Exclusive: डायलिसिस पर दिल्ली की बुनियादी सुविधाएं, आम लोगों पर बजी खतरे की घंटी
दरअसल संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि दस वर्ष में दिल्ली दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला शहर हो जाएगा।
[जागरण स्पेशल]। आस में दिल्ली आए थे...सपनों की झोली लाए थे...। शिक्षित होंगे...नौकरी होगी। सुविधाएं तो बेहिसाब होंगी। आबादी कुलाचें मार गई। आंकड़ों से हमें डरा गई। बढ़ी आबादी, छूट गया विकास...खतरे की घंटी ने चेताया कई बार...। रहने को घर नहीं...बिजली की सेहत ठीक नहीं...। स्वास्थ्य भी खराब है, इलाज की हालत में अस्पताल हैं...। हरी-भरी जो हरियाली थी उस पर इमारतें खड़ी हुईं...प्रदूषण की मार से सांसें सभी की फूल रहीं...। बूंद- बूंद को तरस गई...गंदगी से दिल्ली नाक-मुंह सिकोड़ रही...। दरअसल संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि दस वर्ष में दिल्ली दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला शहर हो जाएगा।
यह निराशाजनक है कि वर्ष 2010 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों के बाद से दिल्ली में विकास की गति बहुत धीमी पड़ गई है। नई योजनाओं की कागजों से इंक मिटने लगी है और पुरानी योजनाएं अधर में लटकी हैं। यदि दिल्ली दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला शहर बन जाएगा तो एनसीआर के शहर भी इस जनदबाव से अछूते नहीं रहेंगे।
एनसीआर के शहरों में तेजी से रिहायशी इलाके जरूर विकसित हो रहे हैं, लेकिन इन फ्लैटों में रहने वालों के लिए मूलभूत सुविधाओं की अब भी बहुत कमी है। यदि यही स्थिति रही तो दस वर्षों में दिल्ली के साथ ही एनसीआर के शहरों में भी बुनियादी सुविधाएं चरमरा जाएंगी। इसे देखते हुए इस सप्ताह का हमारा मुद्दा, ‘बढ़ रही जनसंख्या, घट रहे संसाधन‘ है:
डायलिसिस पर शहर की बुनियादी सुविधाएं
10 साल में दिल्ली विश्व का सर्वाधिक आबादी वाला शहर बन जाएगा। फिलहाल भले ही यहां की आबादी तकरीबन पौने दो करोड़ के आसपास है, लेकिन 2028 में यह चार करोड़ तक पहुंच जाएगी। ऐसे में ढांचागत विकास और बुनियादी सुविधाओं पर बात करें तो वह अब भी चरमरा रहा है, 2028 में दिल्ली का हाल क्या होगा, यह यक्ष प्रश्न ही है!
सरकारी आंकड़ों और हकीकत पर गौर करें तो दिल्ली की आबादी साल दर साल बढ़ती जा रही है। रोजगार की तलाश में आने वालों की हर साल संख्या बढ़ रही है, लेकिन इस बढ़ती आबादी के अनुपात में बुनियादी सुविधाएं उतनी ही हैं। आबादी और सुविधाओं में अंतराल का ही नतीजा है कि जहां अनधिकृत कॉलोनियों का जंजाल फैलता ही जा रहा है, वहीं दिल्ली का कारोबारी सीलिंग की समस्या से त्रस्त है। सड़कों पर जाम आम हो गया है तो परिवहन और पानी की समस्या विकराल होती जा रही है।
अनदेखी से पिछड़े
न तो सुरक्षित आवास...न सांस लेने को स्वस्थ आबोहवा और न ही कंठ तृप्त करने को पर्याप्त शुद्ध जल...। सड़कों पर वाहनों का ऐसा रेला कि पैदल चलने वालों तक के लिए झमेला...। दिल्ली की आबादी की सीढ़ियां एक के बाद एक ऊंचाई के पायदान छूने को बेताब हो रही है। लेकिन शहर के विकास का जन सुविधाओं का क्या? दिल्ली की बढ़ रही जनसंख्या के लिहाज से बुनियादी ढांचे का विकास न होना चिंतित करने वाला है। प्लानिंग का अभाव व सियासत ने विकास की गति को कुंद कर दिया है। दिल्ली को विश्व का सर्वश्रेष्ठ शहर बनाने की चर्चा तो खूब होती है। प्रत्येक चुनाव में इसे मुद्दा बनाया जाता है पर जमीनी स्तर पर इस दिशा में कोई प्रयास नहीं हो रहा है। बढ़ती आबादी के लिए सुरक्षित आवास उपलब्ध कराने के बजाय पूरे शहर में अनधिकृत कॉलोनी व झुग्गी बस्तियां बसा दी गईं। इन्हें हटाकर नियोजित विकास में सियासत आड़े आ जाती है। इस कारण रंग रेल को वैकल्पिक परिवहन प्रणाली के तौर पर विकसित करने में दिक्कत हो रही है।
बिजली नेटवर्क को मजबूत करने, घर-घर साफ पानी पहुंचाने और टैंकर माफिया के आतंक को खत्म करने के नाम पर भी सिर्फ राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे पर आरोप लगाती रही हैं। आम आदमी पार्टी ने इसे लेकर बड़े-बड़े वादे किए थे जो हवा हवाई साबित हुए हैं। सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को मजबूत करने को लेकर भी दिल्ली सरकार बिल्कुल गंभीर नहीं है। मेट्रो फेज-4 की फाइल भी इस सरकार के पास धूल फांक रही है। एनसीआर के शहरों को दिल्ली से जोड़ने के लिए रैपिड रेल का प्रोजेक्ट भी राज्यों की आपसी लड़ाई में लेट होता जा रहा है।
अनदेखी है बड़ा कारण
एक तो सियासत दूसरे प्लानिंग के अभाव में दिल्ली की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। दिल्ली विकास प्राधिकरण के पूर्व योजना आयुक्त आरजी गुप्ता का भी कहना है कि समस्या का मूल कारण योजनाओं की अनदेखी करना है। पिछले कुछ समय से योजनाओं की यानी प्लानिंग की कीमत कम होती जा रही है। नई लैंड पूलिंग पॉलिसी में भी इसे नजरअंदाज किया गया है। 1965 में बेहतरीन लैंड यूज प्लान बनाया गया। फिर से प्लानिंग को महत्व देना होगा।
[जागरण राज्य ब्यूरो के साथ संजीव गुप्ता की रिपोर्ट]