सिख विरोधी दंगों से ज्यादा भयावह था 1984 का ये कांड, हुई थीं दोगुनी मौतें, आज भी है असर
वर्ष 1984 आजाद भारत का सबसे काला वर्ष माना जाता है। इस वर्ष में तीन ऐसी बड़ी दुर्घटनाएं हुईं, जिसका दंश आज भी लोग झेल रहे हैं। इस वर्ष भारत ने कुछ बड़ी उपलब्धियां भी हासिल की थीं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। 1984 के सिख विरोधी दंगों में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को सोमवार को सजा सुनाए जाने के बाद एक बार फिर आजाद भारत के इस बदनुमा वर्ष की यादें लोगों के जेहन में ताजा हो गई हैं। 1984 केवल सिख विरोधी दंगों के लिए ही नहीं बल्कि इतिहास की कई ऐसी बड़ी दुर्घटनाओं के लिए जाना जाता है, जिसका दंश देशवासी अब भी झेल रहे हैं।
अब भी लोग उन हादसों को याद कर सहम उठते हैं। इस वर्ष में हुई दुर्घटनाओं को इतिहास में कभी भुलाया नहीं जा सकता। 1984 में हुई दुर्घटनाओं में 20 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। हालांकि इस वर्ष भारत को कुछ उपलब्धियां भी मिलीं, लेकिन आसुंओं के सैलाब ने खुशियों के उन पलों को डुबो दिया था। हम आपको 1984 में हुई कुछ बड़ी घटनाओं से रूबरू कराते हैं।
पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री
02 अप्रैल 1984 को स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा, मिशन सोयूज टी-11 के तहत अंतरिक्ष जाने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री बने थे। वह आठ दिन तक अंतरिक्ष में रहे थे। ये अंतरिक्ष मिशन, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और सोवियत संघ के इंटरकॉसमॉस कार्यक्रम का एक संयुक्त अंतरिक्ष अभियान था। राकेश शर्मा उस वक्त भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन लीडर और विमान चालक थे। इस उड़ान में उन्होंने साल्युत-7 अंतरिक्ष केंद्र में उत्तरी भारत की फोटोग्राफी की गुरुत्वाकर्षण हीन योगाभ्यास किया था। इस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राकेश शर्मा से पूछा था कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है। इस पर राकेश शर्मा ने कहा था, ‘सारे जहां से अच्छा’।
बिना ऑक्सीजन एवरेस्ट पर चढ़ने का रिकॉर्ड
09 मई 1984 को भारतीय शेरपा फू दोरजी ने बिना ऑक्सीजन के माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने में सफलता पाई। ऐसा करने वाले वह दुनिया के पहले पर्वतारोही बने थे।
एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला
23 मई 1984 को भारत की बछेन्द्री पाल दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट को फतह करने वाली पहली भारतीय महिला और दुनिया की पांचवी महिला बनीं थीं।
ऑपरेशन ब्लू स्टार
1984 में पंजाब को भारत से अलग करने के लिए खालिस्तान की मांग जोर पकड़ चुकी थी। खालिस्तानी आतंकी भिंडरावाले के आतंक से पंजाब लहुलुहान हो चुका था। उसने सिखों के पवित्र धर्म स्थल स्वर्ण मंदिर (गोल्डन टेंपल) के अकाल तख्त पर कब्जा कर लिया था। पंजाब को आतंक से मुक्त करने और स्वर्ण मंदिर को आतंकियों से छुड़ाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वहां सेना भेज दी। 5 जून 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत सेना ने स्वर्ण मंदिर को आतंकियों से मुक्त कराने के लिए ऑपरेशन शुरू किया। इस दौरान तोपों का भी प्रयोग किया गया। अगले दिन 6 जून की सुबह तक सेना ने स्वर्ण मंदिर में छिपे खालिस्तानी आतंकी भिंडरावाले को मार गिराया। इस ऑपरेशन में अकाल तख्त को भी भारी नुकसान पहुंचा था। सिखों के मन में अकाल तख्त को हुए इस नुकसान का दर्द आज भी है। पूरे ऑपरेशन में भारतीय सेना के 83 सैनिक मारे गए थे और 248 अन्य सैनिक घायल हुए। इसके अलावा 492 अन्य लोगों की मौत की पुष्टि हुई और 1,592 लोगों को हिरासत में लिया गया था।
सिख विरोधी दंगे
इंदिरा गांधी की हत्या को, पांच माह पूर्व पंजाब में चलाए गए ऑपरेशन ब्लू स्टार के बदले के तौर पर भी देखा जाता है। 31 अक्टूबर साल 1984 को प्रधानमंत्री निवास गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा था। देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की दिनदहाड़े गोलियां बरसाकर हत्या कर दी गई थी। हत्या उन्हीं के दो सिख अंगरक्षकों ने की थी। इसके बाद पूरे देश में सिख विरोधी दंगों की आग फैल गई। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में वो खूनी खेल खेला गया, जो आजादी के बाद कभी नहीं हुआ था। अकेले दिल्ली में ही तकरीबन 3000 सिख बेरहमी से मारे गए थे। पूरे देश में दंगे में मारे गए सिखों का आंकड़ा लगभग 10 हजार था। नालियों से लेकर सड़कों और चौराहों पर मासूम सिखों के जले और कटे हुए शव फैले पड़े थे। उनकी बेटियों, बीवी और बुजुर्ग माताओं के साथ दुष्कर्म किया गया था। उनकी संपत्तियां लूट ली गईं। दर्जनों गुरुद्वारों में तोड़फोड़ की गई या जला दिए गए। देश भर में हजारों करोड़ रुपये की संपत्ति इस दंगे की भेंट चढ़ गई थी।
भोपाल गैस त्रासदी
3 दिसम्बर 1984 को भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से मिथाइल आइसो साइनाइट (मिक) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। इसमें करीब 8000 से ज्यादा लोगों की मौत, दो सप्ताह के अंदर ही हो गई थी। वहीं बाद में इलाज के दौरान भी लगभग 8000 लोगों की मौत हुई थी। हजारों लोग शारीरिक अपंगता और अंधेपन का शिकार हुए थे। माना जाता है कि आज भी इस हादसे की वजह से भोपाल में विकलांग बच्चे पैदा होते हैं। इस हादसे के बाद कंपनी का टनों जहरीला कचरा, वहीं पर रखा हुआ है, जिसका अब तक निस्तारण नहीं किया जा सका है।