गांवों की तुलना में तेजी से गर्म हो रहे हैं शहर, हीटवेव होती जा रही है जानलेवा
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नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी। जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान तेजी से बढ़ रहा है। बीते कुछ दिनों में देश के कई हिस्सों में पारा 46 डिग्री से अधिक जा चुका है। जिसने कृषि, अन्य क्षेत्रों सहित आम लोगों के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है। कई वैज्ञानिक रिपोर्ट इस बात की तसदीक करती है कि पृथ्वी का औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है। मौसम में बदलाव और गर्मी बढ़ने से हीट वेव की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ रही है। हीट वेव बढ़ने से आने वाले दिनों में हालात और मुश्किल हो सकते हैं। 1970 के दशक के उत्तरार्ध से पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ रहा है। शर्मा और मजूमदार की 1970 की रिपोर्ट में सामने आया था कि हीट वेव की वजह से सूखा और हीट वेव की फ्रीक्वेंसी में लगातार बढ़ोतरी हुई है। इसके अनुसार 1951 में जहां कोई भी क्षेत्र प्रभावित नहीं था वहीं, 2010 तक आते-आते चार फीसद क्षेत्र इससे प्रभावित हो गया। लोकसभा में सरकार द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार 1961-70 में हीट वेव के दिन 74 थे जो 1991-2000 में यह बढ़कर 98 हो गए।
दिल्ली में लगातार बढ़ रही हीट वेव
इंटीग्रेटेड रिसर्च एंड एक्शन फॉर डेवलपमेंड और कनाडा की संस्था इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर की ओर से दिल्ली और राजकोट के शहरों के लिए हीटवेव दिनों की संख्या में वृद्धि का विश्लेषण किया है। रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में दिल्ली में 49 दिनों तक हीट वेव दर्ज की गई जो 2019 में बढ़ कर 66 दिनों तक पहुंच गई जो एक साल में लगभग 35% की वृद्धि को दर्शाता है। वहीं 2001 से 10 के आंकड़ों पर नजर डालें तो हीट वेव के दिनों में 51% की वृद्धि दर्ज हुई। वहीं राजकोट की बात करें तो 2001-10 के बीच कुल 39 दिन हीट वेव दर्ज की गई। वहीं ये संख्या 2011 से 21 के बीच बढ़ कर 66 दिनों तक पहुंच गई।
इंटीग्रेटेड रिसर्च एंड एक्शन फॉर डेवलपमेंड के डिप्टी डायरेक्टर रोहित मगोत्रा के मुताबिक 21वीं सदी में हीट वेव की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ने की संभावना है। हाल ही में आई 6 वीं आईपीसीसी रिपोर्ट में पृथ्वी की सतह के 2.0 डिग्री फ़ारेनहाइट (1.1 डिग्री सेल्सियस) के आसपास गर्म होने पर चेतावनी दी गई है। इससे भविष्य में वैश्विक औसत तापमान और हीटवेव में वृद्धि होगी।
गांवों की तुलना में तेजी से गर्म हो रहे हैं शहर
नानजिंग और येल विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन किया है, जिसमें उन्होंने 2002 से 2021 के बीच भारत सहित दुनिया के दो हजार से ज्यादा शहरों में सतह के औसत तापमान में आते बदलावों का उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों की मदद से विश्लेषण किया है। शहरों में सतह का तापमान 0.5 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की दर से बढ़ रहा है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर 0.38 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक है। दिन और रात में सतह के तापमान में आते बदलावों को देखें तो जहां दिन में शहरी सतह का तापमान 0.56 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की दर से बढ़ रहा है वहीं गांवो में यह आंकड़ा 0.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है। इसी तरह रात में सतह के तापमान में होती वृद्धि को देखें तो शहरी सतह का तापमान 0.43 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक है जबकि गांवों में यह 0.37 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक दर्ज किया गया है। जो लोग शहरों में रहते हैं वो हीटवेव के दौरान कहीं ज्यादा गर्मी के जोखिम का सामना करते हैं। ऐसा "अर्बन हीट आइलैंड" के प्रभावों के कारण होता है। शहरों में गगनचुंबी इमारतें और हर तरफ पसरा कंक्रीट सूर्य से आते विकिरण को सोख लेता है जिसकी वजह से सतह कहीं ज्यादा तेजी से गर्म होने लगती है।
अर्बन हीट आईलैंड
जब किसी शहर में उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के मुकाबले तापमान में अधिक बढ़ोतरी हो जाती है, उसे अर्बन हीट आइलैंड कहते है। इस पूरी प्रक्रिया को अर्बन हीट आईलैंड इफेक्ट कहा जाता है। इसकी बड़ी वजह है इंसानी गतिविधियां। शहरों के हीट आइलैंड बनने की दो सबसे बड़ी वजह हैं। पहली, वहां की इमारतों की बनावट। दूसरी, हरियाली का कम होना और जलाशयों का दायरा घटना, कंक्रीट की ऊंची बिल्डिंग, इनमें लगे एयरकंडीशनर से निकलने वाली गर्मी, शहरों में ट्रैफिक के कारण बढ़ती गर्मी। सिर्फ यही नहीं बिल्डिंग में ईंट की जगह शीशे और स्टील का बढ़ता इस्तेमाल भी गर्मी के असर को बढ़ाने में मदद करता है। यह सब चीजें मिलकर एक शहर को हीट आइलैंड में तब्दील कर देती हैं।
ये होती है हीट वेव कंडीशन
आईएमडी के मुताबिक हीट वेव तब होता है, जब किसी जगह का तापमान मैदानी इलाकों में 40 डिग्री सेल्सियस, तटीय क्षेत्रों में 37 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है। जब किसी जगह पर किसी ख़ास दिन उस क्षेत्र के सामान्य तापमान से 4.5 से 6.4 डिग्री सेल्सियस अधिक तापमान दर्ज किया जाता है, तो मौसम एजेंसी हीट वेव चलने का ऐलान करती है। यदि तापमान सामान्य से 6.4 डिग्री सेल्सियस अधिक है, तो आईएमडी इसे 'गंभीर' हीट वेव घोषित करता है। आईएमडी हीट वेव घोषित करने के लिए एक अन्य मानदंड का भी उपयोग करता है, जो पूर्ण रूप से दर्ज तापमान पर आधारित होता है। यदि तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है, तो विभाग हीट वेव घोषित करता है। जब यह 47 डिग्री को पार करता है, तो 'गंभीर' हीट वेव की घोषणा की जाती है।
हीटवेव है जानलेवा
दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंफिक कमेटी के चेयरमैन डॉक्टर नरेंद्र सैनी के मुताबिक हीट वेव को हल्के में नहीं लेना चाहिए। इससे आपकी जान भी जा सकती है। हमारे शरीर के ज्यादातर अंग 37 डिग्री सेल्सियस पर बेहतर तरीके से काम करते हैं। जैसे जैसे तापमान बढ़ेगा इनके काम करने की क्षमता प्रभावित होगी। बेहद गर्मी में निकलने से शरीर का तापमान बढ़ जाएगा जिससे ऑग्रेन फेल होने लगेंगे। शरीर जलने लगेगा, शरीर का तापमान ज्यादा बढ़ने से दिमाग, दिल सहित अन्य अंगों की काम करने की क्षमता कम हो जाएगा।
यदि किसी को गर्मी लग गई है तो उसे तुरंत किसी छाया वाले स्थान पर ले जाएं। उसके पूरे शरीर पर ठंडे पानी का कपड़ा रखें। अगर व्यक्ति होश में है तो उसे पानी में इलेक्ट्राल या चीनी और नमक मिला कर दें। अगर आसपास अस्तपाल है तो तुरंत उस व्यक्ति को अस्पताल ले जाएं।
बच्चों के लिए ज्यादा खतरनाक
यूनिसेफ (UNICEF) का कहना है कि आज दुनिया के 50 करोड़ बच्चे साल में अलग-अलग समय पर हीटवेव का सामना कर रहे हैं। वर्ष 2050 तक 200 करोड़ बच्चे यह परेशानी झेल रहे होंगे- यानी दुनिया का हर बच्चा। आगे हीटवेव ज्यादा खतरनाक, लंबे समय तक और बार-बार आएंगे। बच्चों में शरीर को तापमान के मुताबिक एडजस्ट करने की क्षमता वयस्कों से कम होती है, इसलिए वे जितना ज्यादा हीटवेव का सामना करेंगे उनमें सांस की गंभीर बीमारी, अस्थमा और दिल की बीमारी की आशंका उतनी अधिक होगी। WMO ने चेतावनी दी है कि 2060 के दशक तक हीटवेव बहुत जल्दी-जल्दी आएंगे।
वैश्विक स्तर पर यह करने की आवश्यकता
शहरों को सरकारी अधिकारियों को पूर्व चेतावनी प्रणाली (वार्निंग सिस्टम), हीट वेव्स आपदा तैयारी से सबंधित प्रशिक्षण से लैस किए जाने की आवश्यकता है। हीट वेव के दौरान सहायता के लिए सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रम और अत्यधिक गर्मी के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए सक्रिय शहरी नियोजन बनाए जाने की भी जरूरत है।
अहमदाबाद में सबसे पहले हीट एक्शन प्लान (एचएपी) 2013 में विकसित की गई थी। इसके तहत लोगों को मोबाइल फोन पर एसएमएस के जरिये मौसम संबंधी अलर्ट भेजा जाता था। चिकित्सकों को हीट वेव्स से निपटने के लिए विशेष तौर पर प्रशिक्षित किया गया। 2018 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, इस पहल ने एक वर्ष में 1,190 मौतों को टाला।
दुनिया भर के कई शहर अत्यधिक गर्मी से निपटने के लिए समर्पित अधिकारियों को नियुक्त कर रहे हैं। इस तरह के पहले अधिकारी जेन गिल्बर्ट को संयुक्त राज्य अमेरिका के मियामी-डेड काउंटी में नियुक्त किया गया। गिल्बर्ट की नियुक्ति के एक साल से भी कम समय में, चार और शहरों ने ऐसा ही काम किया है। जुलाई 2021 में, ग्रीस की राजधानी एथेंस ने अपने पूर्व डिप्टी मेयर एलेनी मिरिविली को चीफ हीट ऑफिसर के रूप में नियुक्त किया। अक्टूबर में, अमेरिका ने एरिज़ोना के फीनिक्स शहर और अफ्रीका के सिएरा लियोन ने फ़्रीटाउन में चीफ हीट ऑफिसर नियुक्त किए। 3 मार्च, 2022 को चिली की राजधानी सैंटियागो ने शहरी योजनाकार क्रिस्टीना हुइदोब्रो को दुनिया का पांचवां चीफ हीट ऑफिसर नियुक्त किया। अमेरिका के कैलिफोर्निया में लॉस एंजिल्स ने भी इस पद के लिए एक रिक्ति का विज्ञापन दिया है।
यह नया आपातकाल, जिसके कारण दुनिया के कई शहर हीट ऑफिसर नियुक्त कर रहे हैं, दुनिया भर में सामने आने वाली गर्मी की भयावहता को दर्शाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हीटवेव ने 1998 और 2017 के बीच 166,000 से अधिक लोगों की जान ले ली।
आईपीसीसी की छठी आंकलन रिपोर्ट (एआर 6) की तीसरी किस्त शहरी क्षेत्रों को ठंडा करने के लिए अर्बन ग्रीन और ब्लू इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे, ग्रीन वाल्स, ग्रीन वेज, स्ट्रीट ट्रीज, अर्बन फारेस्ट, ग्रीन रूफ, ब्लू स्पेसेज के महत्व पर केंद्रित है। शहरी पेड़, गर्मी के असर को कम करके जलवायु परिवर्तन के कुछ प्रभावों को कम कर सकते हैं। इसके अलावा, ये वर्षा जल के कारण होने वाले प्रदूषण को कम कर सकते हैं, वायु गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं। इस सब के अतिरिक्त, ये उपाय उन क्षेत्रों में मानव स्वास्थ्य बेहतर रखने में मदद कर सकते हैं, जहां दुनिया की अधिकांश आबादी निवास करती है।
दुनिया भर में हीट वेव्स के वैश्विक प्रमाण
छठी मूल्यांकन रिपोर्ट की पहली किस्त में, आईपीसीसी ने जोर देकर कहा कि मानव इतिहास में, मानवीय गतिविधियों ने ग्रह को उस तेजी से गर्म किया है, जिसे अब से पहले कभी नहीं देखा गया है। 1850-1900 के पूर्व-औद्योगिक अवधि की तुलना में, पृथ्वी की वैश्विक सतह का तापमान 1.09 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो गया है। मानव हस्तक्षेप इस स्थिति का मुख्य कारण है (जो 1950 के दशक से लगातार तेज हुआ है)। जलवायु मॉडल और विश्लेषण में सुधार ने वैज्ञानिकों को वर्षा, तापमान और अन्य कारकों के रिकॉर्ड देखकर जलवायु परिवर्तन पर मानव प्रभाव की पहचान करने में सक्षम बनाया है। पिछले दो दशकों में, वैज्ञानिकों ने ऐसी स्थिति के लिए जिम्मेवार मानवजनित जीएचजी उत्सर्जन की भूमिका का विश्लेषण करते हुए 350 से अधिक साइंटिफिक पेपर और असेसमेंट प्रकाशित किए हैं।
आईपीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि हर अतिरिक्त 0.5 डिग्री सेल्सियस अत्यधिक वर्षा और सूखे के साथ-साथ गर्म मौसम को बढ़ाएगी। यदि कार्बन उत्सर्जन अधिक रहता है तो भारत में हीट वेव्स के "2036-2065 तक 25 गुना अधिक समय तक" रहने की संभावना है। यह सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि करेगा, जैसा कि 28 अक्टूबर, 2021 को प्रकाशित एक इंटरनेशनल क्लाइमेट रिपोर्ट (जी-20 देशों को कवर करते हुए) में कहा गया है।