नौसेना ध्वज लहराने के साथ गोर्शकोव बना विक्रमादित्य
सुदूर उत्तरी रूस में लंबे इंतजार के बाद विमानवाहक पोत गोर्शकोव पर भारतीय नौसेना का ध्वज लहराने के साथ भारत को विशाल जंगी जहाज हासिल हो गया। साथ ही रक्षा मंत्री एके एंटनी की मौजूदगी में 44500 टन वजनी इस विशाल युद्धपोत को आधिकारिक तौर पर नया नाम आइएनइस विक्रमादित्य हासिल हो गया। डेढ़ महीने का सफर तय कर पोत के ज
नई दिल्ली [जाब्यू]। सुदूर उत्तरी रूस में लंबे इंतजार के बाद विमानवाहक पोत गोर्शकोव पर भारतीय नौसेना का ध्वज लहराने के साथ भारत को विशाल जंगी जहाज हासिल हो गया। साथ ही रक्षा मंत्री एके एंटनी की मौजूदगी में 44500 टन वजनी इस विशाल युद्धपोत को आधिकारिक तौर पर नया नाम आइएनइस विक्रमादित्य हासिल हो गया। डेढ़ महीने का सफर तय कर पोत के जनवरी में भारत पहुंचने की उम्मीद है जो भारत की नौसैनिक ताकत में इजाफे के साथ ही उसके दबदबे का दायरा भी बढ़ाएगा।
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सेवमाश शिपयार्ड में शून्य से पांच डिग्री नीचे तापमान और सर्द हवाओं के बीच आयोजित समारोह में पोत के कागजात रूसी निर्यातक कंपनी रोसोबोरोन एक्सपोर्ट ने इसके नए कमांडर कैप्टन सूरज बेरी को सौंपे। यूं तो इस पोत से 2008 में ही रूसी ध्वज उतर जाना था लेकिन सौदे की कीमत में आए बदलावों और कामकाज की अड़चनों के बीच इसे तैयार करने में पांच साल की देरी हो गई। हालांकि देरी आए दुरुस्त आए की तर्ज पर खुशी जताते हुए रक्षा मंत्री एके एंटनी ने कहा कि विक्रमादित्य भारतीय नौसेना की ताकत और पहुंच में व्यापक इजाफा करेगा।
एंटनी के शब्दों में मिग-29के लड़ाकू विमान, कामोव-31 हेलीकाप्टर से लैस होने के बाद यह युद्धपोत भारतीय नौसेना की शक्ति को नया आयाम देगा। विक्रमादित्य का अर्थ है सूर्य की तरह शक्तिशाली और इस पोत का सूत्रवाक्य भी कहता है दूर तक वार करो, सटीक वार करो। महत्वपूर्ण है कि यह पोत समंदर में करीब पांच सौ किमी के दायरे में मारक क्षमता का दायरा बना सकता है। हालांकि फिलहाल विक्रमादित्य की तैनाती के लिए नौसेना को अभी कुछ और इंतजार करना होगा क्योंकि इसके लिए लड़ाकू पायलटों का परीक्षण होना है। साथ ही अभी किसी हवाई हमले के खिलाफ बचाव की मिसाइल रक्षा प्रणाली भी इसके पास नहीं है।
रूस से विक्रमादित्य को लिवाने के लिए भारतीय नौसेना के युद्धपोत भी भेजे गए हैं। दिसंबर की शुरुआत में भारत के लिए सफर शुरु करने पर आइएनएस दीपक व आइएनएस त्रिखंड इसकी हिफाजत के लिए मरमंस्क से साथ चलेंगे। वहीं मेडिटरेनियन सागर में दो और नौसैनिक युद्धपोत इसकी रक्षा के लिए जुड़ेंगे। यह पोत कारवार में भारतीय तट को छुएगा। इस पोत के लिए भारत और रूस के बीच यूं तो कवायद 1997 में शुरु हुए थी लेकिन सौदे पर दिसंबर 2004 में दस्तखत हो पाए थे। करीब नौ सालों के बाद भारत को मिल रहा यह पोत हिंद महासागर ही नहीं इसके आगे भी भारत के सैन्य दबदबे को बढ़ाएगा। इसके आने पर क्षेत्र में भारत एक मात्र देश होगा जिसके पास दो विमानवाहक पोत की ताकत होगी।
नौसेना के मुताबिक आईएनएस विक्रमादित्य आठ हजार टन से अधिक भार ढोने और सात हजार समुद्री मील या तेरह हजार किलोमीटर तक अपनी गतिविधियां चलाने में सक्षम है। चलते फिरते शहर जितना बड़े इस पोत पर करीब 1600 लोग रह सकते हैं और यह एक दिन में करीब 600 मील की रफ्तार से चल सकता है।
विक्रमादित्य खूबियां
लंबाई- 282 मीटर, चौड़ाई 60 मीटर यानी कुल तीन फुटबॉल मैदानों के बराबर
-ऊंचाई- निचले छोर से ऊच्चतम शिखर तक 20 मंजिल
-इस्पात का तैरता शहर, एक बार में 1600 से अधिक लोग होंगे तैनात
- आठ हजार टन वजन ले जाने में सक्षम
-13000 किमी के दायरे में किसी सैन्य अभियान के संचालन में सक्षम
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