मंगल पर भेजे गए Ingenuity हेलीकॉप्टर की पहली और ऐतिहासिक उड़ान को तैयार हो रहा नासा
मंगल पर सफलता की नई कहानी लिखने वाला नासा अब लाल ग्रह की सतह पर Ingenuity हेलीकॉप्टर की उड़ान के लिए खुद को तैयार कर रहा है। इस राह में चुनौती भी कम नहीं हैं। इसमें टीम में सभी के बीच तालमेल जरूरी होगा।
नई दिल्ली (एएनआई)। नासा मंगल मिशन पर भेजे गए परसिवरेंस में लगे इंजेन्वनिटी मार्स हेलीकॉप्टर की पहली कंट्रोल फ्लाइट के लिए खुद को तैयार कर रहा है। इस तरह से ये पहला मौका होगा जब कोई हेलीकॉप्टर मंगल की सतह से उड़ेगा और उसका नजारा कैमरे में कैद करेगा। इसके लिए 8 अप्रैल 2021 का दिन तय है। 2 किग्रा से भी कम वजनी ये इंजेन्वनिटी हेलीकॉप्टर बेहद कमाल का है। आपको बता दें कि नासा इस मिशन के दौरान पहले ही काफी कुछ कमाल दिखा चुका है। नासा की इस मिशन की टीम ने कई मील के पत्थर इस दौरान स्थापित किए हैं।
जहां तक इंजेन्वनिटी हेलॉकॉप्टर की बात है तो आपको बता दें कि ये फिलहाल परसिवरेंस रोवर के साथ ही अटैच है। पिछले दिनों इस रोवर ने मार्स की सतह पर चहलकदमी की थी जिसका एक वीडियो भी नासा ने जारी किया था। इस वीडियो में इसकी आवाज भी सुनाई दे रही थी और इसकी वजह से मार्स की सतह पर बने निशान भी साफ देखे जा सकते थे। ये रोवर 18 फरवरी को मार्स पर सफलतापूर्वक उतरा था।
नासा का ये रोवर फिलहाल उसी जगह पर है जहां इंजेन्वनिटी को अपनी एतिहासिक उड़ान भरनी है। नासा के प्लानेटरी साइंस डिवीजन के डायरेक्टर लॉरी ग्लेज का कहना है कि 1997 में नासा के सोजर्नर रोवर ने पहली बार इस ग्रह की सतह को छुआ था। उस वक्त ये बात साबित हो गई थी कि इस लाल ग्रह पर चलना मुमकिन है। इस मिशन ने भावी मिशन को एक नई सोच और आयाम दिया था। यही सोच इसके बाद मंगल पर भेजे गए सभी मिशन पर लागू हुई थी। उनका कहना है कि इंजेन्वनिटी वैज्ञानिक काफी कुछ जानना चाहते हैं। यदि अपने काम में इंजेन्वनिटी सफल होता है तो इसको और आगे तक बढ़ाया जाएगा। इस तरह से ये भविष्य में मंगल पर होने वाली खोज में अहम भूमिका भी अदा कर सकेगा।
आपको बता दें कि नासा पर कंट्रोल तरीके से उड़ान भरना काफी मुश्किल काम है। नासा के मुताबिक ये धरती पर उड़ान भरने से कहीं अधिक मुश्किल है। मंगल ग्रह पर धरती के मुकाबले केवल एक तिहाई ग्रेविटी है। वहीं उसका वातावरण धरती के मुकाबले केवल एक फीसदी ही घना है। वहां पर धरती के मुकाबले सूरज की आधी ही रोशनी पहुंच पाती है। वहीं मंगल पर रात का तापमान 130 डिग्री तक नीचे गिर जाता है। ये तापमान किसी भी चीज को जमा सकता है और इलेक्ट्रिकल उपकरणों या कलपुर्जों को तोड़ सकता है। इंजेन्वनिटी को परसिवरेंस में जगह को देखते हुए ही तैयार किया गया है। इसलिए ही इसको साइज में छोटा रखा गया है।
मंगल पर उड़ान भरने लायक बनाने के लिए इसका वजन भी काफी कम रखा गया है। मंगल पर गिरते तापमान के दौरान इसमें लगा हीटर इसको गर्म रखेगा। इस मिशन पर लॉन्च करने से पहले इस हेलीकॉप्टर का मार्स की ही तरह एक वैक्यूम चैंबर बनाकर टेस्ट किया गया है। ये चैंबर नासा की जेट प्रपल्शन लैब ने दक्षिणी केलीफॉर्निया में बनाया है। इसको पूरी तरह से मंगल का ही रूप दिया गया है। वहां की तरह चट्टानें और वातावरण और वहां का तापमान, सबकुछ समान है।
मार्स हेलीकॉप्टर के चीफ इंजीनियर बॉब बलराम का कहना है कि इस यात्रा की शुरुआत छह वर्ष पहले हो गई थी। उनके मुताबिक इस हेलीकॉप्टर को डिप्लॉय करना और फिर इसको उड़ाना वास्तव में बेहद चुनौतीपूर्ण होगा। इस हेलीकॉप्टर की एयर फील्ड करीब 33 फीट बाए 33 फीट है। एक बार हेलीकॉप्टर और रोवर की टीम ये सुनिश्चित कर लेगी कि ये दोनों सही जगह पर अपनी एयरफीलड में हैं तो उसके बाद ही इसको डिप्लॉय कर उड़ान के लिए तैयार किया जाएगा और ये इतिहास रचने के लिए तैयार होगा।
मार्स हेलीकॉप्टर इंटीग्रेशन के फराह अलीबे का कहना है कि इससे पहले इस तरह का प्रयोग कभी नहीं किया गया है। एक बार यदि इसको डिप्लॉयड कर दिया तो फिर कदम पीछे नहीं खींचे जा सकते हैं। इस मिशन की सफलता के लिए जरूरी है सभी टीम के सदस्यों के बीच बेहतर तालमेल हो। इस मिशन के लिए हर कोई एक दूसरे के भरोसे होगा। यदि कभी भी ऐसा लगा कि तय प्रक्रिया के मुताबिक काम नहीं हो रहा है तो इसको रोक दिया जाएगा और फिर आगे के लिए सोचा जाएगा।
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Join us as we discuss the upcoming milestones and next steps for the #MarsHelicopter as we get closer to its first flight attempt. https://t.co/KP0DQPqfXn" rel="nofollow— NASA JPL (@NASAJPL) March 23, 2021
इस हेलीकॉप्टर के डिप्लॉयमेंट का प्रोसेस करीब छह दिन का है। पहली बार में नासा हैडक्वार्टर में बैठी टीम बोल्ट ब्रेकिंग डिवाइस को रिलीज करेगी जो हेलीकॉप्टर को लॉन्च और लैंडिंग में मदद करेगा। इसके बाद वो एक पायरो टेक्निक डिवाइस के जरिए हेलीकॉप्टर को अपनी ही जगह पर घुमाने की कोशिश करेंगे। इसके बाद इसकी लैंडिंग लैग्स की जांच होगी और फिर अंतिम पड़ाव होगा।