के पास साहिबी का डूब क्षेत्र हुआ करता था। गांव में कई जोहड़ (तालाब) हुआ करते थे। पानी में चौड़ी पत्ती वाली पटेरा घास होती थी। हाथी इन्हें बड़े चाव से खाते थे।

सैनिक हाथियों पर नजर रखते थे

हस्तसाल के आसपास स्थित बुढेला, केशोपुर, रजापुर खुर्द, नवादा गांव में भी कई जोहड़ थे। थोड़ा आगे जाएं तो ककरौला, मटियाला गांव में भी कई जोहड़ थे। इसी खासियत के कारण यहां शाही हाथियों को लाया जाता था। हस्तसाल गांव में बकायदा मीनार बनाई गई थी, जिसकी ऊपरी मंजिल पर खड़े होकर सैनिक हाथियों पर नजर रखते थे। आसपास घने जंगल होने के कारण यहां जानवर भी खूब होते थे। कई लोग तो इस मीनार को शाहजहां के शिकार से भी जोड़ते हैं। उनके अनुसार मीनार से शाहजहां अपने शिकार पर नजर रखता था और मौका मिलते ही उन्हें मार देता था।

बचे जोहड़ भी खत्म, दिखता है शहरीकरण का असर

हस्तसाल, नवादा, बुढेला, केशोपुर सहित आसपास के गांवों में जोहड़ अब शहरीकरण की भेंट चढ़ चुके हैं। बचे जोहड़ भी खत्म होने के कगार पर हैं। बुढेला गांव के जोहड़ को मिट्टी से भर दिया गया है। पश्चिमी व दक्षिणी पश्चिमी जिला में बचे अधिकतर जोहड़ों में या तो अब सूखी मिट्टी नजर आती है या फिर गंदा पानी। हस्तसाल, नवादा से थोड़ा दूर जाएं तो उपनगरी में जोहड़ों का अस्तित्व करीब-करीब समाप्त है। हालांकि अतिक्रमण से बचाने के लिए इनकी चारदीवारी जरूर कर दी गई है। दिल्ली देहात में भी अधिकतर जोहड़ों का बुरा हाल है।

देखरेख का है अभाव

बचे जोहड़ों की देखरेख पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। धीरे-धीरे इन जोहड़ों पर गाद जमा होती जा रही है। इसके अलावा कई जगह जोहड़ों में मलबा या अन्य ठोस कचरा धड़ल्ले से डाला जा रहा है। जोहड़ में बरसाती पानी पहुंचे, इसके लिए जलग्रहण क्षेत्र में नालियों की सही तरीके से सफाई नहीं होती है। कई जगह बरसाती नालियों को सीधे सीवर लाइन से जोड़ दिया गया है।

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