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जानें-कश्मीर में तैनात NSG कमांडो की काबिलियत, पलक झपकते ही कर देते हैं दुश्‍मन का खात्मा

एनएसजी को जर्मनी की जीएसजी-9, बार्डर गार्ड ग्रुप की तर्ज पर बनाया गया है। जीएसजी-9 को आतंक विरोधी कार्रवाई के लिए विश्व की सबसे आला दर्जे की स्पेशल फोर्स माना जाता है।

By Tilak RajEdited By: Published: Fri, 22 Jun 2018 11:12 AM (IST)Updated: Fri, 22 Jun 2018 11:16 PM (IST)
जानें-कश्मीर में तैनात NSG कमांडो की काबिलियत, पलक झपकते ही कर देते हैं दुश्‍मन का खात्मा
जानें-कश्मीर में तैनात NSG कमांडो की काबिलियत, पलक झपकते ही कर देते हैं दुश्‍मन का खात्मा

नई दिल्‍ली, जेएनएन। जम्‍मू-कश्‍मीर में भाजपा और पीडीपी का गठबंधन टूटने के बाद ये कहा जा रहा था कि अब आतंकियों के खिलाफ सेना का अभियान तेज होगा। लेकिन इतनी जल्‍दी सरकार एनएसजी कमांडो को कश्‍मीर घाटी में उतार देगी, शायद ही किसी ने सोचा होगा। एनएसजी यानि नेशनल सिक्‍योरिटी गार्ड्स की तैनाती जम्‍मू-कश्‍मीर में कर दी गई है। एनएसजी का एक दस्‍ता कश्‍मीर में पहुंच चुका है। एनएसजी को जम्मू कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों के लिए तैनात करने की योजना गत वर्ष बनी थी और इस प्रस्ताव पर औपचारिक मुहर गत मई माह के दौरान ही केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लगाई है। 26/11 मुंबई आतंकी हमले, पठानकोट एयर बेस पर आतंकी हमले और अक्षरधाम आतंकी हमले में भी एनएसजी के कमांडोज ने ही आतंकियों को ठिकाने लगाया था। कहते हैं कि एनएसजी कमांडोज का निशाना एकदम सटीक होता है कि ये अंदाजा लगाकर आंख बंद करके भी दुश्मन को ढेर कर सकते हैं।

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क्यों और कब बनाने की ज़रूरत पड़ी
नेशनल सिक्योरिटी गार्ड यानि एनएसजी, की स्थापना वर्ष 1984 में हुयी थी। यह वो वक्त था जब भारत के पंजाब राज्य में अलग खालिस्तान राज्य की मांग को लेकर एक आंदोलन चलाया जा रहा था। जिसकी वजह से समूचे पंजाब की सुरक्षा व्यवस्था को खतरा उत्पन्न हो गया था। पंजाब में कानून व्यवस्था और आतंकी वारदातों को रोकने के लिए स्पेशल फोर्स की जरुरत महसूस हुई, जिसके बाद एनएसजी की स्थापना की गयी।

एनएसजी कमांडो की ट्रेनिंग
एनएसजी कमांडो काले रंग की ड्रेस पहनते हैं, जिसकी वजह से इन्हें ब्लैक कैट कमांडो भी कहा जाता है। एनएसजी कमांडो की शुरुआती 90 दिनों की ट्रेनिंग हरियाणा के मानेसर में होती है। इस ट्रेनिंग को पूरी करने वाले सैनिकों को नौ महीने की और ट्रेनिंग दी जाती है, जिसके तहत उन्हे 26 पैमानों पर खरा उतरना होता है। इस ट्रेनिंग के दौरान उन्हें ऊंचाई से छलांग लगाने के साथ तनाव के दौरान कार्य करने, निशाना लगाना की ट्रेनिंग दी जाती है। एनएसजी कमांडो को पार्कर और पेक्की-तिरसिया काली की तर्ज पर प्रशिक्षित किया हैं, जो कि फिलीपींस के मार्शल आर्ट का एक रूप है। नौ माह की ट्रेनिंग पूरी होने के बाद इन्हें अगले दौर की ट्रेनिंग दी जाती है। यह ट्रेनिंग इनती कठिन होती है कि इसमें करीब 50 से 70 फीसद सैनिक बाहर निकल जाते हैं। एनएजी कमांडो को सीधे सिर पर गोली मारने की ट्रेनिंग दी जाती है।

जर्मनी के जीएसजी 9 की तर्ज पर एनएसजी का गठन
एनएसजी को जर्मनी की जीएसजी-9, बार्डर गार्ड ग्रुप की तर्ज पर बनाया गया है। जीएसजी-9 को आतंक विरोधी कार्रवाई के लिए विश्व की सबसे आला दर्जे की स्पेशल फोर्स माना जाता है। एनएसजी में भर्ती पूरी तरह से डेपुटेशन पर होती है। सेना के लोगों के लिए डेपुटेशन की 2-3 साल के बीच होती है। पैरामिलिटरी फोर्सेज के के लिए यह अवधि 2-5 साल के बीच होती है। एनएसजी कमांडो को दो समूहों स्पेशल एक्शन ग्रुप और स्पेशल रेंजर्स ग्रुप में बांटा जाता है। स्पेशल एक्शन ग्रुप में 54 फीसद सैनिक शामिल किये जाते है और बाकी एनएसजी कमांडो को केंद्रीय पुलिस संगठन, सीआरपीएफ, बीएसएफ और इंडो तिब्बत बार्डर पुलिस और रैपिड एक्शन पुलिस के साथ साझा कार्रवाई के लिए रखा जाता है।

आंख बंद करके भी लगा सकते निशाना!
एनएसजी कमांडोज का निशाना एकदम सटीक होता है। कहा जाता है कि ये अंदाजा लगाकर आंख बंद करके भी दुश्मन को ढेर कर सकते हैं। सटीक निशाना पाने के लिए 50 से 62 हजार गोलियों की फायरिंग कर अभ्यास करते हैं, जबकि एक साधारण सैनिक अपने 20 साल के पूरे कार्यकाल में भी इतनी फायरिंग अभ्यास नहीं कर पाता। इनकी फायरिंग ट्रेनिंग भी सबसे अलग और जटिल होती है। इस दौरान रंगरुटों को 25 सेकेंड में 14 अलग-अलग टारगेट पर निशाना लगाना होता है। ये सभी निशाने अलग-अलग हो सकते हैं. इस दौरान अगर कोई रंगरुट जवान एक बार में 10 से कम निशाना लगा पाता है तो उसे उतनी ही बार और ज्यादा फायर प्रैक्टिस करनी होती है, जब तक वह न्यूनतम टारगेट पर निशाना न लगा लें.

हवा, पानी और जमीन पर हमला करने में सक्षम
एनएसजी कमांडोज हवा, पानी, जमीन और आग लगे क्षेत्र में भी हमला करने में सक्षम होते हैं। एक साधारण सैनिक के मुकाबले पानी में छिपने और वहां से हमला करने की ताकत ज्यादा होती है। एनएसजी कमांडोज अत्याधुनिक हथियारों और उपकरणों से लैस होते हैं। NSG की क्रेक टीम दूर से मार करने वाले स्नाइपर के अलावा, एमपी 5 सब मशीन गन, स्नाइपर राइफल, वाल पेनिट्रेशन राडार, ग्लोक पिस्टल और सी-4 एक्सप्लोसिव से लैस होती है।

कब-कब हुआ एनएसजी कमांडों का इस्तेमाल
NSG का मुख्य काम एंटी हाईजैक, एंटी टेररिज्म और वीआईपी लोगों की सुरक्षा करना है। NSG का हेडक्वार्टर गुरुग्राम में स्थित है। मुंबई में 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकवादी हमला हुआ। आतंकवादियों को खत्म करने के लिए NSG कमांडो को भेजा गया। मुंबई हमलों के बाद NSG कमांडो को अन्य शहरों में भी नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स फाॅर्स के सेंटर बनाने की बात को महसूस की गई। राजधानी दिल्ली के अलावा कोलकाता, हैदराबाद,चेन्नई और मुंबई में NSG के सेंटर बनाये गए।

गांधीनगर अक्षरधाम मंदिर हमला- सितंबर 2002 में गुजरात के गांधीनगर स्थित अक्षरधाम मंदिर में आतंकवादी हमला किया था। गुजरात के गांधीनगर स्थित अक्षरधाम मंदिर पर 24 सितंबर 2002 को दो बंदूकधारियों ने हमला किया था। हमले में 30 लोगों की मौत हो गयी थी, जबकि 80 से ज्यादा लोग घायल हो गये थे। हालांकि अगर एनएसजी कमांडो को सही वक्त पर नहीं उतारा गया होता, तो मृतकों की संख्या ज्यादा हो जाती। एनएसजी कमांडो ने मंदिर पर हमला करने वाले दोनों आतंकवादियों को मार गिराया गया था।

मुंबई 26/11 हमला- मुंबई में 26 नवंबर को हुए आतंकी हमला हुआ था, जिसमें 164 लोगों की मौत हो गयी थी, जबकि 308 लोग मारे गये थे। पाक प्रयोजित इस आतंकी हमले का मास्टरमाइंड हाफिज सईद है। उसकी अगुवाई में मुंबई के छह स्थानों पर आतंकी हमले किये गये। इनमें ताज होटल, कामा अस्पताल, ओबेराय ट्रिडेंट अस्पताल, रेल टर्मिनल, लियोपोल्ड कैफे और मुंबई चाबाड हाउस शामिलि थे। आतंकियों के खिलाफ एनएसजी की ओर से ऑपरेशन ब्लैक टार्नेडो चलाया गया और सभी नौ आतंकियों को मार गिराया गया और एक आतंकी अजमल कसाब को जिंदा पकड़ा गया। हालांकि इस ऑपरेशन में एनएसजी के एक कमांडो संदीप उन्नीकृष्णनन और गजेंद्र सिंह बिष्ट को जान गंवानी पड़ी।

पठानकोट एयरबेस हमला- जनवरी के पहले हफ्ते में पंजाब स्थित एयरफोर्स बेस पर आतंकवादियों के हमला किया था। एयरबेस पर हमले में शामिल आतंकवादियों के खात्मे के लिए NSG कमांडो को पठानकोट भेजा गया। NSG ने अन्य सुरक्षा कर्मियों के साथ हमले में शामिल सभी आतंकवादियों को मार गिराया।

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