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नहीं रहे हिंदी साहित्य जगत के प्रखर आलोचक नामवर सिंह, कल रात ली आखिरी सांस

पिछले दिनों नामवर सिंह दिल्ली के अपने घर में गिर गए थे, जिसके बाद उनके सिर में चोट लगी और उनको एम्स के ट्रामा सेंटर में भर्ती करवाया गया था।

By JP YadavEdited By: Published: Wed, 20 Feb 2019 07:44 AM (IST)Updated: Wed, 20 Feb 2019 08:52 AM (IST)
नहीं रहे हिंदी साहित्य जगत के प्रखर आलोचक नामवर सिंह, कल रात ली आखिरी सांस
नहीं रहे हिंदी साहित्य जगत के प्रखर आलोचक नामवर सिंह, कल रात ली आखिरी सांस

नई दिल्ली, जेएनएन।  हिंदी आलोचना के शिखर पुरुष नामवर सिंह नहीं रहे। मंगलवार की रात 11.52 पर दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में उन्होंने अंतिम सांस ली। पिछले दिनों नामवर सिंह दिल्ली के अपने घर में गिर गए थे जिसके बाद उनके सिर में चोट लगी और उनको एम्स के ट्रामा सेंटर में भर्ती करवाया गया था।

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28 जुलाई, 1926 को तत्कालीन बनारस जिले के जीयनपुर गांव में नामवर सिंह का जन्म हुआ था। नामवर सिंह ने अपने लेखन की शुरुआत कविता से की और 1941 में उनकी पहली कविता ‘क्षत्रियमित्र’ पत्रिका में छपी।

1951 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एमए करने के दो साल बाद वहीं हिंदी के व्याख्याता नियुक्त हुए। 1959 में चकिया चंदौली से कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव हारने बाद बीएचयू से अप्रिय परिस्थितियों में नौकरी छोड़नी पड़ी और उसके बाद सागर विश्वविद्यालय में कुछ दिन नौकरी की।

1960 में बनारस लौट आए। फिर 1965 में जनयुग साप्ताहिक के संपादन का जिम्मा मिला। 1971 में नामवर सिंह को कविता के नए प्रतिमान पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। 1974 में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नियुक्त हुए और वहीं से 1987 में सेवा-मुक्त हुए।

नामवर सिंह एक प्रखर वक्ता भी थे। बकलम खुद, हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योगदान, आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियांष छायावाद, पृथ्वीराज रासो की भाषा, इतिहास और आलोचना, नई कहानी, कविता के नए प्रतिमान, दूसरी परंपरा की खोज उनकी प्रमुख कृतियां हैं। 

लेखक नामवर सिंह के निधन पर साथी लेखकों, पत्रकारों और राजनेताओं ने गहरा दुख जताते हुए श्रद्धांजलि दी है। इस कड़ी में नेता सीतारम येचुरी ने ट्वीट किया है- 'डॉ नामवर सिंह का साहित्य की दुनिया में बहुत विशेष स्थान था। उनका काम और उनका योगदान, उनके जाने के बाद भी कई पीढ़ियों को प्रभावित करेगा। उन्हें श्रद्धांजलि दी।'

लंबे समय तक किया अध्यापन कार्य
हिंदी साहित्यजगत के चर्चित आलोचक नामवर सिंह ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के अलावा दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में लंबे अरसे तक अध्यापन कार्य किया था। बीएचयू से हिंदी साहित्य में एमए और पीएचडी की डिग्री हासिल करने वाले नामवर सिंह ने हिंदी साहित्य जगत में आलोचना को नया मुकाम दिया।

अध्यापन की कड़ी में जेएनयू से पहले उन्होंने सागर (मध्य प्रदेश) और जोधपुर यूनिवर्सिटी (राजस्थान) में भी पढ़ाया। जनयुग और आलोचना नाम की दो हिंदी पत्रिकाओं के वह संपादक भी रहे। 1959 में उन्होंने चकिया-चंदौली सीट से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से चुनाव लड़ा, लेकिन हार के बाद बीएचयू में पढ़ाना छोड़ दिया।

रचनाएं
बकलम खुद - व्यक्तिव्यंजक निबन्धों का संग्रह, कविताओं तथा विविध विधाओं की गद्य रचनाओं के साथ संकलित

शोध
हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग - 1952
पृथ्वीराज रासो की भाषा - 1956 (अब संशोधित संस्करण 'पृथ्वीराज रासो: भाषा और साहित्य' नाम से उपलब्ध)

आलोचना
आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियां - 1954
छायावाद - 1955
इतिहास और आलोचना - 1957
कहानी : नयी कहानी - 1964
कविता के नये प्रतिमान - 1968
दूसरी परंपरा की खोज - 1982
वाद विवाद और संवाद - 1989


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