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नक्सल प्रभावित इलाके में 'उद्यान' लगाकर सत्येन्द्र बने मिसाल

कहा जाता है कि सच्ची लग्न और जज्बा हो तो कोई भी मंजिल पाना मुश्किल नहीं होता। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है बिहार के बेलागंज प्रखण्ड के इमलियाचक गांव के स्नातकोतर पास 30 वर्षीय युवक सत्येन्द्र कुमार मांझी ने। सत्येन्द्र ने अकेले दम पर फल्गु नदी के तट पर लगभग दस बीघे परती जमीन पर फलदायक वृक्ष लगाकर इस पूरे इलाके को ही हरा-भ

By Edited By: Published: Fri, 17 Aug 2012 04:04 PM (IST)Updated: Fri, 17 Aug 2012 04:24 PM (IST)
नक्सल प्रभावित इलाके में 'उद्यान' लगाकर सत्येन्द्र बने मिसाल

गया। कहा जाता है कि सच्ची लग्न और जज्बा हो तो कोई भी मंजिल पाना मुश्किल नहीं होता। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है बिहार के बेलागंज प्रखण्ड के इमलियाचक गांव के स्नातकोतर पास 30 वर्षीय युवक सत्येन्द्र कुमार मांझी ने।

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सत्येन्द्र ने अकेले दम पर फल्गु नदी के तट पर लगभग दस बीघे परती जमीन पर फलदायक वृक्ष लगाकर इस पूरे इलाके को ही हरा-भरा कर दिया। खास बात यह है कि इस बागीचे के फल या तो राहगीरों में बांट दिए जा रहे है या फिर विवाह समारोहों में भेजकर मिसाल पेश की जा रही है।

रौना पंचायत के इमलियाचक गांव आज पूरे गया जिले के लिए मिसाल बन गया है। सत्येन्द्र हिंदी में स्नातकोतर पास हैं। चाहता तो वह भी शहर में जाकर छोटी-मोटी नौकरी कर सकता था परंतु उसे गांव में ही कुछ करने की सनक और जन्मस्थली का नाम रौशन करने की भूख ने उसे शहर नहीं जाने दिया।

सबसे बड़ी बात है कि उसकी प्रतिभा के सामने उसने अपनी गरीबी को भी आड़े नहीं आने दिया। उसने अपनी पर्यावरण प्रेम और पढ़ाई को जारी रखते हुए अपनी खेतों पर खेती करना प्रारंभ कर दिया और फल्गु तट पर फलदार वृक्ष लगाना शुरू किया।

देखते ही देखते वह दस बीघे जमीन पर लगे बगीचे का मालिक बन गया। उसके द्वारा लगाए गए पेड़ अब फल और सब्जियां देने लगा है। सत्येन्द्र ने बातचीत के दौरान कहा कि कामयाबी ऐसे ही एक दिन में नहीं मिलती। वह कहते है कि इस भूमि पर पटवन [सिंचाई करना] करना उनके लिए एक बड़ी चुनौती थी। परंतु गया जिले के ही रहने वाले पहाड़ काटकर रास्ता बना चुके दशरथ मांझी को आदर्श मानने वाले सत्येन्द्र ने इस चुनौती से पीछे नहीं हटा।

वह कहते है कि गरमी के मौसम में नदी के बालू को खोदकर पानी निकालकर सिंचाई किया। यही नहीं इन वृक्षों को दो से तीन किलोमीटर दूर से पानी लाकर सिंचाई किया। वह कहते है कि उत्पादित फल और सब्जियां गांव में विवाह समारोह पर मुफ्त में दे दिया जाता है। वृक्ष लगाने की प्रेरणा के सम्बंध में वह कहते है कि एक बार उनके गांव में दशरथ मांझी आए थे और कहा था कि यह जगह बाग-बगीचे के लिए उत्तम है।

इसके बाद उसका परिणाम अब सबके सामने है। वह कहते है कि आम, अमरूद, कटहल, पपीता, नींबू, कद्दू से भरे इस बाग का नाम भी दशरथ मांझी उद्यान ही रखा है। सत्येन्द्र तो अकेले ही अपनी मंजिल की ओर चला था परंतु उसे देखकर गांव और अन्य गांव के लोग भी इससे जुटते चले गए। आज सत्येन्द्र की प्रेरणा से गांव में 10 हेक्टेयर परती जमीन पर गांव के लोग पेड़ लगा चुके है। ग्रामीण सुनील कुमार कहते है कि नदी के किनारे पेड़ लगाने से जहां नदी का कटाव रूक गया है वहीं बाढ़ का खतरा भी कम रहता है। इसके अलावे पेड़ के फल भी आपके।

इधर, समाजसेवी अरविन्द वर्मा कहते है कि पहले यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित क्षेत्र था परंतु सत्येन्द्र की प्रेरणा से अब लोग खेती और पेड़ लगाने की ओर उन्मुख हो गए हैं। समाज के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना उनके मन में घर कर गई है। इस कारण सभी लोग खेती की ओर जज्बे के साथ लग गए है।

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