एमएसपी की गारंटी बिगाड़ सकती है जिंस बाजार का ताना बाना, किसानों को उठाना पड़ेगा खामियाजा, जानिए, कैसे
एमएसपी की गारंटी देने यानी लीगल करते ही भारत वैश्विक अनुबंध को तोड़ने का दोषी माना जा सकता है। इस समय भारत दुनिया का बड़ा कृषि उत्पाद निर्यातक बनने की ओर है। किसानों की यह मांग इसमें आड़े आ सकती है।
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी का राह अलाप रहे किसान संगठन और राजनीतिक दलों को शायद इसके नतीजे का भान नहीं है। विश्व में कहीं भी इसकी गारंटी नहीं है कि एमएसपी से नीचे कोई अनाज ही नहीं बिकेगा। अगर ऐसा होता है तो घरेलू जिंस बाजार के स्वाभाविक ताना बाना के चटकने का गंभीर खतरा तो है ही, आयात और निर्यात का संतुलन भी बिगड़ सकता है। वैश्विक बाजार में अलग-थलग पड़ने का जोखिम भी उठाने की नौबत आ सकती है। इसका सबसे बड़ा असर कृषि उत्पादों के घरेलू बाजार पर पड़ेगा, जिसका खामियाजा अंतत: किसानों को ही उठाना पड़ सकता है। यही वजह है कि सरकारें इसमें हाथ डालने से अब तक बचती रहीं हैं।
एमएसपी की गारंटी: वैश्विक बाजार में घरेलू चीनी का मूल्य अधिक होने के कारण खरीदार नहीं मिल रहे
देश में कुल 23 फसलों का एमएसपी घोषित होता है जिसमें एकमात्र गन्ने की फसल की एमएसपी की गारंटी है। इसका नतीजा यह हुआ कि गन्ना किसानों के हजारों करोड़ रुपए मिलों पर बकाया है। दूसरी ओर वैश्विक बाजार में घरेलू चीनी का मूल्य अधिक होने के कारण खरीदार नहीं मिल रहे है। सरकार को निर्यात सब्सिडी देनी पड़ रही है। इसके खिलाफ दुनिया के 11 गन्ना उत्पादक देशों ने डब्लूटीओ में भारत की शिकायत कर इसे रोकने की मांग उठाई है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमत एमएसपी से कम है
धान और गेहूं की एमएसपी बढ़ाये जाने पर भी प्रमुख गेहूं उत्पादक देशों के एतराज पर भारत को दो साल पहले चेतावनी मिल चुकी है। नजीर के तौर पर गेहूं का एमएसपी 1975 रुपए है, जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं 1408 रुपए प्रति क्विंटल है। उत्तरी राज्यों से तटीय राज्यों तक गेहूंं की ढुलाई आदि का खर्च और अंतरराष्ट्रीय पोर्ट से भारतीय पोर्ट तक का ढुलाई खर्च लगभग समान है। भला ऐसे में प्रसंस्करण इकाइयां क्या करेंगी? एमएसपी वाली फसलों की कुल कीमत 9.25 लाख करोड़ रूपए आंकी गई है, जिसे सरकार खरीद नहीं सकती है।
दुनिया में कहीं भी मूल्य की गारंटी नहीं होती, मांग-आपूर्ति के आधार पर घटती बढ़ती हैं कीमतें
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में एग्रो इकोनॉमिस्ट प्रोफेसर राकेश सिंह का कहना है 'भारत में फिलहाल सभी खाद्यान्न फसलों के साथ हार्टिकल्चर सेक्टर में जरूरत से ज्यादा उत्पाद हो रहा है। इसकी खपत के लिए निर्यात सबसे अहम विकल्प है। यह घरेलू कृषि जिंसों के लिए बहुत जरूरी है, जिसे हम नहीं खो सकते हैं।' प्रमुख कृषि अर्थशास्त्री पीके जोशी का कहना है 'पूरी दुनिया में कहीं भी किसी उत्पाद के मूल्य लीगल नहीं है। यह असंभव सी मांग है, जिसे पूरा नहीं किया जा सकता है। यह किसानों के लिए ही आत्मघाती होगा।'
आयात-निर्यात का संतुलन बिगड़ने से वैश्विक बाजार में अलग-थलग पड़ने का खतरा
एमएसपी की गारंटी वाले कानून घरेलू कीमतें ज्यादा होने की दशा में कृषि प्रसंस्करण उद्योग मंडियों से उत्पाद खरीदने की जगह आयात को प्राथमिकता देगा। दरअसल घरेलू कृषि की लागत अधिक होने की वजह से घोषित एमएसपी भी अधिक होती है। जबकि वैश्विक बाजार में मूल्य नीचे होते हैं। यही वजह कि गेहूं का निर्यात संभव नहीं है। चावल और चीनी के लिए निर्यात सब्सिडी देनी पड़ती है, जिससे विश्व बिरादरी में भारत की चुनौतियां बढ़ने लगी हैं। अलग थलग पड़ने का खतरा बढ़ सकता है।
एमएसपी की गारंटी वाली मांग दुनिया का बड़ा कृषि उत्पाद निर्यातक देश बनने में आड़े आ सकती है
यही वजह है कि सरकार अपने किसानों को निर्यात सब्सिडी की जगह 'इनकम सपोर्ट' के तौर पर सालाना 6000 रुपए की वित्तीय मदद कर रही है। सब्सिडी का पैटर्न बदल दिया गया है, जो डब्लूटीओ की ग्रीन बाक्स में आता है। एमएसपी की गारंटी देने यानी लीगल करते ही भारत वैश्विक अनुबंध को तोड़ने का दोषी माना जा सकता है। इस समय भारत दुनिया का बड़ा कृषि उत्पाद निर्यातक बनने की ओर है। किसानों की यह मांग इसमें आड़े आ सकती है।
फसलों की खरीद खेत पर होने लगे तो इन किसानों का भला हो सकता है
प्रोफेसर सिंह ने बताया कि एमएसपी के लीगल होने से इतनी बड़ी मात्रा में फसलों की खरीद कैसे की जा सकती है? भंडारण सुविधा और उसकी खपत कहां की जाएगी। भारत में इस समय 31.5 करोड़ टन हार्टिकल्चर फसलों की उपज होती है जबकि 29.7 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन होता है। हार्टिकल्चर की किसी भी उपज का एमएसपी घोषित नहीं किया जाता है। इन फसलों की 95 फीसद खेती छोटे किसान करते हैं। इन फसलों के मूल्य में उतार-चढ़ाव भी ज्यादा होता है। इनकी खरीद किसान के खेत पर होने लगे तो इन किसानों का भला हो जाएगा। इनमें निर्यात की पर्याप्त संभावनाएं भी हैं।
घरेलू बाजार में कॉटन महंगी होने की दशा में आयात करने से किसानों की हालत खराब होगी
टेक्सटाइल सेक्टर के जानकार डीके मौर्य बताते हैं कि घरेलू बाजार में कॉटन महंगी होने की दशा में हमे आयात करना पड़ेगा। इससे घरेलू किसानों की हालत खराब होगी, उनके कॉटन को सरकार खरीद कर क्या करेगी? बाजार के समीकरण को समझे बगैर इस तरह की मांग सिर्फ नादानी है।