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एमपी हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, लोकतंत्र में किसी की आजादी और निजता नहीं कर सकते बाधित

एडीजी डॉ. राजेंद्र मिश्रा के पिता कुलामणि मिश्रा के मामले में मध्य प्रदेश मानव अधिकार आयोग की कार्रवाई को हाईकोर्ट ने गलत ठहराया है।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Thu, 20 Jun 2019 09:58 AM (IST)Updated: Thu, 20 Jun 2019 10:48 AM (IST)
एमपी हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, लोकतंत्र में किसी की आजादी और निजता नहीं कर सकते बाधित
एमपी हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, लोकतंत्र में किसी की आजादी और निजता नहीं कर सकते बाधित

भोपाल, [जेएनएन]। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए प्रदेश की मानव अधिकार आयोग की कार्रवाई को गलत ठहरा दिया है। मामला मध्य प्रदेश पुलिस मुख्यालय में एडीजी डॉ. राजेंद्र मिश्रा के पिता कुलामणि मिश्रा के संदर्भ में मध्य प्रदेश मानव अधिकार आयोग की कार्रवाई का है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मानव अधिकार आयोग की कार्रवाई को गलत ठहराया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि प्रजातंत्र में किसी की आजादी और निजता को बाधित नहीं किया जा सकता। आयोग की ओर से जो कार्रवाई हुई, उसे शुरू नहीं होना था। इससे यह तय हो गया कि मेडिकल बोर्ड को एडीजी मिश्रा के पिता का परीक्षण करने का कोई अधिकार नहीं।

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की मुख्य पीठ जबलपुर के न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन की एकल पीठ ने यह बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाया, फैसला दो दिन पहले जारी हुआ था, जिसे कोर्ट की वेबसाइट पर बुधवार को अपलोड किया गया। फैसले में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसले और फ्रेंच दार्शनिक नोबल प्राइज विजेता अल्बर्ट कैमोस का संदर्भ भी दिया गया है। एडीजी मिश्रा की माता शशिमणि मिश्रा की ओर से एडवोकेट अमित मिश्रा ने पैरवी की। उन्होंने बताया कि याचिका में जो मुद्दे उठाए गए थे, हाईकोर्ट ने उन्हें मान्य कर दिया, निजता (प्राइवेसी) के अधिकार और मध्य प्रदेश मानव अधिकार आयोग के क्षेत्राधिकार के मुद्दे पर भी हाई कोर्ट ने टिप्पणी की है। एडवोकेट मिश्रा ने बताया कि इस महत्वपूर्ण फैसले के बाद तय हो गया कि आयोग की सिफारिश पर गठित मेडिकल बोर्ड को कोई हक नहीं कि वह किसी के घर में जाकर जबरिया स्वास्थ्य परीक्षण करे।

क्षेत्राधिकार को दी थी चुनौती 
उल्लेखनीय है कि एडीजी मिश्रा की मां शशिमणि मिश्रा ने आयोग की कार्रवाई को अपनी निजता, मानव और मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि आयोग ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर मामले में अनावश्यक हस्तक्षेप किया। मामले पर 11 अप्रैल को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित कर दिया गया था। हाई कोर्ट ने अपने 16 पेज के फैसले में कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं।

फैसले पर थी सभी की निगाहें 
उल्लेखनीय है कि अपने तरह के इस अनूठे मामले में कोर्ट के फैसले पर सभी की निगाहें लगी हुई थीं। राजधानी के बंसल अस्पताल ने कुलामणि मिश्रा का इलाज करने के बाद 14 जनवरी को उन्हें मृत घोषित कर दिया था। मिश्रा के परिजन का दावा है कि उनके पारिवारिक नाड़ी वैद्य ने घर पर जब परीक्षण किया तो उनकी सांस और नाड़ी चलती पाई गई। इसके बाद से उनका घर पर ही इलाज चल रहा है। मामले में आयोग ने मेडिकल बोर्ड गठित कर जांच रिपोर्ट सौंपने की सिफारिश की थी लेकिन मिश्रा के परिजन ने आयोग द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड को घर में प्रवेश और परीक्षण की अनुमति नहीं दी

फैसला पढ़कर ही देंगे प्रतिक्रिया: राव 
मध्य प्रदेश मानव अधिकार आयोग के रजिस्ट्रार जेपी राव ने इस संबंध में इतना ही कहा कि फैसला आने की जानकारी उन्हें भी मिली है लेकिन अभी फैसले का अवलोकन नहीं किया। फैसले को पढ़ने के बाद ही कोई प्रतिक्रिया दे सकेंगे।

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