Karwa Chauth 2018: सबसे पहले दिल्ली में निकला चांद, सुहागिनों ने अर्घ्य देकर खोला व्रत
चंद्र दर्शन एवं पूजन का इस व्रत विशेष पर खास महत्व है। सदियों से परंपरा चली आ रही है चंद्र दर्शन के बाद ही करवाचौथ का व्रत पूर्ण होता है।
नई दिल्ली, एएनआइ। राजधानी में शनिवार को करवा चौथ का चांद नजर आया। इसके बाद पूरे देश में सुहागिनों ने अपना व्रत तोड़ा। चंद्र दर्शन एवं पूजन का इस व्रत विशेष पर खास महत्व है। सदियों से परंपरा चली आ रही है चंद्र दर्शन के बाद ही करवाचौथ का व्रत पूर्ण होता है।
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार प्रेम, निष्ठा और समर्पण के इस विशेष दिन की पूजा में मनोवैज्ञानिक भाव अधिक निहित होता है। यही भाव चंद्र दर्शन के समय भी होता है। हर सुहागिन की मन में कामना इस दिन होती है कि माथे पर सुहाग के चिन्ह यूं ही दमकते रहें और अंतिम सांस तक सौभाग्य का सुख मिलता रहे।
क्या है मनोवैज्ञानिक भाव
पंडित वैभव जोशी के बताते हैं कि रामचरितमानस के लंका कांड के अनुसार, जिस समय भगवान श्रीराम समुद्र पार कर लंका में स्थित सुमेर पर्वत पर उतरे और श्रीराम ने पूर्व दिशा की ओर चमकते हुए चंद्रमा को देखा तो अपने साथियों से पूछा कि चंद्रमा में जो कालापन है, वह क्या है? सभी ने अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार जवाब दिया। किसी ने कहा चंद्रमा में पृथ्वी की छाया दिखाई देती है। किसी ने कहा राहु की मार के कारण चंद्रमा में कालापन है तो किसी ने कहा कि आकाश की काली छाया उसमें दिखाई देती है। तब भगवान श्रीराम ने कहा कि विष यानी जहर चंद्रमा का बहुत प्यारा भाई है (क्योंकि चंद्रमा व विष समुद्र मंथन से निकले थे)। इसीलिए उसने विष को अपने हृदय में स्थान दे रखा है, जिसके कारण चंद्रमा में कालापन दिखाई देता है। अपनी विषयुक्त किरणों को फैलाकर वह वियोगी नर-नारियों को जलाता रहता है। पंडित वैभव के अनुसार इस पूरे प्रसंग का मनोवैज्ञानिक पक्ष यह है कि जो पति-पत्नी किसी कारणवश एक-दूसरे से बिछड़ जाते हैं, चंद्रमा की विषयुक्त किरणें उन्हें अधिक कष्ट पहुंचाती हैं। इसलिए करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा कर महिलाएं ये कामना करती हैं कि किसी भी कारण उन्हें अपने प्रियतम का वियोग न सहना पड़े।