Lockdown: कभी समय न होने का रोते थे रोना अब है भरपूर, तो क्यों न उठाएं इसका पूरा फायदा
कोरोना वायरस की बदौलत ही सही लेकिन हमें बेशकीमती समय मिल गया है अपनों के साथ बिताने का जिसको हम तरस रहे थे।
डॉ निमेष जी देसाई। कभी तो हम व्यस्तता को कोसते आ रहे थे। भागदौड़ भरी जिंदगी के बीच हमारे पास समय ही कहां था कि हम अपने मां-बाप के साथ बैठकर उनसे लंबी बातचीत करें। पत्नी और बच्चों के साथ समय बिता सकें। कभी यह ध्यान ही नहीं दिया कि जो घर में रहते हैं, वे 24 घंटे कैसे गुजारते हैं। ये सब देखने का अवसर मिल गया है। हर कोई घर में है।
हो सकता है कि इनमें ऐसे भी हों जो अकेले हों। लेकिन अधिकतर अपने परिवार के साथ हैं। हर जगह जान पर आफत है तो चिंतित होना तो लाजिमी है। लेकिन याद कीजिए, रोजमर्रा के कार्यों को करते हुए कभी ऐसा भी तो ख्याल आया होगा कि अगर समय होता तो घर में रहकर मैं ये कर सकता था। तो अब कीजिए न। जीवन की कई अभिलाषाएं, जो घर में रहकर पूरी की जा सकती थीं, उनको करने का अवसर मिला है। ये समय अपने कुछ शौक पूरे करने मौका दे रहा है। किसी को किताबें पढ़नी थीं या लिखनीं थी, उनके लिए यह अच्छा अवसर है। घर में रहकर गाना गा सकते हैं, डांस भी कर सकते हैं।
कौन मना करेगा। हो सकता है लूडो और कैरम खेलना भूल गए हों तो बच्चों या परिवार के अन्य सदस्यों के साथ फिर से विशेषज्ञ बन जाइए। एक चीज स्पष्ट है कि सबकुछ हमारी सोच पर निर्भर है। सकारात्मक सोच रखेंगे तो अवसर है और नकारात्मक सोच है तो आफत। ये आफत भविष्य में भी बनी रह सकती है। सकारात्मक सोच के लिए इसलिए जोर दे रहा हूं कि इससे मन और शरीर दोनों स्वस्थ रहेंगे। सकारात्मक सोच से हमारे दिमाग में डोपामिन नामक रसायन उत्पन्न होता है। इसी तरह से हमारे शरीर में ऐसे हार्मोन पैदा होते हैं जो स्वस्थ व्यक्ति के लिए जरूरी हैं। स्वस्थ शरीर सबसे जरूरी है।
इसके बाद खान-पान की व्यवस्था और उसके बाद दैनिक जरूरतें और फिर अभिलाषाओं का नंबर आता है। तो हमें सबसे पहले शरीर पर ध्यान देना है। दिमाग भी इसी का एक हिस्सा है। घर में रहने से यह जरूर है कि आप समाज से कट गए हैं। लेकिन इस समय ने आपको परिवार के साथ रहने का अवसर दिया है। बाहर नहीं निकलने से शारीरिक श्रम नहीं हो पा रहा है तो घर में ही रहकर व्यायाम कीजिए। व्यायाम नहीं कर सकते तो घर में इतने सारे काम है उसमें कोई चुन लें। घरेलू सहायक नहीं आ रहे तो लोगों के पास इसका भरपूर मौका है। शरीर स्वस्थ है और दिनचर्या के सामान आपके पास हैं तो अपना समय रचनात्मकता को दीजिए। कुछ नया करें। अपने आपको व्यस्त रखें।
अब उनकी बात करते हैं जिनके पास जरूरत का सामान नहीं है। अकेले कहीं फंस गए हैं। ऐसे लोगों को देखने की जिम्मेदारी उन लोगों को उठानी चाहिए जो सक्षम हैं। अपने आसपड़ोस में ऐसे लोगों के बारे में पता लगाएं। उनकी मदद करें। अकेले में रहने वालों को अवसाद की समस्या हो सकती है। जब लोग उनकी मदद करेंगे तो इससे वह बच सकते हैं। कुछ ऐसे भी लोग हो सकते हैं जो परिवार के साथ हैं लेकिन जरूरत का सामान उनके पास नहीं है। ऐसे लोगों में चिड़चिड़ापन और गुस्सा देखा जा सकता है।
निदेशक- इहबास (मानव व्यवहार व संबद्ध विज्ञान संस्थान)
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