विपक्षी नेताओं के खिलाफ CBI के अधिकांश केस अदालत के निर्देश पर, ED की जांच शुरू करने का दायरा सीमित
विपक्ष की ओर से सरकार पर सीबीआई और ईडी के दुरूपयोग का आरोप लगाया जा रहा है। कहा जा राह है कि विपक्षी नेताओं को जानबूझकर सरकार फंसा रही है। सच्चाई यह है कि विपक्षी नेताओं के अधिकांश मामलों की सीबीआई जांच हाईकोर्ट की निगरानी में हो रही है।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। विपक्ष की ओर से सरकार पर सीबीआई और ईडी के दुरूपयोग का आरोप लगाया जा रहा है। कहा जा राह है कि विपक्षी नेताओं को जानबूझकर सरकार फंसा रही है। लेकिन जांच एजेंसी से जुड़े एक अधिकारी के अनुसार, सच्चाई यह है कि विपक्षी नेताओं के अधिकांश मामलों की सीबीआई जांच हाईकोर्ट की निगरानी में हो रही है।
ईडी की जाँच शुरू करने का दायरा सीमित
वहीं, ईडी की जाँच शुरू करने का दायरा सीमित है, वह उन्हीं मामले की जाँच कर रही है, जिनमें पहले से भ्रष्टाचार का केस दर्ज है। मनीष सिसोदिया के खिलाफ दिल्ली आबकारी नीति और लालू यादव व उनके परिवार के खिलाफ रेलवे के दो घोटालों को छोड़कर पश्चिम बंगाल से लेकर महाराष्ट्र तक सीबीआई हाईकोर्ट के आदेश पर ही विपक्षी नेताओं के खिलाफ मामला दर्ज किया है।
सीबीआइ का दायरा सीमित
एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, सीबीआइ के पास केंद्र और केंद्र शासित प्रदेशों से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों के अलावा किसी के खिलाफ स्वत: एफआइआर दर्ज करने का अधिकार नहीं है। राज्यों के मामले में सीबीआई तभी एफआइआर दर्ज कर सकती है, जब राज्य सरकार अपनी ओर से जाँच के लिए कहे फिर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट इसके लिए आदेश दे।
कई राज्यों में सीबीआई दर्ज नहीं कर पा रही एफआईआर
हैरानी की बात है कि तेलंगाना, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, केरल से लेकर तमाम विपक्षी शासित राज्यों ने सीबीआइ जाँच के लिए जेनरल कंसेंट भी वापस ले लिया, जो पहले कभी नहीं हुआ। हालात यह है कि सीबीआई अब इन विपक्ष शासित राज्यों में केंद्रीय कर्मचारियों के खिलाफ भी एफआइआर दर्ज नहीं कर सकती है।
सीबीआई ने खुद नहीं की जांच शुरू
वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राज्यों के किसी विपक्षी नेता के खिलाफ सीबीआइ ने खुद जांच शुरू नहीं की। सिर्फ आइआरसीटीसी घोटाला और जमीन के बदले नौकरी घोटाले की जाँच केंद्र सरकार ने सीबीआइ को दी, क्योंकि ये दोनों घोटाले लालू यादव के रेल मंत्री रहने के दौरान हुए थे। जाहिर है इनमें लालू यादव और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव समेत परिवार के कई सदस्य आरोपित हैं।
दिल्ली में मिला हुआ है जांच करने का आधिकार
वहीं, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र होने के कारण केंद्रीय गृहमंत्रालय और उपराज्यपाल को अधिक शक्ति मिली हुई है। यही नहीं दिल्ली पुलिस विशेष स्थापना कानून के तहत सीबीआई को दिल्ली के मामलों की जाँच करने का अधिकार है। इसी अधिकार के तहत सीबीआई ने दिल्ली आबकारी नीति घोटाला और जासूसी कांड में मनीष सिसोदिया के खिलाफ एफआइआर दर्ज किया है। सबसे अधिक विपक्षी नेताओं की सीबीआई जांच पश्चिम बंगाल में हो रही है।
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कई घोटालों की हो रही जांच
चिटफंड घोटाले से लेकर नारदा स्टिंग आपरेशन, शिक्षक भर्ती घोटाला, पशु तस्करी घोटाला और 2021 के बाद चुनावी हिंसा के कई मामले हैं, जिनकी जाँच सीबीआई कर रही है, लेकिन इन सबके लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है। इसी तरह से महाराष्ट्र में 100 करोड़ की वसूली के मामले में महाअघाड़ी गठबंधन में गृहमंत्री रहे अनिल देशमुख और मंत्री अनिल परब के खिलाफ सीबीआई जाँच कर रही है, लेकिन यह मुंबई हाईकोर्ट के आदेश और उसी की निगरानी में हो रहा है।
विपक्षी नेताओं के लिए सीबीआई से ज्यादा परेशानी की वजह ईडी बना हुआ है। इसकी वजह मनी लांड्रिंग रोकथाम कानून के कड़े प्रावधान हैं। इसमें ढील की मांग लेकर कुछ आरोपी पहले ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन कड़े प्रावधानों को सही करार दे दिया था। वैसे भी किसी के खिलाफ केस दर्ज करने के लिए ईडी का अधिकार सीमित है। जब तक कोई अन्य एजेंसी एफआइआर दर्ज नहीं कर ले ईडी मनी लांड्रिंग की जांच शुरू नहीं कर सकती है।
झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तमिलनाडु समेत सभी राज्यों विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी की जाँच राज्य पुलिस, एनआइए या सीबीआई की एफआइआर के बाद ही शुरू हुई है। ईडी के खिलाफ कांग्रेस की सबसे बड़ी शिकायत यही है कि बिना किसी एफआइआर के ईडी ने नेशनल हेराल्ड मामले में मनी लांड्रिंग का केस दर्ज कर लिया। लेकिन अदालत द्वारा आरोपों का संज्ञान लेने और हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे सही ठहराये जाने के आधार पर ईडी अपने फैसले को सही ठहरा रहा है।
ईडी के खिलाफ कम सजा के दर का आरोप के आँकड़े भी भ्रामक हैं। विपक्षी नेता लगातार ईडी में दर्ज कुल केस से सजा होने वाले की तुलना कर सजा की दर को एक फीसद से कम बताते हैं, जबकि सजा दर का आकलन पूरे साल में अदालत के अंतिम फैसले के आधार पर तय होता है। इस पैमाने पर ईडी के केसों में सजा की दर सीबीआई और एनआइए से भी आगे है। सीबीआई के मामले सजा की दर 67 फीसद, एनआइए की 92 फीसद है, जबकि ईडी की 96 फीसद है।