सुरक्षा सुधार की सिफारिशों पर कुंडली मारे बैठा केंद्र
सुरक्षा तंत्र की कमजोरियों का हल तलाशने के लिए दो साल पहले बनी नरेश चंद्रा समिति की सिफारिशें अब तक सरकार के पास लंबित हैं। नक्सल समस्या के खिलाफ रणनीतिक मोर्चेबंदी मजबूत करने के लिए समिति ने सरकार को माओवादियों से परोक्ष वार्ता के रास्ते खोलने से लेकर प्रभावित इलाकों में सैन्य मौजूदगी बढ़ाने तक कई ि
नई दिल्ली [प्रणय उपाध्याय]। सुरक्षा तंत्र की कमजोरियों का हल तलाशने के लिए दो साल पहले बनी नरेश चंद्रा समिति की सिफारिशें अब तक सरकार के पास लंबित हैं। नक्सल समस्या के खिलाफ रणनीतिक मोर्चेबंदी मजबूत करने के लिए समिति ने सरकार को माओवादियों से परोक्ष वार्ता के रास्ते खोलने से लेकर प्रभावित इलाकों में सैन्य मौजूदगी बढ़ाने तक कई सिफारिशें की थीं। पूर्व कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा की अगुआई में बनी 14 सदस्यीय समिति ने करीब एक साल पहले रक्षा, आंतरिक सुरक्षा और खुफिया तंत्र में सुधार के उपायों पर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी।
समिति में सदस्य रहे रक्षा विशेषज्ञ मनोज जोशी बताते हैं कि करीब एक साल के गहन अध्ययन व विभिन्न विभागों से विचार-विमर्श के बाद तैयार की गई सिफारिशों पर सरकार ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। उनके मुताबिक सरकार में इसके लिए जरूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति ही नजर नहीं आती है। इस रिपोर्ट पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा संबंधी समिति (सीसीएस) को विचार कर फैसला करना था। हालांकि, अभी तक प्रधानमंत्री की अगुआई वाली सीसीएस ने चर्चा के लिए इसे एजेंडा में ही नहीं लिया है। 2011 में बनी इस समिति में सेना, वायुसेना, नौसेना के अलावा खुफिया ब्यूरो व रॉ समेत सुरक्षा तंत्र से जुड़े विभागों के कई पूर्व अधिकारी भी शामिल थे।
समिति ने नक्सलियों से मुकाबले के लिए सीधे सेना को उतारने की तो मुखालिफत की थी, लेकिन नक्सली इलाकों में सैन्य प्रशिक्षण केंद्र स्थापित कर फौजी मौजूदगी बढ़ाने को जरूरी बताया था। रिपोर्ट के मुताबिक नक्सली इलाकों में प्रशिक्षण के बहाने सेना की मौजूदगी स्थानीय लोगों में सुरक्षा का भरोसा बढ़ाएगी। साथ ही सेना की चिकित्सा कैंप जैसी सुविधाएं कारगर साबित होंगी। जनजातीय इलाकों में नक्सली जन-अदालतों की पैठ तोड़ने के लिए न्याय तंत्र में सुधार की भी सिफारिश की गई थी। इसके मुताबिक नक्सल प्रभावित इलाकों में मोबाइल व फास्ट ट्रैक अदालतों की सुविधा की जरूरत है। समिति ने खुफिया तंत्र में सुधार और पुलिस थानों के आधुनिकीकरण के भी कई उपाय सुझाए थे। समिति की सिफारिशों में नक्सलियों से सीधे बातचीत की पैरवी तो नहीं की गई थी, लेकिन खुफिया एजेंसियों के सहारे पर्दे के पीछे नक्सली नेतृत्व से चर्चा की संभावनाएं तलाशने की वकालत की गई थी। समिति के विशेषज्ञों के पास आंध्र प्रदेश में 2004 के अनुभव भी थे, जब नक्सलियों ने शांति-समझौते की आड़ में अपनी ताकत को मजबूत किया था। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उग्रवादी व चरमपंथी गुटों के साथ चर्चा का इस्तेमाल उनके बीच मौजूद मतभेदों को उभारने के लिए किया जाता है।
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