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मारे गए नक्सलियों तक पहुंचे विदेशी हथियारों ने बढ़ाई खुफिया एजेंसियों की चिंता

मुठभेड़ में मारे गए बड़े नक्सल कमांडरों के पास से अमेरिकी व जर्मन कंपनियों के अत्याधुनिक हथियारों की बरामदगी ने सुरक्षा बलों व खुफिया एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 07 Jul 2018 12:40 PM (IST)Updated: Sat, 07 Jul 2018 02:58 PM (IST)
मारे गए नक्सलियों तक पहुंचे विदेशी हथियारों ने बढ़ाई खुफिया एजेंसियों की चिंता
मारे गए नक्सलियों तक पहुंचे विदेशी हथियारों ने बढ़ाई खुफिया एजेंसियों की चिंता

रायपुर [कमलेश पांडेय]। छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ महीनों में मुठभेड़ में मारे गए बड़े नक्सल कमांडरों के पास से अमेरिकी व जर्मन कंपनियों के अत्याधुनिक हथियारों की बरामदगी ने सुरक्षा बलों व खुफिया एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है। नक्सलियों के पास से जो हथियार बरामद हुए हैं उसका इस्तेमाल देश में कोई भी सुरक्षा एजेंसी नहीं करती। ऐसे में घने जंगलों में नक्सलियों तक विदेशी हथियारों की पहुंच की उच्चस्तरीय जांच शुरू की गई है।

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छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग का अबूझमाड़ जंगल अपने नाम के अनुरूप आज भी रहस्य है। हालांकि सुरक्षा बलों को अबूझमाड़ के घने जंगलों में घुसकर नक्सलियों को घेरने में कामयाबी मिली है लेकिन जहां राशन, पानी की भी उपलब्धता कठिन चुनौती से कम नहीं, वहां सुरक्षा बलों पर जवाबी फायरिंग में नक्सली उनसे भी मारक हथियारों से गोलियां बरसा रहे हैं।

अबूझमाड़ स्थित जड्डा-मरकुर जंगल में बीते चार जुलाई को मुठभेड़ में मारे गए नक्सल संगठन कंपनी पांच के कमांडर किशोर के पास से हथियारों व विस्फोटकों का जखीरा सुरक्षा बलों को मिला। बरामद हथियारों में एक स्वचलित रायफल अमेरिकी कंपनी की मिली। राज्य में विदेशी हथियार मिलने का यह दूसरा मामला था। इससे पहले इसी साल सुकमा के किस्टाराम जंगल में हुई मुठभेड़ में मारे गए नक्सली के पास से जर्मन कंपनी हेकलर एंड कोच की जी-3 रायफल की बरामदगी की गई थी।

आखिर क्यों नक्सलियों का गढ़ है अबूझमाड़

दरअसल अबूझमाड़ अपने नाम की तरह ही आज तक एक अबूझ पहेली ही बना हुआ है। यहां जंगल इतना घना है कि सरकार और सुरक्षाकर्मी तो क्या धूप भी जमीन तक नहीं पहुंच पाती है। लेकिन नक्सलियों की तो जैसे यहां खेती लहलहाती है। यहां वे बेखौफ घूमते हैं और आसपास के इलाकों में अपने नापाक इरादों को अंजाम भी देते हैं।

करीब 3900 वर्ग किमी में फैले अबूझमाड़ के जंगलों को नक्सलियों के लिए सुरक्षित गढ़ माना जाता है। एक समय जर-जंगल और जमीन के लिए चला नक्सल आंदोलन विकास की रफ्तार में पीछे छूट गए इलाके के लोगों का रोष व्यक्त करने का माध्यम था। लेकिन कब यह खूनी खेल में बदल गया, खुद नक्सली विचारधारा के लोग भी इसका स्पष्ट जवाब नहीं दे पाते। तमाम सरकारें वर्षों से दूर-दराज के इलाकों तक विकास की रोशनी पहुंचाने के लिए काम कर रही हैं, लेकिन अपने मकसद से भटके ये लोग अब विकास की रफ्तार में ही रोड़ा बनकर खड़े हैं।

यह है असली अबूझमाड़

नारायणुपर, बीजापुर और दंतेवाड़ा जिले का पहाड़ी जंगली इलाका अबूझमाड़ कहलाता है। यहां से गुजरने वाली इंद्रावती नदी अबूझमाड़ को बस्तर के दूसरे इलाकों से अलग करती है। अबूझमाड़ में घने जंगलों, पहाड़ों और छोटी-छोटी नदियों के बीच कई गांव बसे हैं जहां अबूझमाड़िया आदिवासी रहते हैं। खास बात यह है कि अबूझमाड़िया बाहरी लोगों से मिलना-जुलना पसंद नहीं करते हैं। अबूझमाड़िया के अलावा यहां गोंड, मुरिया और हल्बास जनजातियां भी रहती हैं।

झारखंड में भी मिले थे अमेरिकी रायफल

पड़ोसी नक्सल प्रभावित राज्य झारखंड के लातेहार जिला स्थित जहर पहाड़ी पर 2015 में हुई मुठभेड़ में आठ अमेरिकी रायफलों की बरामदगी ने चौंकाया था। अमेरिकी एम-फोल्ट 4 व एके 56 मिलने की घटना के बाद जांच शुरू हुई लेकिन जांच एजेंसियां यह अब तक पता नहीं कर पाई कि नक्सलियों को हथियार आखिर किसके जरिये मिले। विदेशी हथियार के आयात पर देश में 1971 से प्रतिबंध लगा होने के बाद हथियार की तस्करी आखिर किस रास्ते हो रही है।

पूर्वोत्तर व नेपाल कनेक्शन पर ध्यान

बस्तर संभाग के आइजी विवेकानंद ने बताया कि बरामद विदेशी हथियारों को फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है। उन्होंने कहा कि जांच के बाद ही कुछ स्थिति साफ होगी। उन्होंने यह भी बताया कि राज्य के नक्सलियों के नेपाल व पूर्वोत्तर लिंक के खुफिया इनपुट पहले भी मिलते रहे हैं। बांग्लादेश व म्यांमार सीमा से अमेरिका, जर्मन के हथियारों के तस्करी के इनपुट तो रहे हैं लेकिन इनकी नक्सलियों को सप्लाई के कोई साक्ष्य अब तक नहीं मिले हैं। पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच हो रही है। इसमें केंद्रीय एजेंसियों की मदद भी ली जा रही है। 


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