मलाला यूसुफजई की ब्रांड एम्बेसडर बनीं मुरादाबाद की बेटियां
रजिया, सोनम और तंजीम का हौसला खादर क्षेत्र में रहने वाले अन्य गरीब की बेटियों को भी पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित कर रहा है।
मुरादाबाद [मोहसिन पाशा]। पीतलनगरी के नाम से दुनिया में पहचान बनाने वाले उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में शिक्षा के लिए तमाम यूनिवर्सिटी, कालेज और स्कूल खुल गए हैं। इसके बाद भी गरीबी और मुफलिसी में जिंदगी गुजारने वाली बाढ़ प्रभावित खादर क्षेत्र की बेटियों के लिए आज भी पढ़ाई जारी रखना बड़ी चुनौती है। ऐसे हालात में खेतों में मजदूरी कर कुंदरकी के खादर की तीन बेटियां पढ़ रही हैं।
रजिया, सोनम और तंजीम का हौसला खादर क्षेत्र में रहने वाले अन्य गरीब की बेटियों को भी पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित कर रहा है। यही वजह है कि पाकिस्तान में आतंकियों के जुल्मों सितम के बीच अपनी पढ़ाई जारी रखकर नोबल पुरस्कार पाने वाली मलाला यूसुफजई को खादर की इन तीन बेटियों के संघर्ष की कहानी बेहद पंसद आई है। उन्होंने दुनियाभर की गरीब बेटियों में शिक्षा की अलख जलाने के लिए इन तीनों को ब्रांड एम्बेसडर बना लिया है।
अमेरिका में मलाला फंड में काम करन वाली भारतीय मूल की भूमिका के निर्देशन में आई कम्यूनिकेशन टीम नव भारत समाज कल्याण समिति की महासचिव व समाजसेविका रेहाना रहमान के सहयोग से तीनों बेटियों की पढ़ाई के लिए संघर्ष करने की लघु फिल्म बनाकर ले गई हैं। संस्था विश्वभर में इन बेटियों को ब्रांड एम्बेसडर के रूप में स्थापित कर इनके संघर्ष की कहानी दिखाकर गरीब बेटियों को शिक्षा के लिए प्रेरित करेगी।
यू-ट्यूब पर सोनम का वीडियो
मलाला फंड ने यू-ट्यूब पर सोनम के वीडियो को शेयर किया है। सोनम का वीडियो गरीब बेटियों में शिक्षा के लिए अलख जला रहा है। उसमें दिखाया गया है कि गरीबी से संघर्ष कर किस तरह पढ़ाई को जारी रखा जा सकता है।
बाढ़ के दिनों में नाव से स्कूल जाती है सोनम
रामगंगा के खादर के छोटे से गांव अब्दुल्लापुर के रहने वाले तांगा चालक प्रथ्वीलाल की बेटी सोनम की पढ़ाई किताबों के लिए रुपये न होने की वजह से सातवीं कक्षा में छूट गई थी, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने खेतों में मजदूरी कर अपनी ही नहीं तीन बहनों की पढ़ाई का भी जिम्मा लिया। इसके बाद पढ़ाई शुरू की और पिछले साल हाईस्कूल में 84 फीसद नंबर लाकर तहसील में अपने गांव का नाम रोशन कर दिया। अब वह 12वीं कक्षा में है। सोनम के गांव से आना-जाने को रामगंगा नदी पर छोटा पुल बना है। नदी में पानी बढ़ते ही यह पुल डूब जाता है। इसलिए, बाढ़ के दिनों में सोनम जान जोखिम में डालकर नाव से स्कूल जाती है।
मजदूरी कर स्कूल की फीस देती है रजिया
कुंदरकी के खादर के रहमाननगर बांहपुर गांव के नेत्रहीन कल्लू की बेटी रजिया की कहानी भी मार्मिक है। कक्षा नौ की छात्रा रजिया का परिवार बेहद गरीब है। दो वक्त की रोटी के लिए परिवार को संघर्ष करना पड़ता है। ऐसे में उसकी पढ़ाई पांचवीं कक्षा में छूट गई थी। इसके बाद उसने मजदूरी कर फिर से पढ़ाई शुरू की। अब वह अपने इलाके के गरीब बेटियों के लिए मिसाल बनी है। रजिया से प्रेरणा लेकर उनके गांव की 10 बेटियों ने स्कूल में दाखिला ले लिया है।
गरीबी से लड़कर हाईस्कूल तक पहुंची तंजीम
खादर के मजरा बांहपुर गांव के मोमीन अहमद की बेटी तंजीम गरीबी से लड़कर हाईस्कूल में पढ़ रही है। मदरसे से उसने पढ़ाई शुरू की थी। वहां फीस जमा करने के लिए परिवार वालों के पास रुपये नहीं थे। समाजसेविका रेहाना रहमान के समझाने पर परिवार वालों ने तंजीम का दाखिला गांव के ही जूनियर हाईस्कूल में करा दिया। स्कूल में फीस तो नहीं देनी थी, लेकिन किताबें खरीदने के लिए भी उसके पास रुपये नहीं थे। तंजीम ने किताबों के लिए खुद संघर्ष किया और पढ़ाई जारी की।