एवरेस्ट फतेह कर 'नाहिदा' बनी मिसाल, कश्मीर की बेटियों के सपनों की बनी उम्मीद
श्रीनगर के बाहरी क्षेत्र जेवन की रहने वाली नाहिदा मंजूर अब कश्मीर की लाखों बेटियों के लिए उम्मीद बन गई हैं।
नवीन नवाज, श्रीनगर। नाहिदा अर्थात सक्षम, समर्थ और भाग्यशाली। जब्रवान की पहाड़ियों पर ट्रैकिंग करते हुए दस साल की उम्र में कश्मीर की इस बेटी ने अपनी सहेली से कहा था, मेरा सपना है माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई को नापना और इस सपने को मैं पूरा करके रहूंगी। करीब 14 साल बाद इस बेटी ने न सिर्फ एवरेस्ट को फतह कर लिया बल्कि पुरातनपंथियों और जिहादियों के फरमानों के बीच अपने सपनों को उड़ान देने का मौका तलाश रही कश्मीर की बेटियों को भी डर की जंजीरें तोड़ आगे बढ़ने का हौसला दे दिया है।
श्रीनगर के बाहरी क्षेत्र जेवन की रहने वाली नाहिदा मंजूर अब कश्मीर की लाखों बेटियों के लिए उम्मीद बन गई हैं। आज उनके जज्बे को सब सलाम कर रहे हैं पर यह सब इतना आसान नहीं रहा। माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई को नापने से अधिक दुष्कर था इस मिशन के लिए संसाधन जुटाना। पिता मंजूर अहमद दुकानदार और मां ठेठ कश्मीरी गृहिणी। मां-बाप पूरी तरह साथ थे लेकिन संसाधनों का संकट बहुत बड़ा था।
नाहिदा ने मिशन एवरेस्ट पर रवाना होने से पूर्व एक बातचीत में कहा था कि सफर तो तय किया जा सकता है, लेकिन सफर के लिए सामान बहुत महंगा है। उनकी तैयारी पूरी थी। इससे पूर्व वह हिमाचल प्रदेश में माउंट डियो टिब्बा, फ्रेंडशिप पीक और श्रीनगर की सबसे ऊंची चोटी महादेव के अलावा पीरपंजाल में टाटाकूटी के शिखर को छू चुकी थीं। नाहिदा अपने घर से करीब दस किलोमीटर श्रीनगर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित टीआरसी में वॉल क्लाइंबिग के लिए सप्ताह में कम से कम तीन दिन अभ्यास करने जाती थीं। सपना बड़ा होता गया और संसाधनों की कमी अखरने लगी तो नाहिदा ने मार्च माह के दौरान क्राउड फंडिंग का सहारा लिया। इंटरनेट पर उनकी अपील का असर हुआ और कई लोग सामने आए।
वह बताती हैं कि पर्वतारोहण सस्ता शौक नहीं है। एवरेस्ट पर परचम फहराने के लिए कम से कम 30 लाख रुपये चाहिए थे। मेरी अपील पर कश्मीर में कई लोग मदद के लिए आगे आए। पर फिर भी बात नहीं बनती दिखी तो इरादा बदल लिया। हौसले बुलंद हों, कोशिशें ईमानदार हों तो खुदा भी मदद करता है। इसी दौरान हैदराबाद स्थित ट्रांजिट एडवेंचर क्लब ने उनकी ओर मदद का हाथ बढ़ाया और वह नौ अप्रैल 2019 को काठमांडु पहुंच गईं। माउंट एवरेस्ट पर विजय पताका लहराकर कश्मीर की पहली महिला का गौरव पाने वाली विश्व भारती वूमेन कॉलेज की छात्रा नाहिदा मंजूर ने पर्वतारोहण की ट्रेनिंग नेहरू इंस्टीट्यूट माउंटेनियरिंग से ली। वह खो-खो, कबड्डी और राइफल शूटिंग की बेहतरीन खिलाड़ी भी हैं। वह कई प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पदक भी जीत चुकी हैं।
पिता बोले, पहले लोग हंसते थेअब वही तारीफ कर रहे
उनके पिता मंजूर अहमद पांपोरी कहते हैं कि वह तो बचपन से ही पहाड़ों की शौकीन रही है। आज पूरी दुनिया में लोग हम सभी को उसके नाम से जान रहे हैं, यह हमारे लिए फख्र की बात है। वह जब यहां चोटी महादेव की ट्रैकिंग के लिए गई थी तो उस गु्रप में वह अकेली लड़की थी। कई बार लोग मुझसे कहते थे कि लड़की ने क्या लड़कों वाला शौक पाला है। मैं हंस देता था। आज वही कह रहे हैं कि कमाल हो गया।
बचपन से ही पहाड़ों में घूमने का शौक
नाहिदा की बचपन की सहेली और फिल्ममेकर उजमा ने कहा कि हम बचपन में एक साथ ही हाईकिंग के लिए जाते थे। वह शुरू से ही पहाड़ों में घूमने और उन पर चढ़ने की शौकीन थी। यही शौक और जुनून उसे आज एवरेस्ट पर ले गया है। मैं उसकी सफलता से बहुत खुश हूं। इस समय नेपाल में वह हर कश्मीरी की आंख का तारा है।
लद्दाख की चार और बेटियां एवरेस्ट कर चुकी हैं फतह
नाहिदा मंजूर से पहले भी राज्य की चार बेटियां माउंट एवरेस्ट पर जा चुकी हैं। ये चारों लड़कियां स्टेंजिन लस्किट, रिग्जिन डोल्कर, त्सेरिंग आंगमों और ताशी लस्किट लद्दाख की हैं और इन्होंने यह उपलब्धि मई 2016 में प्राप्त की थी।
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