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नरक मुक्ति कामना के इस पर्व पर चार बत्तियों वाला दीपक यमराज के निमित्त करें दान

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान ने नरकासुर का वध किया था। इसलिए इस दिन को नरक चतुर्दशी कहा जाता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 06 Nov 2018 01:18 PM (IST)Updated: Tue, 06 Nov 2018 01:18 PM (IST)
नरक मुक्ति कामना के इस पर्व पर चार बत्तियों वाला दीपक यमराज के निमित्त करें दान
नरक मुक्ति कामना के इस पर्व पर चार बत्तियों वाला दीपक यमराज के निमित्त करें दान

जागरण संवाददाता, वाराणसी। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान ने नरकासुर का वध किया था। इसलिए इस दिन को नरक चतुर्दशी कहा जाता है। श्रीकाशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार चतुर्दशी तिथि पांच नवंबर को 11.17 बजे लग रही है, जो छह नवंबर को 10.06 बजे रात तक रहेगी। इस बार नरक चतुर्दशी छह नवंबर को पड़ रही है।

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तिथि विशेष पर सायंकाल घर से बाहर चार बत्तियों वाला दीपक यमराज के निमित्त दान करना चाहिए। प्रदोष काल में तिल के तेल से भरे दीपों को यम के अतिरिक्त ब्रह्मा-विष्णु-महेश आदि के मंदिरों के साथ मठ, बाग-बगीचों, बावली-गली इत्यादि में भी दीपदान करना चाहिए। मान्यता है कि इससे असमय मृत्यु से निजात और नरक से बचाव होता है। साथ ही जीवन सुखमय व्यतीत होता है।

दीपावली पर्व के ठीक एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी को छोटी दीवाली, रूप चौदस और काली चतुर्दशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसी दिन शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। इस पर्व का जो महत्व है उस दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पांच पवरें की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्योहार है।

क्या है इसकी कथा

इस रात दीये जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दुरंत असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष्य में दीयों की बारात सजाई जाती है।

इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक दूसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। यह सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक बार एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था,यह उसी पापकर्म का फल है। इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय पूछा।

तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।

ऐसे करें यम पूजा

नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले शरीर पर तेल की मालिश करके नहाना शुभ माना जाता है। स्‍नान के दौरान अपामार्ग पौधे की टहनियों को अपने ऊपर से सात बार घुमाकर सिर पर रखना होता है। साथ थोड़ी सी मिट्टी भी रखी जाती है। इसके बाद पानी डालकर उसे बहा दि‍या जाता है। अंत में पानी में तिल डालकर यमराज को तर्पण किया जाता है। इसके बाद सांध्‍य बेला में घर के बाहर तेल का एक दीपक जलाकर यमराज का ध्‍यान किया जाता है। यमराज के लिए किये गए इस दीपदान को लेकर माना जाता है कि इसकी रोशनी से पितरों के रास्‍ते का अंधेरा दूर हो जाता है।

इस त्योहार को मनाने का मुख्य उद्देश्य घर में उजाला और घर के हर कोने को प्रकाशित करना है। कहा जाता है कि दीपावली के दिन भगवान श्री राम चन्द्र जी चौदह वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या आये थे तब अयोध्या वासी ने अपनी खुशी दिए जलाकर और उत्सव मनाया व भगवान श्री राम चन्द्र माता जानकी व लक्छ्मण का स्वागत किया। 


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