जानें- क्यों अति संवेदनशील है नगालैंड का मोन जिला, सुरक्षाबल बरतते हैं अतिरिक्त सावधानी
देश के पूर्वोत्तर में स्थित नगालैंड लंबे समय तक उग्रवादी गतिविधियों से प्रभावित रहा है। राज्य के सबसे उत्तरी इलाके में स्थित मोन जिला अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण काफी संवेदनशील माना जाता है। यह प्रतिबंधित संगठन एनएससीएन-के और (उल्फा) का गढ़ है।
नई दिल्ली, जेएनएन। नगालैंड में सुरक्षाबल की गोलीबारी में 13 मजदूरों की मौत के बाद बड़ा सवाल उठ रहा है कि इस घटना का कारण क्या है। जिस मोन जिले में यह घटना हुई, वह इतना संवेदनशील क्यों है। ऐसा क्या है मोन में कि सुरक्षाबल व एजेंसियां अतिरिक्त सतर्कता के साथ वहां काम करती हैं। देश के पूर्वोत्तर में स्थित नगालैंड लंबे समय तक उग्रवादी गतिविधियों से प्रभावित रहा है। राज्य के सबसे उत्तरी इलाके में स्थित मोन जिला अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण काफी संवेदनशील माना जाता है। मोन जिला नगालैंड के प्रतिबंधित संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल आफ नगालैंड-के (एनएससीएन-के) का गढ़ माना जाता है।
असम और अरुणाचल से लगती सीमा
इस क्षेत्र में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आफ असम (उल्फा) का भी काफी असर रहता है। दक्षिण पूर्व में मोन जिला पड़ोसी देश म्यांमार से सटा हुआ है और इसी कारण यह उग्रवादी गतिविधियों और मूवमेंट के लिहाज से अतिसंवेदनशील क्षेत्र माना जाता है। उत्तर में इसकी सीमा असम और उत्तर पूर्व में अरुणाचल प्रदेश से लगती है। बता दें, असम भी लंबे समय तक हिंसक गतिविधियों से प्रभावित रहा है। रविवार की घटना के पीछे कारण बताया जा रहा है कि प्रतिबंधित संगठन के सदस्यों के मूवमेंट की सूचना सुरक्षाबल को मिली थी।
तीसरा सबसे बड़ा जिला
क्षेत्र के लिहाज से मोन, नगालैंड का तीसरा सबसे बड़ा जिला है। इसकी आबादी करीब ढाई लाख है जिसमें अधिकांश आदिवासी हैं। इसे कोन्यक नगा का क्षेत्र माना जाता है जिन्हें टैटू वाले नगा भी कहा जाता है। ये चेहरे और शरीर पर टैटू गुदवाते हैं। कोन्यक आज भी कबीलों की तरह एक सरदार या मुखिया के निर्देशन में रहते हैं जिसे अंघ कहा जाता है। हर गांव का अपना अंघ होता है और छोटे गावों पर पास के बड़े गांव के कोन्यक का वर्चस्व होता है। इतिहास में जाएं तो 1973 में ट्यूसेंग जिले के एक हिस्से को मोन जिला बनाया गया। 1991 में कुछ और गांवों व क्षेत्रों को मिलाकर मोन जिला का विस्तार किया गया।