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AIIMS खोजेगा बिहार के 'चमकी बुखार' का इलाज, बीमारी के सटीक कारणों का लग जाएगा पता

मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार की वजह से हो रही मौतों का सिलसिला रुक नहीं रहा। मुजफ्फरपुर में अबतक 146 बच्चों की मौत हो चुकी है।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Sun, 23 Jun 2019 12:50 PM (IST)Updated: Sun, 23 Jun 2019 01:22 PM (IST)
AIIMS खोजेगा बिहार के 'चमकी बुखार' का इलाज, बीमारी के सटीक कारणों का लग जाएगा पता
AIIMS खोजेगा बिहार के 'चमकी बुखार' का इलाज, बीमारी के सटीक कारणों का लग जाएगा पता

नई दिल्ली, एएनआइ। बिहार में चमकी बुखार का प्रकोप कहा जा रहा है, उससे अबतक मुजफ्फरपुर में 146 बच्चों की मौत हो चुकी है। एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) यानी चमकी बुखार का कोई इलाज अबतक नहीं है। लेकिन अब दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानि एम्स (AIIMS) इस बीमारी(सिंड्रोम) के पीछे के  वास्तविक कारणों पर अध्ययन करने जा रहा है। आपको बता दें चमकी बुखार अबतक  'अज्ञात श्रेणी' के तहत सूचीबद्ध है।

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अगले महीने एम्स (AIIMS) में शुरू होने वाली इस रिसर्च को केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और इंडिया इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी लिमिटेड (IIFCL) ने सीएसआर(CSR) गतिविधि के हिस्से के रूप में वित्त पोषित किया है। सेंटर ऑफ एक्सीलेंस एंड एडवांस्ड रिसर्च फॉर चाइल्डहुड न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर, एम्स, इन तीव्र और उप-तीव्र एईएस(AES) सिंड्रोम के पीछे के कारणों का पता लगाने के लिए रिसर्च की देखरेख करेगा। इस अध्ययन में क्रोनिक एन्सेफलाइटिस/ एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम जो 1 महीने से 18 साल की उम्र तक के बच्चों को प्रभावित करता है, उसपर ध्यान केंद्रित होगा।

एम्स के पीडियाट्रिक्स विभाग की प्रमुख प्रोफेसर शेफाली गुलाटी ने कहा, 'हमें एईएस(AES) के मामलों का इलाज बीमारी के बाद करना होगा, हर साल इस बीमारी की वजह से वहां मृत्यु दर बढ़ती जा रही है। यह अध्ययन हमें इस बीमारी के पीछे के सटीक कारण जानने में मदद करेगा।' उन्होंने कहा,' अध्ययन महत्वपूर्ण है क्योंकि एईएस के साथ एम्स आने वाले मरीज न केवल दिल्ली या बिहार से हैं, बल्कि सार्क क्षेत्र भी शामिल है। इस रिसर्च में, डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया, दाद, जापानी बी एन्सेफलाइटिस, मेनिन्जाइटिस, ई कोलाई, एच इन्फ्लूएंजा, निमोनिया जैसे वायरस का अध्ययन किया जाएगा।'

लीची के कारण मौतें
उन्होंने कहा, 'एईएस(AES) के मामलों को लीची से जोड़ा जा सकता है, एईएस के कारण जो बच्चे प्रभावित हो रहे हैं, वे ज्यादातर कुपोषित हैं। लीची बीनने वाले बच्चे खेत में जाते हैं और बिना पके फल खाते हैं। बिना पकी लीची में ऐसे टॉक्सिन होते हैं, जो ब्लड शुगर को बहुत कम कर सकते हैं। उनमें ग्लाइकोजन रिजर्व नहीं होता है। गर्म मौसम से लीची में पानी की कमी हो जाती है।'

अबतक नहीं खोजा जा सका है इलाज
बिहार में इस साल एईएस के कारण अबतक 146 बच्चों की मौत हो चुकी है, जो 1993 के बाद सबसे ज्यादा है।
यह दुर्भाग्य है कि तमाम कोशिशों और रिसर्च के बाद भी ऐसी कोई दवाई नहीं बनाई जा सकी जिससे पीड़ित रोगियों का इलाज हो सके। यहां तक कि अभी तक इस बीमारी के पीछे के वायरस की भी पहचान नहीं हो सकी है। बिहार के मुजफ्फरपुर और उसके आसपास के इलाकों में मई महीने में यह बीमारी बच्चों में हर साल हो जाती है। यह मई से शुरू होकर जुलाई के महीने तक चलती है। उसके बाद यह अपने आप खत्म हो जाती है। बरसात के बाद अचानक यह बीमारी कैसे खत्म हो जाती है ? इसको लेकर भी सवाल है। वैज्ञानिकों ने एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम पर काफी रिसर्च किया लेकिन जो कुछ भी नतीजे सामने आए हैं, वो कुछ नहीं बता पा रहे हैं।

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