नवरात्र में व्रत, रमजान में रोजे
आगरा [आदर्शनंदन गुप्त]। ये मुहब्बत की जमीं है। शायद तभी तो कई सांप्रदायिक दंगों से उठीं चीखें भी मुगल सम्राट अकबर के 'दीन-ए-इलाही' के संदेश को फिजां से मिटा नहीं सकी हैं। रमजान के पाक महीने में यहां सांप्रदायिक सौहार्द्र की नई 'इबारत' लिखी जाती है। कुरान की आयतों संग रामायण की चौपाई और गीता के संदेश गूंजते हैं। मस्जिद
आगरा [आदर्शनंदन गुप्त]। ये मुहब्बत की जमीं है। शायद तभी तो कई सांप्रदायिक दंगों से उठीं चीखें भी मुगल सम्राट अकबर के 'दीन-ए-इलाही' के संदेश को फिजां से मिटा नहीं सकी हैं। रमजान के पाक महीने में यहां सांप्रदायिक सौहार्द्र की नई 'इबारत' लिखी जाती है। कुरान की आयतों संग रामायण की चौपाई और गीता के संदेश गूंजते हैं। मस्जिद की अजानों के संग मंदिर-जिनालयों के घंटे सुर मिलाते हैं। वहां इफ्तार होता है तो यहां फलाहार। नवरात्र में व्रत रखने वाले उसी शिद्दत से रमजान में रोजे रखते हैं। ताजनगरी में ऐसे भी कई हिंदू हैं, जिनकी भावनाएं न जाने कितने वर्षो से 'ईश्वर अल्लाह, तेरो नाम..' को हकीकत में गुनगुना रही हैं। सर्वधर्म सद्भावना का यह संदेश देने वालों में ब्राह्माण और जैन धर्म के लोग भी हैं। प्रतापपुरा स्थित मरकज साबरी दरगाह के सज्जादानशीं हाजी रमजान अली शाह द्वारा सर्वधर्म सद्भाव की प्रेरणा दी जा रही है, जिसके तहत कई हिंदुओं ने रोजे रखे हैं। हालांकि अपने हिंदू धर्म के प्रति भी उनकी दृढ़ आस्था है। हिंदू रोजेदार भले ही मुस्लिमों की तरह सारे नियमों का पालन न कर सकें, लेकिन उनकी भावनाएं रमजान की तरह ही पाक हैं। दिन भर पानी की एक बूंद अपने हलक में नहीं उतरने देते। पांच वक्त की नमाज नहीं पढ़ सकते, कुरान की आयतें नहीं जानते, लेकिन उस वक्त पूजा-पाठ और ध्यान-साधना करते हैं। कोई आरती गाता है तो कोई माला का जाप करता है। ये तीस दिन उसी संयम के साथ बिताने की कोशिश ये करते हैं। इनमें बहुत से ऐसे हैं, जो पूरे महीने रोजे [व्रत] नहीं रखते, लेकिन पांच-छह दिन जरूर रखते हैं। यह सिलसिला कई वर्षो से चल रहा है।
बदल जाता है घर का माहौल
ये हिंदू रोजेदार बताते हैं कि वे नमाज के वक्त अपने गुरु और इष्ट के प्रति ध्यान, साधना करते हैं। इस पूरे महीने नियम, संयम से रहते हैं। टीवी देखने और मनोरंजन करने से वे बचते हैं। मस्जिद जाने की बजाए मंदिर या अपनी मान्यता वाली दरगाहों पर जरूर जाते हैं।
सद्भाव के गुलदस्ते के ये हैं फूल
छीपीटोला निवासी विजय कुमार जैन [42] प्रतापपुरा स्थित मरकज साबरी दरगाह की प्रबंध समिति के सचिव हैं। उन्होंने बताया कि 22 सालों से उनका इस दरगाह से जुड़ाव है, क्योंकि यहां सर्वधर्म सद्भाव का गुलदस्ता खिला हुआ है। शुरू से ही वे 30 दिन के रोजे रखते आ रहे हैं। इसके बावजूद जैन धर्म के प्रति उनकी अटूट आस्था है। वे चातुर्मास में जैन व्रत भी रखते हैं। बल्केश्वर निवासी चंद्रमोहन गौड़ एक केमिकल फैक्ट्री में सेवारत थे। वे बताते हैं कि 30 साल से वे 30 दिन के रोजे रख रहे हैं। उन्हें लगता ही नहीं कि वे मुस्लिमों की पूजा-पद्धति को अपना रहे हैं, क्योंकि इसी भावना से नवरात्र पूजन करते हैं। नगला पदी निवासी गुरुप्यारी 15 साल से रोजे रखकर अपनी आस्था व्यक्त कर रही हैं। उनका मानना है कि सभी धर्म एक हैं। परम शक्ति को ईश्वर मानती हैं। उसी का नाम अल्लाह भी है। ईदगाह निवासी गायत्री देवी ने बताया कि प्रतापपुरा की दरगाह के प्रति उनके सभी परिजनों की निष्ठा है। वे भी नियमित रोजा रखती हैं। डिफेंस कॉलोनी में रहने वाले एनके पांडे और उनकी पत्नी ममता पांडे करीब 12 साल से रमजान को मानते चले आ रहे हैं। 14वें दिन एक दिन का रोजा इनके बच्चे अर्पित [8], श्यामू [12] और दीपा [14] भी रखते हैं। इंद्रपुरी निवासी अंजू सिंह भी 12 साल से रोजा रख रही हैं। सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय मुरारीलाल गोयल [पेंट वाले] भी रमजान के महीने में पांच दिन केरोजे रखते हैं। उन्होंने बताया कि करीब 20 साल से छीपीटोला स्थित बाबा महमूद अली शाह की मजार से उनका जुड़ाव है। तभी से हर रमजान के पहले और आखिरी दिन व तीन मंगलवार को रोजा रखते हैं।
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