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नासा ने जारी किया वीडियो, केरल में आई बाढ़ के पीछे है ये वजह

नासा ने उपग्रह से से मिली जानकारी का इस्तेमाल करते हुए एक वीडियो जारी किया है, इसमें केरल में बारिश और बाढ़ की भयंकर स्थिति का पता चलता है।

By Vikas JangraEdited By: Published: Wed, 22 Aug 2018 07:26 PM (IST)Updated: Wed, 22 Aug 2018 07:26 PM (IST)
नासा ने जारी किया वीडियो, केरल में आई बाढ़ के पीछे है ये वजह
नासा ने जारी किया वीडियो, केरल में आई बाढ़ के पीछे है ये वजह

वाशिंगटन [एजेंसी]। नासा ने उपग्रह से से मिली जानकारी का इस्तेमाल करते हुए एक वीडियो जारी किया है, इसमें केरल में बारिश और बाढ़ की भयंकर स्थिति का पता चलता है। गौरतलब है कि भारत में आम तौर पर इस समय में ग्रीष्मकालीन मॉनसून आता है और भारी बारिश होती है। हालांकि सामान्य मॉनसून के दौरान समय-समय पर कम दबाव के क्षेत्र बन सकते हैं, इस कारण ज्यादा बारिश हो सकती है। केरल पिछले सौ साल में सबसे विनाशकारी बाढ़ से जूझ रहा है और अब तक साढ़े तीन के करीब लोगों की मौत हो चुकी है। बाढ़ के कारण हजारों लोग विस्थापित हुए हैं। केंद्र ने इसे ‘गंभीर आपदा’बताया है।

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नासा ने अपने बयान में कहा है कि 13 से 20 अगस्त के बीच भारत में दो बैंड (हिस्सों) में भारी मात्रा में बारिश का पानी जमा हुआ है। पहला हिस्सा भारतीय प्रायद्वीप के उत्तरी भाग में फैला हुआ है और इसका विस्तार पश्चिमी छोर की ओर 5 इंच से अधिक की साप्ताहिक बारिश के साथ बंगाल की खाड़ी के पूर्वी छोर के हिस्सों तक है, जहां सप्ताह में 14 इंच तक बारिश होती है। 

केरल में भारी बारिश और बाढ़ का यह है कारण; नासा ने किया खुलासा, देखें VIDEO

वहीं, दूसरे हिस्से में हिमालय की भौगोलिक स्थिति और पश्चिमी घाट के कारण दक्षिणी पश्चिमी तट पर भारी बारिश हो रही है। यह पर्वतश्रेणी हिमालय जितनी बड़ी तो नहीं है लेकिन भारत के पश्चिमी तट के समानांतर चलती हैं। इसकी कई चोटियां 2,000 मीटर से भी अधिक ऊंची हैं। 

इस तरह से देखें तो पश्चिमी घाट की माकूल स्थिति के कारण भारत के पश्चिमी तटीय इलाकों में अधिक बारिश होती है. दक्षिण पश्चिम मॉनसून के तहत उत्तरी हिंद महासागर और अरब सागर से आने वाली गर्म हवाओं में निहित नमी इस पर्वत श्रेणी से टकराती है, जिससे अधिक बारिश होती है।

जीपीएम, वैश्विक वर्षा मापक मिशन कोर का उपग्रह है। यह नासा और जापान एयरोस्पेस एजेंसी, जैक्सा का संयुक्त मिशन है। इसके जरिए बारिश के डाटा हर आधे घंटे पर अपडेट होता है और वैज्ञानिकों को लगभग रीयल टाइम में दुनिया भर में वर्षा को ट्रैक करने की सुविधा मिलती है।


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