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भारतीय सीमा में घुसे म्‍यांमार पुलिसकर्मियों को सता रहा डर, नहीं जाना चाहते हैं देश वापस

Myanmar police protest म्‍यांमार से कुछ पुलिसकर्मी भागकर भारत के राज्‍य मिजोरम आ गए हैं। ये वापस जाना नहीं चाहते हैं। इन्‍होंने प्रदर्शनकारियो पर गोली चलाने के आदेश को मानने से इनकार कर दिया था। म्‍यांमार के पुलिस अधिकारी ने इन्‍हें वापस भेजने की मांग की है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 10 Mar 2021 10:08 AM (IST)Updated: Wed, 10 Mar 2021 05:16 PM (IST)
भारतीय सीमा में घुसे म्‍यांमार पुलिसकर्मियों को सता रहा डर, नहीं जाना चाहते हैं देश वापस
प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने बरसाई थी गोलियां

चंपाई मिजोरम (रॉयटर्स)। म्‍यांमार में 27 फरवरी को सैन्‍य शासन के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों को कड़ा जवाब देने के लिए पुलिस को गोली चलाने का आदेश दिया गया था। इस आदेश के कुछ ही देर बाद पूरा नजारा ही बदल गया। पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दी और देखते ही देखते 38 लोगों की मौत हो गई। सड़कों पर खून फैला हुआ था और लोग चीख रहे थे। लेकिन इसमें कुछ ऐसे पुलिसकर्मी भी थे जिन्‍होंने अपने अधिकारी के दिए गोली चलाने के आदेश को मानने से इनकार कर दिया था। बाद में ये पुलिसकर्मी देश छोड़कर भारत के सीमावर्ती राज्‍य मिजोरम आ गए। जानें आगे की कहानी :-

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म्‍यांमार से भारत में दाखिल हुए एक और पुलिसकर्मी नगुन ह्लेई ने बताया कि वो मेंडले में बतौर कांस्‍टेबल तैनात था। उसे भी प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया गया था। हालांकि उसने न तो इस दौरान किसी तारीख का जिक्र किया और न ही ये बताया कि क्‍या उसको प्रदर्शनकारियों को जान से मारने का आदेश दिया गया था। उसने इस दौरान हताहत हुए लोगों की संख्‍या के बारे में भी कुछ नहीं बताया। उसके पास में जो आईकार्ड था उसमें उसका नाम लिखा हुआ था। पेंग और नगुई का कहना है कि म्‍यांमार पुलिस केवल म्‍यांमार की सेना का आदेश मान कर काम कर रही है। हालांकि इस बात के भी पक्‍के सुबूत उनके पास नहीं हैं। इनका कहना है सेना के दबाव में ही पुलिस को प्रदर्शनकारियों के आगे किया जा रहा है।

नगुई ने बताया कि जब उसने अपने अधिकारी की बात को मानने से इनकार किया तो उसका तबादला कर दिया गया। इसके बाद ही उसने भारत आने का विचार किया और ऑनलाइन के जरिए रास्‍ते तलाशने शुरू किए। उसके मुताबिक भारत तक आने का खर्च करीब 2 लाख म्‍यांमार क्‍यात था। आपको बता दें कि म्‍यांमार और भारत के बीच कुछ जगहों पर प्राकृतिक तौर पर सीमा का निर्धारण किया गया है। यहां पर सेना के जवान होते हैं लेकिन खेती के लिए म्‍यांमार से कई लोग भारतीय सीमा में आते और जाते हं। इन पर कोई रोकटोक नहीं है। लेकिन भारत के अंदर किसी शहर में आने के लिए उन्‍हें ट्रेवल परमिट की जरूरत होती है।

20 वर्षीय डाल ने बताया कि वो भी म्‍यांमार पुलिस में कांस्‍टेबल थीं। वो उत्‍तर पश्चिम फलम में तैनात था। रॉयटर्स ने उसके आईकार्ड में लिखे गए नाम से उसकी पहचान की है। उसका अधिकतर काम प्रशासनिक था। इसमें हिरासत में लिए गए लोगों की डिटेल तैयार करना शामिल था। तख्‍तापलट के बाद लगातार प्रदर्शनों की संख्‍या बढ़ती जा रही थी। डाल को निर्देश थे कि वो महिला प्रदर्शनकारियों पर निगाह रखे और उन्‍हें हिरासत में लें। जब उसने ऐसा करने से मना किया था उसको खुद ही गिरफ्तार होने का डर सताने लगा। इस डर से वो म्‍यांमार से भारत भाग आई।

पेंग का कहना है कि म्‍यांमार पुलिस में भी करीब 90 फीसद प्रदर्शनकारियों का समर्थन करते हैं लेकिन उनका कोई नेता नहीं है। इसलिए वो संगठित भी नहीं है। पेंग खुद कतो भारत आ गया है लेकिन उसकी पत्‍नी, दो लड़कियां जिनमे से एक केवल छह माह की है म्‍यांमार में ही हैं। भारत तक पहुंचने में उनका साथ वहां के स्‍थानीय एक्टिविस्‍ट ने दिया है। म्‍यांमार फलम जिले के डिप्‍टी कमिश्‍नर सॉ थुन विन ने चंपाई के डिप्‍टी कमीश्‍नर मारिया सीटी जुआली को एक पत्र में लिखा है कि करीब आठ पुलिसकर्मी म्‍यांमार से भारत की सीमा में दाखिल हुए हैं। उन्‍होंने लिखा है कि इन सभी को वापस उनके हवाले किया जाए। रॉयटर्स ने भी इस पत्र को देखा है। मिजोरम के मुख्‍यमंत्री का कहना है कि सरकार म्‍यांमार से आए हुए लोगों को खाने के साथ अस्‍थायी तौर पर शेल्‍टर दे रही है। लेकिन इन्‍हें स्‍थायी तौर पर शरण देने का मामले पर अभी विचार विमर्श किया जा रहा है। पेंग का कहना है कि वो अपने परिवार को लेकर काफी चिंतित है और वापस जाना उसके लिए खतरे से खाली नहीं है। वो अब वापस नहीं जाना चाहता है।

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