नई दिल्ली, विवेक तिवारी । जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते गर्मी बढ़ने के साथ ही मौसम में भी बदलाव देखा जा रहा है। मानसून में देरी के कारण जून में सामान्य से कम बारिश की आशंका जताई जा रही है। इसे लेकर केंद्र सरकार भी चिंतित है। जून में कम बारिश का धान, सोयाबीन और मक्के की फसल पर क्या असर होगा, इस पर कृषि मंत्रालय गंभीरता से नजर बनाए हुए है। लेकिन बारिश की कमी पहली बार नहीं है। वैज्ञानिकों ने अलग-अलग अध्ययनों में पाया कि फसलों के लिए जरूरी बारिश के दिनों में लगातार कमी आ रही है।

मौसम विभाग (IMD) के जर्नल मौसम में 2022 में छपे एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि हर दशक में बारिश के दिनों में औसतन 0.23 फीसदी कमी दर्ज की गई है। अध्ययन के मुताबिक आजादी के बाद से अब तक देश में बारिश का समय लगभग डेढ़ दिन कम हो गया है। यहां बारिश के एक दिन का मतलब ऐसे दिन से है जिस दिन कम से कम 2.5 मिलीमीटर बारिश हुई हो। वैज्ञानिकों के मुताबिक पिछले एक दशक में एक्सट्रीम इवेंट्स भी काफी तेजी से बढ़े हैं।

आईएमडी जर्नल मौसम में प्रकाशित ये अध्ययन 1960 से 2010 के बीच मौसम के डेटा के आधार पर किया गया है। अध्ययन में पाया गया कि बारिश के लिए जिम्मेदार लो क्लाउड कवर देश में हर दशक में लगभग 0.45 फीसदी कम हो रहा है। खास तौर पर मानसून के दिनों में इनमें सबसे ज्यादा, 1.22 प्रतिशत कमी आई है।

दक्षिण-पश्चिम मानसून के लिए 1971 से 2020 तक के आंकड़ों को देखें तो देश में औसत बारिश 868.8 मिमी प्रति वर्ष थी, जबकि 1961 से 2010 तक का औसत 880.6 मिमी है। दोनों आंकड़ों की तुलना से पता चलता है कि मानसून की बारिश में औसतन 12 मिलीमीटर की कमी आई है। वहीं देश में वार्षिक तौर पर औसत बारिश में लगभग 16.8 मिलीमीटर की कमी आई है।

मौसम वैज्ञानिक समरजीत चौधरी कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के चलते बारिश के पैटर्न में बड़े पैमाने पर बदलाव हुए हैं। इस साल माई के महीने में राजस्थान में जितनी बारिश हुई पिछले 100 सालों में नहीं हुई थी। सामान्य तौर पर राजस्थान में मई महीने में तापमान औसतन 47 से 48 डिग्री तक रहता है। लेकिन पिछले कुछ सालों से ये मई में 44 से 45 डिग्री के बीच रह रहा है। इसी तरह पूर्वोत्तर भारत की बात करें तो पिछले साल यहां बारिश सामान्य से काफी कम दर्ज की गई। बारिश के पैटर्न में इस तरह के बदलाव से चिंता काफी बढ़ी है। कई मॉडल्स के अध्ययन में ये देखा जा रहा है कि आने वाले दिनों में एक्स्ट्रीम वेदर इवेंट तेजी से बढ़ेंगे।

मानसून में किस महीने में होती है कितनी बारिश

मौसम विभाग के अध्ययन के मुताबिक 1971 से 2020 के बीच आंकड़ों पर नजर डालें तो दक्षिण पश्चिम मानसून देश की कुल बारिश में लगभग 74.9 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है। इसमें से जून महीने में लगभग 19.1 फीसदी बारिश होती है। वहीं जुलाई में लगभग 32.3 फीसदी और अगस्त में लगभग 29.4 फीसदी बारिश होती है। सितंबर महीने में औसतन 19.3 फीसदी बारिश दर्ज की जाती है।

कम बारिश और तापमान बढ़ने से घट रहा उत्पादन

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने देश के 573 ग्रामीण जिलों में जलवायु परिवर्तन से भारतीय कृषि पर खतरे का आकलन किया है। इसमें कहा गया है कि 2020 से 2049 तक 256 जिलों में अधिकतम तापमान 1 से 1.3 डिग्री सेल्सियस और 157 जिलों में 1.3 से 1.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की उम्मीद है। इससे गेहूं की खेती प्रभावित होगी। गौरतलब है कि पूरी दुनिया की खाद्य जरूरत का 21 फीसदी गेहूं भारत पूरी करता है। वहीं, 81 फीसदी गेहूं की खपत विकासशील देशों में होती है। इंटरनेशनल सेंटर फॉर मेज एंड वीट रिसर्च के प्रोग्राम निदेशक डॉ. पीके अग्रवाल के एक अध्ययन के मुताबिक तापमान एक डिग्री बढ़ने से भारत में गेहूं का उत्पादन 4 से 5 मीट्रिक टन तक घट सकता है। तापमान 3 से 5 डिग्री बढ़ने पर उत्पादन 19 से 27 मीट्रिक टन तक कम हो जाएगा। हालांकि बेहतर सिंचाई और उन्नत किस्मों के इस्तेमाल से इसमें कमी की जा सकती है।

खाद्य जरूरतों को पूरा करने में बढ़ेगी मिलेट्स की भूमिका

बारिश में कमी और बढ़ती गर्मी से गेहूं और धान जैसी पारंपरिक फसलों के उत्पादन पर असर पड़ा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले दिनों में बाढ़, तेज बारिश और सूखे जैसी घटनाएं तेजी से बढ़ेंगी। ऐसे में खाद्य जरूरतों को पूरा करने में मिलेट्स महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इंटरनेशनल क्रॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सेमी एरॉयड ट्रॉपिक संस्था के ग्लोबल रिसर्च प्रोग्राम के डिप्टी डायरेक्टर डॉक्टर शैलेंद्र कुमार कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ती गर्मी और असमय बारिश जैसे हालात में मिलेट्स खाद्य जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। मिलेट्स के पौधों की जड़ें मजबूत होती हैं। तेज बारिश में भी इनका पौधा गिरता नहीं है। वहीं जड़ें गहरी होने के चलते सूखे के दौरान इनका पौधा पारंपरिक फसलों की तुलना में काफी समय तक जीवित रह जाता है। मिलेट्स के पौधे तेज गर्मी भी बर्दाश्त कर लेते हैं। मिलेट्स पोषक तत्वों से भी भरपूर हैं। ऐसे में आम लोगों को बेहतर पोषण प्रदान करने के लिए भी ये एक बेहतर विकल्प है।