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कुपोषण के चलते भारत में सबसे ज्यादा बच्चे बौनेपन का शिकार, मापदंड मापने की सरकार कर रही समीक्षा

भारत में 2.55 करोड़ बच्चे कुपोषित हैं। जबकि नाइजीरिया व इंडोनेशिया में इनकी संख्या 34 व 33 लाख है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sun, 15 Sep 2019 08:33 PM (IST)Updated: Sun, 15 Sep 2019 08:48 PM (IST)
कुपोषण के चलते भारत में सबसे ज्यादा बच्चे बौनेपन का शिकार, मापदंड मापने की सरकार कर रही समीक्षा
कुपोषण के चलते भारत में सबसे ज्यादा बच्चे बौनेपन का शिकार, मापदंड मापने की सरकार कर रही समीक्षा

नई दिल्ली, प्रेट्र। सरकार बच्चों में बौनापन मापने के मापदंड की समीक्षा कर रही है। साथ ही भारतीय मानव विज्ञान के अनुसार इसके भारतीयकरण के तरीके का पता भी लगा रही है। सूत्रों ने यह जानकारी दी।

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पर्याप्त पोषण न मिलने, बार-बार संक्रमण आदि के कारण बच्चों की लंबाई प्रभावित होती है। इसे बौनापन कहा जाता है। फिलहाल बौनेपन का निर्धारण बच्चे की लंबाई के आधार पर किया जाता है। ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट-2018 के अनुसार, भारत में सबसे ज्यादा 4.66 करोड़ बच्चे बौनेपन का शिकार हैं। इसके बाद नाइजीरिया व पाकिस्तान का नंबर आता है, जहां क्रमश: 1.39 व 1.07 करोड़ बच्चों में बौनेपन की समस्या है। भारत में 2.55 करोड़ बच्चे कुपोषित हैं, जबकि नाइजीरिया व इंडोनेशिया में इनकी संख्या क्रमश: 34 व 33 लाख है।

बिहार में भी अधिकतर बच्चे बौनेपन का शिकार
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (NFHS-4) के अनुसार, भारत में पांच साल से कम उम्र के 38.4 फीसद बच्चों में बौनापन है। यानी, उनकी लंबाई उम्र के मुकाबले कम है। दूसरी तरफ, 21 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं, जिनका वजन उनकी लंबाई के अनुपात में कम है। सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार में पांच साल से कम उम्र के 48.3 फीसद बच्चे बौनेपन का शिकार हैं।

आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि भारत के विभिन्न हिस्सों में बच्चों का मानव संरचना विज्ञान बदलता है। विविधतापूर्ण देश में बच्चों में बौनापन मापने का एक ही मापदंड सही नहीं हो सकता। उन्होंने बताया कि सरकार हार्वर्ड टीएच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और विश्व स्वास्थ्य संगठन की मदद से यह जानने का प्रयास कर रही है कि बौनेपन को मापने वाले अंतरराष्ट्रीय मापदंड का भारतीयकरण कैसे किया जाए।

केंद्र व राज्य सरकारें कर रहीं जागरूक
केंद्र सरकार विभिन्न राज्यों के कुपोषित बच्चों की भोजन की जरूरतों को समझते हुए स्थानीय स्तर पर उपलब्ध ऐसे खाद्य पदार्थो का अध्ययन भी करा रही है, जो पोषणयुक्त होने के साथ-साथ सस्ते और पारंपरिक रूप से स्वीकार्य हों। सरकार बच्चों व उनके परिजनों को भी पोषण के बारे में जागरूक कर रही है।

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