शीर्ष नक्सली कमांडर गणपति के तेलंगाना में होने की सूचना, जल्द कर सकता है सरेंडर
गणपति को 1977 में पहली बार गिरफ्तार किया गया था। 1979 में उसे जमानत पर रिहा किया गया। इसके बाद से वह पुलिस की पकड़ से दूर है।
जगदलपुर, जेएनएन। नक्सलियों के शीर्ष नेता और माओवादी सेंट्रल कमेटी के पूर्व मुखिया गणपति उर्फ लक्ष्मण राव के आत्मसमर्पण की बुधवार को भी पुष्टि नहीं हो सकी। इस बात के संकेत जरूर मिल रहे हैं कि तेलंगाना पुलिस के साथ वह संपर्क में है और अगले दो से तीन दिनों के अंदर उसके समर्पण की घोषणा हो सकती है। नक्सलियों की वजह से होने वाले नुकसान को समाप्त करने की दिशा में गणपति का समर्पण बहुत बड़ी सफलता साबित हो सकती है।
80 साल के गणपति को काफी कम लोगों ने ही सार्वजनिक रूप से देखा है। खबरों के मुताबिक गणपति सरेंडर के लिए पुलिस के संपर्क में है। हालांकि, सरेंडर को लेकर अधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं हुई है। पिछले दो दिन से खबर है कि गणपति तेलंगाना में सरेंडर करना चाह रहा है, लेकिन वहां के अफसर इस पर अधिकारिक तौर कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं।
ढाई करोड़ का इनाम
बता दें कि नक्सली नेता गणपति पर ढाई करोड़ रुपये का इनाम है। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद नक्सली नेताओं की सूचना देने पर इनाम राशि में पांच गुना बढ़ोत्तरी की गई है। अब नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी के किसी भी सदस्य पर इनाम की राशि एक करोड़ रुपये से कम नहीं है। पहले यह रकम 15-20 लाख रुपये थी।
1979 से नहीं आया पुलिस के हाथ
तेलंगाना के करीमनगर जिले के सारंगपुर निवासी गणपति 30 साल से माओवादी आंदोलन में सक्रिय है। वह लंबे समय तक माओवादियों की सेंट्रल कमेटी का सचिव रहा। वर्ष 2018 में स्वास्थ्यगत कारणों से उसने इस्तीफा दे दिया था। गणपति को 1977 में पहली बार पुलिस ने गिरफ्तार किया था। बाद में 1979 में उसे जमानत पर रिहा किया गया। इसके बाद से वह कभी पुलिस के हाथ नहीं आया।
बीमारी की वजह से सरेंडर
जानकारों का कहना है कि गणपति अधिक उम्र की वजह से नक्सल गतिविधियों से भी दूर हो गया है। इसके अलावा वह बीमार भी बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि वह इलाज के उद्देश्य से सरेंडर कर रहा है। बीते कुछ वर्षो में नक्सलियों के कई शीर्ष नेता या तो मारे जा चुके हैं या गिरफ्तार हो चुके हैं। ऐसे में अब नक्सली आंदोलन के बिखरने की परिस्थितियां बनती जा रही हैं।