जिस RSS की आलोचना करती है कांग्रेस, कभी गांधी ने की थी उसकी जमकर तारीफ
आरंभ में जो प्रार्थना गाई गई, जिसमें भारत माता, हिंदू संस्कृति और हिंदू धर्म का गुणगान था। उन्होंने (गांधी) दावा किया कि वे सनातनी हिंदू हैं।
नई दिल्ली (नलिन चौहान)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वर्तमान सर संघचालक मोहन भागवत ने दिल्ली में ‘भविष्य का भारत-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण’ विषय पर तीन दिवसीय (17-19 सितंबर 2018) कार्यक्रम में अपने संगठन की रीति-नीति और कार्य के सिद्धांत, स्वरूप और अवधारणा की खुली चर्चा की। यह देश के इतिहास में एक संयोग ही कहा जा सकता है कि 71 साल पहले महात्मा गांधी ने 16 सितंबर, 1947 को नई दिल्ली नगर पालिका परिषद् में स्थित आज की वाल्मीकि बस्ती में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की रैली में उनके सदस्यों से अपनी मन की बात कही थी। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से पूरे 100 खंडों के महात्मा गांधी वांग्मय में यह पूरा वर्णन (खंड 96) सविस्तार से प्रकाशित है।
गांधी थे संघ के अनुशासन से प्रभावित
गांधी ने कहा कि वे बरसों पहले वर्धा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिविर में गए थे, जब उसके संस्थापक हेडगेवार (डाक्टर केशव बलिराम हेडगेवार) जीवित थे। दिवंगत श्री जमनालाल बजाज उन्हें शिविर में ले गए थे और वे संघ के अनुशासन, किसी भी तरह की छूआछूत न होने और बेहद सादगी से काफी प्रभावित हुए थे। तब से संघ का विस्तार हुआ है। गांधी का मानना था कि जिस संगठन में सेवा का लक्ष्य और सच्चा त्यागभाव रहता है, उसकी ताकत बढ़ती ही है। पर सही मायने में उपयोगी होने के लिए आत्मोसर्ग के साथ लक्ष्य के प्रति शुचिता और सच्चे ज्ञान का समावेश होना आवश्यक है। इन दोनों के बिना त्याग समाज के लिए दुखदायी हो सकता है।
हिंदू का मूल अर्थ बताया
आरंभ में जो प्रार्थना गाई गई, जिसमें भारत माता, हिंदू संस्कृति और हिंदू धर्म का गुणगान था। उन्होंने (गांधी) दावा किया कि वे सनातनी हिंदू हैं। उन्होंने ‘सनातन’ शब्द का मूल अर्थ बताया। हिंदू शब्द का सच्चा मूल क्या है, यह बहुत ही कम लोग जानते हैं। यह नाम हमें दूसरों ने दिया और हमने उसे अपना लिया। हिंदू धर्म ने दुनिया के सभी मतों की अच्छी चीजों को समाहित (अपने में पचा लेने की ताकत) किया है और इस अर्थ में यह एक विशिष्ट महजब नहीं है। इसी कारण उसका इस्लाम या उसके अनुयायियों से कोई झगड़ा नहीं हो सकता जो कि दुर्भाग्य से आज का मसला है। जब अस्पृश्यता का विष हिंदू धर्म में प्रविष्ट हुआ तो उसका पतन शुरू हुआ। एक बात निश्चित थी कि वे (गांधी) सार्वजनिक रूप से घोषित कर रहे थे कि अगर अस्पृश्यता कायम रहेगी तो हिंदू धर्म को मरना होगा। इसी प्रकार, अगर हिंदुओं का यह मानना है कि भारत में हिंदुओं को छोड़कर किसी और के लिए कोई स्थान नहीं है और यदि गैर हिंदुओं, विशेष रूप से मुस्लिम अगर यहां रहने की इच्छा रखते हैं, तो उन्हें हिंदुओं के दास के रूप में रहना होगा तो ऐसा विचार रखकर वे हिंदू धर्म को समाप्त कर देंगे। इसी तरह से, यदि पाकिस्तान यह मानता है कि पाकिस्तान में केवल मुस्लिमों को ही रहने का हक है और गैर-मुसलमानों को वहां पीड़ित और उनके गुलामों की तरह रहना पड़ेगा तो यह भारत में इस्लाम के लिए मौत की घंटी होगी।
संघ आक्रामकता में विश्वास नहीं रखता
वे (गांधी) कुछ दिन पहले उनके (संघ) गुरुजी (संघ के दूसरे सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य गुरुजी) से मिले थे। उन्होंने गुरुजी से कलकत्ता और दिल्ली में संघ के विषय में उन्हें मिली शिकायतों के बारे में बताया। गुरुजी ने उन्हें आश्वस्त किया कि वैसे तो वह संघ के प्रत्येक सदस्य के उचित आचरण की बात सुनिश्चित नहीं कर सकते, पर इतना निश्चित है कि संघ की नीति पूरी तरह से हिंदुओं और हिंदू धर्म की सेवा करना है और वह भी किसी दूसरे को हानि पहुंचा कर कतई नहीं। संघ आक्रामकता में विश्वास नहीं रखता। संघ एक संगठित, अनुशासित संगठन था, जिसकी शक्ति का प्रयोग भारत के हित में या अहित में हो सकता था। उन्हें (गांधी) नहीं पता कि क्या संघ के खिलाफ लगाए गए आरोपों में कोई सत्यता थी या नहीं। अपने समरूप व्यवहार से आरोपों को निराधार साबित करने का दायित्व संघ का था।
शरणार्थी कैंपों में सफाई की चिंता
1947 में हुए भारत विभाजन के बाद दिल्ली में पाकिस्तान से सर्वाधिक हिंदू-सिख शरणार्थियों ने अपना डेरा जमाया। इतना ही नहीं, राजधानी भी सांप्रदायिक दंगों की मार से अछूती नहीं थी। ऐसी विपरीत परिस्थिति में महात्मा गांधी राजधानी में शांति-सद्भाव कायम करने के प्रयासों में लगे थे। 11 सितंबर 1947 को गांधी की ओर से अखबारों को जारी एक प्रेस वक्तव्य केि अनुसार, आज राजकुमारी अमृतकौर और डॉक्टर सुशीला नैयर मुझे इरविन अस्पताल ले गई थीं। वहां पर जात वगैरह का कोई भेदभाव रखे बगैर सिर्फ जख्मी लोगों का ही इलाज किया जाता है। मरीजों में एक बच्चा था, जिसकी उमर मुश्किल से पांच बरस की होगी। गोली लगने से उसके बदन पर घाव हो गया था। डाक्टर और नर्सों पर काम का भारी बोझ था, वहां मुसलमान मरीजों की तादाद ज्यादा थी, क्योंकि हिंदू और सिख मरीजों को दूसरे अस्पतालों में भेज दिया गया था।
खुद करें सफाई
राजकुमारी से मुझे पता चला कि प्रयास शरणार्थी कैंपों में पाखाने साफ करने के लिए सफाई कर्मियों को भेजना करीब-करीब नामुमकिन है। इससे हैजे-जैसी छूत की बीमारी के फैलने का डर है। मेरी राय में शरणार्थियों को अपने-अपने कैपों में खुद सफाई करनी चाहिए। पाखाने भी उन्हें साफ करने चाहिए और कैंप-व्यवस्था की स्वीकृति से कुछ उपयोगी काम करना चाहिए। सिर्फ उन लोगों को छोड़कर, जो शारीरिक मेहनत नहीं कर सकते, बाकी सब पर यह नियम लागू होता है। सारे शरणार्थी-कैंप सफाई, सादगी और मेहनत के नमूने होने चाहिए। उल्लेखनीय है कि यह वक्तव्य हरिजन अखबार के 21 सितंबर, 1947 के अंक में भी प्रकाशित हुआ था।
(लेखक दिल्ली के अनजाने इतिहास के खोजी)