नासा ने तस्वीरों में बयां किया केरल में तबाही का मंजर, अस्त-व्यस्त हुआ जीवन
नासा ने उपग्रह से मिली जानकारी का इस्तेमाल करते हुए एक वीडियो जारी किया है, इसमें केरल में बारिश और बाढ़ की भयंकर स्थिति का पता चलता है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भारत के दक्षिण राज्य केरल में भयंकर बाढ़ और तबाही के बाद जनजीवन फिर से पटरी पर लौटने की कोशिश में है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने केरल में आई बाढ़ से पहले और बाद की दो तस्वीरें माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर पर जारी की हैं। इसमें से एक तस्वीर 6 फरवरी की और दूसरी 22 अगस्त की है। दोनों तस्वीरों में अंतर देखकर राज्य में विनाशकारी बाढ़ के प्रभाव का अंदाजा लगाया जा सकता है।
तस्वीरों में बयां किए हालात
नासा ने ट्विटर पर सेटेलाइट तस्वीरें शेयर करते हुए लिखा कि केरल के कई गांव भारी मानसूनी बारिश और अगस्त में मुल्लापेरियार बांध से छोड़े गए पानी से आई विनाशकारी बाढ़ से जूझ रहे हैं। नासा के अनुसार इन तस्वीरों में गहरे नीले रंग में बाढ़ का पानी और हरे रंग में वनस्पति दिखाए गए हैं। दोनों तस्वीरों में केरल के बदले हालात नजर आ रहे हैं।
शताब्दी की सबसे भयावह बाढ़
राज्य में जून की शुरुआत और जुलाई में हुई साधारण बारिश ने अगस्त में भयावह रूप ले लिया। भारी बारिश के बाद राज्य सरकार को मुल्लापेरियार बांध से 80 फीसद पानी एक साथ छोड़ना पड़ा और बाढ़ ने भयावह रूप ले लिया। इसे पिछले एक शताब्दी में अब तक की सबसे भयावह बाढ़ माना जा रहा है।
अस्त-व्यस्त हुआ जीवन
बाढ़ में सड़कें, पुल और घर बाढ़ में बह चुके हैं। किसानों ने जमीन और खेत गंवा दिए हैं। राज्य को करीब 21,043 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि साफ-सफाई, पुनर्निर्माण और रहने लायक बनाने तक ये नुकसान दस गुना बढ़ सकता है।
नासा ने जारी किया वीडियो, केरल में आई बाढ़ के पीछे है ये वजह
नासा ने अपने बयान में कहा है कि 13 से 20 अगस्त के बीच भारत में दो बैंड (हिस्सों) में भारी मात्रा में बारिश का पानी जमा हुआ है। पहला हिस्सा भारतीय प्रायद्वीप के उत्तरी भाग में फैला हुआ है और इसका विस्तार पश्चिमी छोर की ओर 5 इंच से अधिक की साप्ताहिक बारिश के साथ बंगाल की खाड़ी के पूर्वी छोर के हिस्सों तक है, जहां सप्ताह में 14 इंच तक बारिश होती है।
वहीं, दूसरे हिस्से में हिमालय की भौगोलिक स्थिति और पश्चिमी घाट के कारण दक्षिणी पश्चिमी तट पर भारी बारिश हो रही है। यह पर्वतश्रेणी हिमालय जितनी बड़ी तो नहीं है लेकिन भारत के पश्चिमी तट के समानांतर चलती हैं। इसकी कई चोटियां 2,000 मीटर से भी अधिक ऊंची हैं।इस तरह से देखें तो पश्चिमी घाट की माकूल स्थिति के कारण भारत के पश्चिमी तटीय इलाकों में अधिक बारिश होती है. दक्षिण पश्चिम मॉनसून के तहत उत्तरी हिंद महासागर और अरब सागर से आने वाली गर्म हवाओं में निहित नमी इस पर्वत श्रेणी से टकराती है, जिससे अधिक बारिश होती है।