IIT-गांधीनगर का खुलासा, 20 साल में तीन गुना बढ़ा आग का खतरा, वजह भी बताई
आजकल कागजी काम की जगह डिजिटलाइजेशन हो रहा है। ऐसे में सेल्युलोज का स्थान प्लास्टिक ने ले लिया है जो कि उससे भी ज्यादा ज्वलनशील है।
नई दिल्ली (आइएसडब्ल्यू)। अंधाधुंध विकास ने मनुष्य के लिए खतरे भी बढ़ा दिए हैं। भारतीय प्रोद्यौगिकी संस्थान (आइआइटी), गांधीनगर के कर्ताओं ने एक अध्ययन में बताया है कि भारत में बन रहे आधुनिक भवन और इमारतों में 1990 के मुकाबले आग का खतरा तीन गुना बढ़ गया है। यह सब घर और ऑफिस में सुख-सुविधाओं वाली जीवनशैली और सामाजिक आर्थिक बदलाव का परिणाम है।
कर्ताओं का कहना है कि आजकल के भवनों और इमारतों में जिस प्रकार छतों, पार्टीशन और दरवाजों के लिए प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है, वह खतरनाक है। इसके अलावा इंटीरियर डेकोरेशन में प्रयोग होने वाले आइटम, वाशिंग मशीन, रेफ्रिजरेटर, एयर-कंडीशनर, मोबाइल, टीवी जैसी चीजों ने हमारा जीवन भले आसान किया हो, लेकिन भवनों में आग का खतरा बढ़ा दिया है। इनमें अधिकतर चीजें ऐसी हैं जो ज्वलनशील पदार्थाें से बनी हैं।
आजकल कागजी काम की जगह डिजिटलाइजेशन हो रहा है। ऐसे में सेल्युलोज का स्थान प्लास्टिक ने ले लिया है जो कि उससे भी ज्यादा ज्वलनशील है।
105 भवनों का किया सर्वे
कर्ताओं ने अहमदाबाद में 105 ऑफिस और विभिन्न छात्रवासों के 202 छात्रों पर सर्वे में पाया कि औसत अग्नि वहन ऊर्जा घनत्व 1400 मेगा जूल प्रति वर्गमीटर पाया गया। यह 20 साल पहले कानपुर में हुए सर्वे (487 मेगा जूल/वर्गमीटर) के मुकाबले यह तीन गुना जयादा है। इसके अलावा आग लगने के पहले घंटे में होने वाले तापमान की मात्रा भी पहले के मुकाबले काफी अधिक है।
आइआइटी गांधीनगर के सहायक प्रोफेसर गौरव श्रीवास्तव और छात्रा नसार अहमद खान का कहना है कि वर्तमान में भारत में 1970-80 से चले आ रहे आग से सुरक्षा के मानकों के पुनरावलोकन की आवश्यकता है। गौरव श्रीवास्तव का कहना है कि किसी बिल्डिंग की आग से सुरक्षा इस बात पर निर्भर करती है कि उसके निर्माण में प्रयोग हुई चीजों का तापमान क्रांतिक तापमान के नीचे रहे। ऐसे वर्तमान में भवन निर्माण में प्रयोग हो रही चीजों की दोबारा रेटिंग की आवश्यकता है। निर्माण में प्रयोग होने वाला सेल्युलोज मैटीरियल का जलने वाले पदार्थाें में से सबसे ज्यादा हिस्सा होता है। इसके बाद प्लास्टिक, कपड़े और चमड़े का सामान है। घरों में कपड़े की मात्रा प्लास्टिक और चमड़े के सामान से अधिक पाई जाती है।