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बेटी तुमने मुझे बदल दिया, एक अच्छा इंसान बनाया : नारायणमूर्ति

इंफोसिस के संस्थापक एमिरटस नारायण मूर्ति ने बेटी अक्षता को भावुक पत्र लिखा है। उन्होंने लिखा है कि किस तरह से अक्षता ने उन्हें बदला और अच्छा इंसान बनाया।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Fri, 29 Apr 2016 05:38 AM (IST)Updated: Fri, 29 Apr 2016 05:53 AM (IST)
बेटी तुमने मुझे बदल दिया, एक अच्छा इंसान बनाया : नारायणमूर्ति

बेंगलुर (एजेंसी)। इंफोसिस के संस्थापक एमिरटस नारायण मूर्ति ने बेटी अक्षता को भावुक पत्र लिखा है। उन्होंने लिखा है कि किस तरह से अक्षता ने उन्हें बदला और अच्छा इंसान बनाया। अक्षता दो बेटियों की मां हैं। उनके पति रिषिष सुनक ब्रिटिश संसद में कंजर्वेटिव पार्टी के सांसद हैं।

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यह पत्र सुधा मेनन की किताब 'लेगेसी : लेटर्स फ्रॉम इमिनेंट पेरेंट्स टू देयर डॉटर्स' से लिया गया है, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है।

प़़ढें पत्र के अंश

अक्षता, पिता बनकर मैं इतना बदल जाऊंगा, यह मैंने नहीं सोचा था। तुम्हारा मेरी जिंदगी में आना मेरे लिए बहुत सी खुशियां और जिम्मेदारी लाया। मैं अब सिर्फ पति, पुत्र या कंपनी कर्मचारी नहीं था। मैं पिता बन चुका था, जिसे हर मो़़ड पर अपनी बेटी की आशाओं पर खरा उतरना था। तुम्हारे जन्म ने मेरे जीवन को नई ऊंचाई दी। कंपनी में मेरी बातचीत ज्यादा विचारों वाली और नपी-तुली हो गई। बाहरी दुनिया के साथ मेरा बर्ताव अब ज्यादा परिपक्व हो गया। मैं हर इंसान से ज्यादा अच्छे तरीके से बर्ताव करने लगा। आखिरकार किसी दिन तुम ब़़डी होकर अपने आसपास की दुनिया को समझोगी और मैं नहीं चाहता कि तुम ये सोचो कि मैंने कुछ गलत किया। मेरा दिमाग तुम्हारे जन्म के शुआती दिनों में हमेशा पहुंच जाता है। तुम्हारी मां और मैं उस समय जवान थे और अपने कॅरिअर के लिए स्ट्रगल कर रहे थे। तुम्हारे जन्म के 2 महीने बाद हम तुम्हें हुबली से मुंबई ले आए। जल्द ही हमें यह समझ आ गया कि बच्चे को ब़़डा करना और कॅरिअर साथ में चलाना बहुत मुश्किल काम है। इसलिए हमने तय किया कि तुम अपने जीवन के शुआती साल हुबली में दादा-दादी के साथ बिताओगी। हमारे लिए ये एक बहुत मुश्किल फैसला था। हर वीकेंड पर मैं बेलगाम तक हवाई जहाज से आता था और फिर वहां से हुबली के लिए कार किराए पर लेता था। इसमें बहुत पैसे खर्च होते थे, लेकिन मैं तुम्हें देखे बिना नहीं रह सकता था। मुझसे हमेशा यह पूछा जाता है कि मेरे बच्चों को मैंने क्या संस्कार दिए? मैं उनको कहता हूं कि ये जिम्मेदारी मैंने तुम्हारी मां के कंधों पर डाल रखी थी। मैं तुम्हारी मां का हमेशा आभारी रहूंगा कि उसने तुम्हें बहुत अच्छे संस्कार दिए। उसने तुम्हें और रोहन को साधारण और सामान्य जीवन जीना सिखाया। एक बार बैंगलोर ([अब बेंगलुर)] में जब तुम्हें एक स्कूल ड्रामा में सिलेक्ट किया गया था, तब तुम्हें एक विशेषष ड्रेस पहननी थी। वह समय अस्सी के मध्य का था। इंफोसिस का ऑपरेशन शुरू ही हुआ था। हमारे पास इस तरह की चीजों पर खर्च करने के लिए पैसे नहीं थे। तुम्हारी मां ने समझाया कि हम ऐसा ड्रेस नहीं खरीद सकते, इसलिए तुम ड्रामा में भाग नहीं ले सकती। बहुत बाद में तुमने मुझे बताया था कि तुम्हें ये घटना समझ नहीं आई।

हमें इस बात का अहसास हुआ कि किसी बच्चे के लिए स्कूल का ऐसा इवेंट छो़़डना बहुत कष्टकारी है। लेकिन हमें पता था कि इस घटना से तुम्हें मितव्ययता का महत्व समझ आया। जीवन बदला और अब हमारे पास पर्याप्त पैसा है। लेकिन तुम जानती हो कि हमारा जीवन अब भी साधारण है। मुझे याद है कि एक बार मैंने तुम्हारी मां से बच्चों को स्कूल कार में भेजने पर चर्चा की थी। पर तुम्हारी मां ने जोर देकर कहा कि रोहन और तुम ऑटो में ही अपने क्लासमेट की तरह स्कूल जाओगे। तुमने रिक्शावाले अंकल को बहुत अच्छा दोस्त बना लिया था। ऑटो में दूसरे बच्चों के साथ भी तुम घुल मिल गई थी। जीवन में साधारण चीजें हमेशा खुशी देती हैं और ये मुफ्त में मिलती हैं। तुम मुझसे हमेशा पूछती थी कि हमारे घर में टीवी क्यों नहीं है? जब तुम्हारे दोस्त टीवी पर देखे कार्यक्रम पर चर्चा करते थे।

प़़ढाई, लिखाई, चर्चा और दोस्तों से मिलने का समय मिले, इसलिए तुम्हारी मां ने पहले ही यह फैसला कर लिया था कि हम टीवी नहीं खरीदेंगे। उसने जोर दिया कि घर पर सीखने का माहौल होना चाहिए। इसलिए हम हर रात 8 से 10 बजे तक का समय साथ में बिताते थे। ये सबको पता है कि जब एक बेटी की शादी होती है तो पिता के अंदर मिलीजुली प्रतिक्रिया होती है। उसे इस बात से चि़़ढ होती होती है कि उसकी बेटी के जीवन में कोई और आ गया है, जिसके साथ वह अपना प्यार बांटेगी। मुझे भी जलन हुई थी, जब तुमने कहा था कि तुमने अपना लाइफ पार्टनर ढूं़़ढ लिया। जब मैं रिषिष से मिला तो मैंने पाया कि वो ऐसा ही है जैसा तुमने बताया था। मुझे अहसास हुआ कि बू़़ढे होने और नाना बनने का बोनस अलग होता है। तुम्हें मालूम है वो क्या कहते हैं दादा--दादी और पोते--पोतियों के दुश्मन पैरेंट्स होते हैं! मैं और कृष्णा तुम्हारी बुराई करते हैं। तुम्हारी आलोचना करने में भी हम एक पेज पर होते हैं। तुम जीवन में अपने लक्ष्य हासिल करने की और आगे ब़़ढोगी तो याद रखना हमारे जीने के लिए सिर्फ एक ही ग्रह और ये भी अब संकटग्रस्त होता जा रहा है। याद रखना ये तुम्हारी जिम्मेदारी है कि तुम ये ग्रह कृष्णा को उससे अच्छी हालत में दोगी जैसा हमने तुम्हें इसे दिया था। मेरी बच्ची अपना ध्यान रखना।

तुम्हारा अप्पा


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