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पर्यावरण के प्रति जन जागरूकता लाने के लिए संगीत को चुना : ग्रैमी अवॉर्ड विजेता रिकी केज

कुछ समय पहले रिलीज हुई डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘वाइल्ड कर्नाटक’ में इनके म्यूजिक को काफी सराहना मिली। यूएन मुख्यालय में उसका प्रीमियर भी हुआ। हाल ही में इनका 16वां एलबम ‘एक’ लॉन्च हुआ है। रिकी केज से बातचीत के प्रमुख अंश...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sun, 18 Oct 2020 06:48 AM (IST)Updated: Sun, 18 Oct 2020 06:58 AM (IST)
पर्यावरण के प्रति जन जागरूकता लाने के लिए संगीत को चुना : ग्रैमी अवॉर्ड विजेता रिकी केज
ग्रैमी अवॉर्ड विजेता म्यूजिक कंपोजर रिकी केज

अंशु सिंह। ग्रैमी अवॉर्ड विजेता म्यूजिक कंपोजर रिकी केज संगीत की दुनिया में अंतरराष्ट्रीय पहचान रखते हैं। संगीत के माध्यम से ही पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाने के मिशन पर हैं। कुछ समय पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेरिस में वैश्विक राजनेताओं की उपस्थिति में इनके एलबम ‘शांति समरारा’ का लोकार्पण किया था। न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय के अलावा, जेनेवा और 30 से अधिक देशों में परफॉर्म कर चुके रिकी को 20 से अधिक देशों द्वारा सैकड़ों म्यूजिक अवॉर्ड मिल चुके हैं।

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ये यूनसीसीडी के लैंड एंबेसेडर, यूनेस्को एमजीआइईपी के ग्लोबल काइंडनेस एंबेसेडर, अर्थ डे नेटवर्क के एंबेसेडर एवं यूनिसेफ के सेलिब्रिटी सपोर्टर भी हैं। कुछ समय पहले रिलीज हुई डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘वाइल्ड कर्नाटक’ में इनके म्यूजिक को काफी सराहना मिली। यूएन मुख्यालय में उसका प्रीमियर भी हुआ। हाल ही में इनका 16वां एलबम ‘एक’ लॉन्च हुआ है। रिकी केज से बातचीत के प्रमुख अंश...

आपके नए एलबम ‘एक’ की प्रेरणा क्या रही?

कोविड-19 ने पूरी दुनिया की रफ्तार को थाम दिया है। सभी जानते हैं कि जिंदगी पहले जैसी नहीं रहेगी। संकट की इस घड़ी में हमें अपने पर्यावरण के साथ प्रकृति का ध्यान रखना है, ताकि एक नए कल का निर्माण कर सकें। भविष्य को सुंदर बना सकें। ‘एक’ के माध्यम से मैंने इंसान और प्रकृति के बीच के संबंध को परिभाषित करने का प्रयास किया है। इस एलबम के गीतों के जरिये याद दिलाने की कोशिश की है कि इस धरा पर सिर्फ हम नहीं रहते, और भी जीव-जंतु, वनस्पति, जंगल, पशु भी इसका हिस्सा हैं। एलबम में कुल 12 ट्रैक्स हैं, जिनमें भारत के अलावा अन्य देशों के गायक-संगीतकारों ने भागीदारी की है, जिसमें शंकर महादेवन, कैलाश खेर, उदित नारायण, सलीम मर्चेंट, बेनी दयाल, नीति मोहन, अनुष्का मनचंदा, जोनिता गांधी, खतीजा रहमान, एंड्रिया प्रमुख हैं।

वर्तमान वैश्विक महामारी के बीच प्रकृति का मनमोहक, स्वच्छ रूप देखने को मिला। लेकिन क्या इसे भविष्य में भी कायम रखा जा सकता है?

इस महामारी ने साफ-साफ दिखाया है कि एक प्रजाति के तौर पर हम कितने नाजुक हैं। प्रकृति और हम एक-दूसरे से कितने जुड़े हुए हैं। इसने सिखाया है कि जब भी ऐसी किसी भयानक विपदा से मानव जाति का सामना होता है, तो उसके व्यवहार में व्यापक परिवर्तन होता है। हमने यह भी देखा कि कैसे विश्वस्तर के राजनेताओं ने कठोर निर्णय लेकर स्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास किया। हमें भी समय का सदुपयोग करना है, जिससे कि प्रकृति एवं आसपास के वातावरण को बेहतर समझ सकें। अपने भविष्य एवं भावी पीढ़ी को ध्यान में रखकर कोई भी कदम उठाएं या कार्य करें। हमें अपने अवचेतन मन में बदलाव लाना होगा। हर चीज का उपभोग कम करना होगा। ऐसे राजनेताओं एवं व्यवसायों का समर्थन करना होगा, जो पर्यावरण संरक्षण के प्रति गंभीर दृष्टिकोण रखते हों। अंतत: इन्हीं सब प्रयासों से हम इस धरा की रक्षा कर पाएंगे।

अब तो म्यूजिकल कॉन्सर्ट्स भी ऑनलाइन हो रहे हैं। आपके क्या अनुभव रहे हैं? किन और नए प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं?

इसमें शक नहीं कि मैं कॉन्सर्ट्स को मिस कर रहा हूं। टूर पर जाना, हजारों दर्शकों के सामने परफॉर्म करना, सब बंद हो चुका है। फिलहाल, अपने घर के स्टूडियो में ही नया म्यूजिक क्रिएट करने का आनंद ले रहा हूं। वर्चुअल कॉन्सर्ट्स कर रहा हूं। अप्रैल से जून के बीच तीन ऑनलाइन कॉन्सर्ट्स किए, जिन्हें विश्व भर में करीब 15 करोड़ लोगों ने देखा। इनमें लाइव ऑडिएंस की ऊर्जा का एहसास तो नहीं था, लेकिन श्रोताओं की बेहद सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। इसके अलावा, कई सारे प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा हूं। कुछ समय पहले ‘वाइल्ड कर्नाटक’ डॉक्यूमेंट्री फिल्म के गानों के रीमिक्स एलबम के अलावा, मशहूर ओलंपियन निकोलो कैंप्रिएनी एवं अभिनव बिंद्रा के साथ मिलकर 'मेक अ मार्क' नाम से म्यूजिक वीडियो भी लॉन्च किया है। फिलहाल, यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीज (यूएनएचसीआर) के एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा हूं। इसके जरिये दुनिया भर के रिफ्यूजी आर्टिस्ट्स की मदद की जाएगी। उनके पेशेवर संगीतकार बनने के सपने को पूरा किया जाएगा। और भी कई प्रोजेक्ट्स हैं।

पर्यावरण के प्रति जन जागरूकता लाने के लिए आपने संगीत को ही क्यों चुना?

मैं एक संगीतकार होने के साथ-साथ हमेशा से पर्यावरण संरक्षण के प्रति निष्ठापूर्वक कार्य करता रहा हूं। पुरजोर तरीके से अपनी आवाज उठाता रहा हूं। संगीत के कारण मुझे प्रकृति से प्रेम हुआ। मुझे यह अनुभव हुआ कि संगीत एवं प्रकृति के मध्य कोई गहरा संबंध अवश्य है। 2015 में ग्रैमी अवॉर्ड से सम्मानित होना किसी प्रेरणा से कम नहीं था। लेकिन उसने ही बीज बोया और मैंने अपना जीवन एवं संगीत, पर्यावरण जागरूकता को समर्पित करने का निर्णय कर लिया। तब से पर्यावरण के इर्द-गिर्द ही संगीत रचना कर रहा हूं और वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता लाने का प्रयास कर रहा हूं। उसी कड़ी में 'शांति समसारा :वर्ल्ड म्यूजिक फॉर एनवॉयर्नमेंटल कांशसनेस' बनकर तैयार हुआ। इसे पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सीओपी 21 क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति ने वैश्विक राजनेताओं की उपस्थिति में लोकार्पित किया। तब से तीन बार संयुक्त राष्ट्र के न्यूयॉर्क एवं जेनेवा स्थित कार्यालयों में अपनी प्रस्तुति दे चुका हूं। मैं जिस भी तरीके से परिवर्तन का माध्यम बन सका हूं, उसके लिए स्वयं को खुशनसीब मानता हूं।

आप अपने कार्यक्रमों में वैश्विक स्तर के संगीतकारों को सफलतापूर्वक एकजुट कर पाते हैं। यह कैसे संभव होता है? आप स्वयं किन संगीतकारों से प्रभावित हैं?

मैंने दुनिया के विभिन्न देशों के संगीतकारों के साथ परफॉर्म किया है। इस तरह के सामूहिक प्रयासों ने हमेशा प्रेरित एवं प्रभावित किया है। जैसे, शांति समसारा एल्बम की ही बात करें, तो इसमें मैंने 40 देशों के करीब 500 संगीतकारों के साथ काम किया है। मैंने अमेरिकी फ्लूट प्लेयर गेलिक कॉयर, हिब्रू कॉयर, कोरिया, तुर्की, सेनेगेलिज गायकों, अजरबेजान के संगीतकारों, जापान के कोटो प्लेयर, माओरी संगीतकारों के साथ काम किया है। इन सबके साथ एल्बम बनाना एक संतुष्टि भरा अनुभव रहा है। क्योंकि ये सभी अलग-अलग संस्कृति, परंपरा से आते हैं। लेकिन सभी की भाषा एक थी- संगीत की भाषा। सबका उद्देश्य एक था। वैसे, तकनीक ने मुझे दुनिया भर के फनकारों से जोड़ने में काफी मदद की है। मैं अलग-अलग देशों एवं संस्कृतियों के संगीतकारों से प्रभावित रहा हूं। मुझे पंडित रवि शंकर, उस्ताद नुसरत फतह अली खान, पीटर गेब्रियल एवं ए.आर. रहमान की शैली पसंद हैं। इन सबने वह संगीत सृजित किया, जिसमें वे विश्वास करते थे। ये किसी एक देश की सीमा में बंधकर नहीं रहे, बल्कि पूरा विश्व उनका म्यूजिकल कैनवस बना।

हाल में रिलीज हुई डॉक्यूमेंट्री ‘वाइल्ड कर्नाटक’ को काफी सराहना मिली। इसमें आपका म्यूजिक स्कोर है। कैसा महसूस कर रहे हैं?

कर्नाटक मेरा गृह प्रदेश है। मुझे बेंगलुरु से होने का गर्व है। ऐसे में जब कुछ सर्वश्रेष्ठ भारतीय वाइल्डलाइफ फिल्म निर्माताओं ने मुझे एक फिल्म के लिए संगीत तैयार करने के उद्देश्य से संपर्क किया, तो इंकार नहीं कर सका। क्योंकि इसमें न सिर्फ कर्नाटक की सुंदरता को दिखाया गया है, बल्कि सर डेविड एटनबरो ने डॉक्यूमेंट्री को अपनी आवाज दी है। दृश्यों को वर्णित किया है। मैं स्वयं डेविड का बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूं। मेरे लिए यह सम्मान की बात थी कि एक ऐसी फिल्म के लिए संगीत देने का प्रस्ताव था, जिसमें डेविड की अहम भूमिका थी। दर्शकों को यह फिल्म पसंद आई। उनकी जो प्रतिक्रिया मिली, उसकी उम्मीद नहीं की थी। यह पहली नेचुरल हिस्ट्री फिल्म थी, जो देश भर के सिनेमाघरों में रिलीज हुई। न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में इसका प्रीमियर हुआ।

आपने शिक्षाविद्, संगीतकार, पर्यावरणविद् के रूप में ख्याति पाई है। लेकिन कलात्मक संतुष्टि किसमें मिलती है? क्या अपनी अंतरआत्मा की आवाज को सुन पाते हैं?

ये सभी भूमिकाएं अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन सभी एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं और सभी का एक ही उद्देश्य है। मैंने अपना जीवन संगीत को समर्पित किया है और उसके माध्यम से भिन्न-भिन्न सामाजिक सरोकारों से जुड़ा हूं। पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाने एवं उसके सकारात्मक सामाजिक प्रभाव को लेकर जो कर सकता हूं, वह करता हूं। मैंने हमेशा यह माना है कि अगर हम एक जागरूक, पर्यावरण प्रेमी नागरिकों की पीढ़ी तैयार करना चाहते हैं, तो शुरुआत बच्चों से करनी होगी। इसके तहत, मैंने अपने दोस्तों, लोनी पार्क, डॉमनिक डी क्रूज के साथ मिलकर 'माई अर्थ' सॉन्ग्स तैयार किए हैं, जो अब तक 50 लाख से अधिक स्कूल की किताबों में अपनी जगह बना चुकी है। जर्मनी के बॉन स्थित संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने इसे मान्यता देते हुए मुझे सम्मानित भी किया है। मैं उम्मीद करता हूं कि दुनिया भर के बच्चे इन गीतों को गुनगुनाएंगे और उनमें निहित संदेश को समझेंगे।


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