नई दिल्ली, विवेक तिवारी । जलवायु परिवर्तन के चलते गर्मी और असमय बारिश लगातार बढ़ रही है। मौसम में इस बदलाव से खेती और जमीन की उर्वरा शक्ति पर भी असर पड़ रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर अलग अलग प्रजाति के पेड़ लगा कर वन विविधता बढ़ाई जाए तो जमीन को और अधिक उपजाऊ बनाया जा सकता है। साथ ही, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को भी कम किया जा सकता है। कनाडा के नेशनल फॉरेस्ट इन्वेंटरी डेटा का अध्ययन करने पर वैज्ञानिकों ने पाया कि वन विविधता को संरक्षित करने पर जमीन की उर्वरता बढ़ती है। डेटा मॉडल पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि अलग तरह के पेड़ लगाने पर जमीन में नाइट्रोजन और कार्बन की मात्रा तेजी से बढ़ती है। इसके चलते जमीन अधिक उपजाऊ हो जाती है।

अध्ययन के मुताबिक वन विविधता बनाए रखने पर मिट्टी में एक दशक में कार्बन का भंडारण 30 से 32 फीसदी और नाइट्रोजन का 42 से 50 फीसदी तक बढ़ जाता है। कनाडा के न्यू ब्रंसविक विश्वविद्यालय के वानिकी और पर्यावरण प्रबंधन संकाय के प्रोफेसर एंथनी आर टेलर के मुताबिक इस अध्ययन में राष्ट्रीय वन सूची में शामिल सैकड़ों भूखंडों के डेटा का विश्लेषण किया गया है ताकि प्राकृतिक वनों में पेड़ों की विविधता और मिट्टी के कार्बन और नाइट्रोजन में परिवर्तन के बीच संबंधों की जांच की जा सके। पेड़ों की ज्यादा विविधता वाले क्षेत्रों की मिट्टी में कार्बन और नाइट्रोजन का अधिक संचय पाया गया। यूएस इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में पोस्ट डॉक्टरल एक्सचेंज फेलो और पोस्टडॉक्टोरल अध्ययन की प्रमुख लेखक शिनली चेन कहती हैं, आज जलवायु परिवर्तन के इस दौर में इस अध्ययन के परिणाम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की राह दिखाते हैं। हमारे नतीजे बताते हैं कि पेड़ों की विविधता को बढ़ावा देने से न केवल जमीन की उपज क्षमता में वृद्धि होती है बल्कि जलवायु परिवर्तन के असर को भी कम किया जा सकता है।

इस तरह मिलती है जलवायु परिवर्तन से राहत

अलग अलग तरह के प्रदूषण के चलते हवा में कार्बन डाई ऑक्साइड गैस की मात्रा लगातार बढ़ रही है। तापमान बढ़ने का एक बड़ा कारण ये गैस है। पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण के जरिए हवा में मौजूद कार्बन डाई ऑक्साइड गैस को अवशोषित कर लेते हैं। मिट्टी में कार्बन को फिक्स करने में पेड़ों की महत्वपूर्ण भूमिका है। वैज्ञानिकों के मुताबिक मिट्टी पौधों की तुलना में कम से कम तीन गुना अधिक कार्बन संग्रहीत करती हैं। हवा में इस कार्बन के कम होने से गर्मी भी कम होती है। अध्ययन के मुताबिक वन विविधता बनाए रखने पर मिट्टी में एक दशक में कार्बन का भंडारण 30 से 32 फीसदी तक और नाइट्रोजन का भंडारण 42 से 50 फीसदी तक बढ़ जाता है। इससे जमीन ज्यादा उपजाऊ हो जाती है।

पराली जलाने से भी घटता है कार्बन

रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी के कुलपति डॉक्टर एके सिंह कहते हैं कि किसान पराली जला कर अपने खेतों को बंजर बना रहे हैं। मिट्टी के लिए ऑर्गेनिक कार्बन बेहद जरूरी है। अगर मिट्टी में इसकी कमी हो जाए तो किसानों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले केमिकल फर्टिलाइजर भी काम करना बंद कर देंगे। अच्छी फसल के लिए मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन होना बेहद जरूरी है। मिट्टी में अगर ऑर्गेनिक कार्बन 5 फीसदी से ज्यादा है तो अच्छा है। लेकिन पिछले कुछ सालों में देश के कई हिस्सों में मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा 0.5 फीसदी पर पहुंच गई जो बेहद खतरनाक स्थिति है। सिंह कहते हैं कि अगर किसान इस बात को समझ जाएं तो इससे उनकी आय तो बढ़ेगी ही उनके खेतों में भी हरियाली बढ़ेगी।

मिट्टी में इसलिए जरूरी है कार्बन

ऑर्गेनिक कार्बन व सल्फर मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म तत्व होते हैं। इन्हीं से पौधों का विकास होता है। इनकी कमी से पौधे विकसित नहीं होते, उनमें रोगों से लड़ने की क्षमता भी कम हो जाती है और पत्ते पीले पड़ने लगते हैं। मिट्टी में अगर इसकी मात्रा 0.5% फीसदी से कम हो तो ऐसे इलाके मरुस्थल या बंजर होने लगते हैं। मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा 12 से 18 फीसदी है तो उसे ऑर्गेनिक सॉयल कहा जाता है। इस तरह की मिट्टी वेटलैंड या बाढ़ वाले इलाकों में बाढ़ के जाने के बाद मिलती है। इस तरह की मिट्टी में कोई भी फसल लगाने पर केमिकल फर्टिलाइजर की जरूरत नहीं पड़ती है।

ये कहती है रिपोर्ट

कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश भर से लिए गए 3.4 लाख सैंपल की जांच में पाया गया कि देश के 67 फीसदी हिस्से में मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की कमी है। खास तौर पर पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की कमी है।