कुरान की तर्ज पर तलाक कानून चाहती है मुस्लिम महिलाएं
मुस्लिम महिलाओं का कहना है कि तीन तलाक बोल कर उन्हें अलग कर दिया जाना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है।
नई दिल्ली [माला दीक्षित]। पाकिस्तान सहित 20 इस्लामिक देश एक बार में तीन तलाक को खत्म कर चुके हैं। भारत में भी इसके खिलाफ आवाज उठ रही है। फिलहाल मामला सुप्रीमकोर्ट में है। मुद्दा देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक वर्ग से जुड़ा होने के कारण सरकार भी सीधे तौर पर अपना रुख स्पष्ट करने से कतरा रही है। लेकिन तीन तलाक के तूल पकड़ते मुद्दे पर मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने बीच का रास्ता तलाशना शुरू कर दिया है।
सवाल है कि ऐसा क्या किया जाए कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। सुप्रीमकोर्ट में तीन तलाक के खिलाफ लड़ाई लड़ रही फरहा फैज कहती हैं कि जैसे मुस्लिम देशों ने तीन तलाक को एक मानकर इसका हल निकाला है। यही राह यहां भी अपनाई जानी चाहिए। कुरान में एक साथ तीन तलाक की बात नहीं कही गयी।
इसका विरोध कर रही मुस्लिम महिलाओं का कहना है कि तीन तलाक बोल कर उन्हें अलग कर दिया जाना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। तीन तलाक का प्रचलन सुन्नियों में है। सुन्नियों में चार वर्ग हैं। हनफी, मालिकी, शाफई और हम्बली। इसके अलावा एक वर्ग अहले हदीस भी है जो कि कुरान के बारे में मुस्लिम विद्वान इब्ने तयमिया की व्याख्या मानता है।
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इब्ने तयमिया की व्याख्या में एक बार में तीन तलाक को एक ही माना जाता है। इसे सबसे पहले 1929 में मिस्त्र ने स्वीकारा था। बाद में एक एक कर 20 मुस्लिम देशों ने इसे अपनाया। जिसमें ट्यूनिशिया, श्रीलंका, ईराक, बांग्लादेश, टर्की, पाकिस्तान आदि शामिल हैं। हमारे देश में इसके हक में कोर्ट का आदेश भी है। दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश बीडी अहमद ने तीन अक्टूबर 2007 को एक अहम फैसला दिया जिसमें इस्लामी कानून पर व्यवस्था दी गई है।
कोर्ट ने कहा शिया तीन तलाक को नहीं मानते। इसे तलाक ए बिद्अत कहा जाएगा। यहां तक कि सुन्नी मुसलमानों में भी इसे एक बार कहा गया तलाक माना जाएगा और ये रिवोक यानी वापस हो सकता है। कोर्ट ने कहा अति क्रोध में दिया दिया गया तलाक न प्रभावी होगा न ही वैध। अगर तलाक दिये जाने की जानकारी पत्नी तक नहीं पहुंची तो जब उसकी सूचना पत्नी को मिलेगी उसी तिथि से तलाक प्रभावी माना जाएगा। इस फैसले निष्कर्ष है कि एक साथ बोला गया तीन तलाक को एक तलाक ही माना जाएगा।
मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड तीन तलाक और चार शादियों के प्रचलन पर भले ही अड़ा हो लेकिन मुस्लिम विद्वान डाक्टर जफर महमूद कहते हैं कि एक साथ तीन तलाक खतम होना चाहिए। उनका कहना है कि बुद्धिजीवी वर्ग मिल बैठ कर समय के अनुसार चीजों में बदलाव करने के लिए आगे आए। सुप्रीमकोर्ट में याचिकाकर्ता राष्ट्रवादी मुस्लिम महिला संघ की अध्यक्ष फरहा फैज कहती हैं कि इस समस्या का हल है कि पर्सनल ला कोडीफाई हो। लिखित कानून होने के बाद कोई भ्रम नहीं रह जाएगा। लेकिन जो भी कानून बनाया जाए वह कुरान पर आधारित हो न कि वगरें की व्याख्याओं पर।
भारत में ज्यादातर सुन्नी हनफी मत के हैं। जिसमें तीन तलाक वैध है। जमीयत उलिमा-ए- हिन्द के सचिव मौलाना नियाज अहमद फारुकी कहते हैं कि जो वर्ग जिस व्याख्या में विश्वास करता है उसे उसका पालन करने देना चाहिए। धार्मिक मसले में कोर्ट या किसी को दखल नहीं देना चाहिए। दारुल उलूम देवबंद के कुलपति मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी का मानना है कि तलाक तीन अलग अलग बार कहा जाए या एक साथ उसका मतलब एक ही है और वह तत्काल प्रभावी होगा। हालांकि वे मानते हैं कि ये एक खराब तरीका है। लोगों को जागरुक किया जाता है ताकि वे तलाक न लें और अगर बहुत जरूरी है तो सही तरीका अपनाएं।