Move to Jagran APP

समय पर सामान्‍य मानसून, भई वाह! अब गांवों में तालाबों और पोखरों की खुदाई का काम भी शुरू

मानसून के पानी को बचाने में गांव में बने पोखर और तालाब बड़ी अहम भूमिका निभाते हैं। अब इनको गहरा करने का काम शुरू हो गया है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 14 Jun 2020 11:40 AM (IST)Updated: Sun, 14 Jun 2020 11:40 AM (IST)
समय पर सामान्‍य मानसून, भई वाह! अब गांवों में तालाबों और पोखरों की खुदाई का काम भी शुरू
समय पर सामान्‍य मानसून, भई वाह! अब गांवों में तालाबों और पोखरों की खुदाई का काम भी शुरू

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। मानसून समय पर है और सामान्य है। सोने पे सुहागा वाली मानसून की इस तस्वीर का देश और देश के लोगों के लिए खास महत्व है। कोविड-19 महामारी से जहां देश के तमाम क्षेत्रों की नकारात्मक या न्यूनतम वृद्धि दर रही है, वहीं कृषि और उससे जुड़े अन्य क्षेत्र इससे अछूते रहे हैं। जब देश की अर्थव्यवस्था के बढ़ने की दर 3.1 फीसद के न्यूनतम स्तर पर रही हो और कृषि क्षेत्र ने 5.9 फीसद की ऐतिहासिक वृद्धि दर हासिल की हो, तो सबकी उम्मीदें इसी पर टिक जाती हैं। जब दिग्गज कार निर्माता कंपनियां तमाम प्रयासों के बावजूद एक भी कार न बेच पाई हों और महिंद्रा एंड महिंद्रा व सोनालिका के ट्रैक्टरों की बिक्री क्रमश: दो और 19 फीसद बढ़ गई हो तो प्रतिकूल आर्थिक हालात में कृषि क्षेत्र पर भरोसा दोगुना बढ़ जाता है।

loksabha election banner

मानसून देगा सुकून

अब चूंकि मानसूनी बारिश भी अच्छी होने का अनुमान है। लिहाजा खेती-किसानी देश की अर्थव्यवस्था का आधार बनती दिख रही है। तमाम अध्ययन में ये बात सामने आ चुकी है कि अच्छे मानसून के चलते ग्रामीण क्षेत्र की आय में इजाफा होता है। चूंकि देश की कुल मांग में 45 फीसद हिस्सेदारी ग्रामीण क्षेत्र से होती है, लिहाजा यह सामान्य मानसून देश की अर्थव्यवस्था के लिए असामान्य रहने वाला साबित हो सकता है। मांग ढ़ेगी तो आपूर्ति के लिए उद्योगों का पहिया घूमने लगेगा।

उद्योग चलेंगे तो लोगों को रोजगार मिलेंगे और समग्र आय में इजाफा होगा। मांग और पूर्ति के संतुलित चक्र से बने देश के समग्र सकारात्मक रुझान से बाजार भी अठखेलियां करने लगता है। आर्थिक परिदृश्य पर कोरोना के प्रतिकूल असर से लोगों के व्यग्र और दुखी मन को मानसून सुकून देने वाला साबित हो सकता है। मानसून के इस तात्कालिक लाभ के अलावा दूरगामी प्रभाव का ज्यादा असर है। रबी के अलावा खरीफ की फसलों के लिए अमृत सरीखी इसकी बूंदें लाभ पहुंचाती हैं। ज्यादा बारिश से जमीन के अंदर गहराई में नमी रहती है जिसका असर गेहूं की बुआई के दौरान भी रहता है।

नदी, ताल, पोखर में जमा पानी रिस-रिसकर भूगर्भ जल को बढ़ाता है जिसका लाभ हमें साल भर मिलता है। जरूरत है बारिश को सहेजने की। इसे बहकर समुद्र में बेकार न जानें दे। आपातकाल में पारंपरिक पेशा और प्रकृति ही हमारी रक्षक बनती है। ऐसे में महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था से लेकर जल संकट का तारणहार बनने वाले इस मानसून की महिमा की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है। 

आज भी खरे हैं तालाब

कामगार गांवों में पलायन कर गए। मनरेगा के तहत उनको रोजगार देने की पहल शुरू की गई है। इस कदम के तहत गांव पहुंचे कामगारों से तालाबों को गहरा करने, उनकी मरम्मत और नए निर्माण का काम प्रमुखता से कराया जा रहा है। इसका फायदा बारिश की बूंदों को सहेजने में मिलेगा।

बढ़ी अहमियत

मानसून के दौरान पानी तालजलस्नोतों में जमा होता है। इससे भूजल स्तर दुरुस्त रहता है। नमी बरकरार रहती है। धरती के बढ़ते तापमान पर नियंत्रण रहता है। तालाब सामाजिक, सांस्कृतिक केंद्र होते हैं। लोगों के रोजगार के भी ये बड़े स्नोत होते हैं।

कहां गए जीवनदाता

तब: 1947 में देश में कुल चौबीस लाख तालाब थे। तब देश की आबादी आज की आबादी की चौथाई थी।

अब: वैसे तो देश में तालाब जैसे प्राकृतिक जल स्नोतों का कोई समग्र आंकड़ा मौजूद नहीं है लेकिन 2000-01 की गिनती के अनुसार देश में तालाबों, बावड़ियों और पोखरों की संख्या 5.5 लाख थी। हालांकि इसमें से 15 फीसद बेकार पड़े थे, लेकिन 4 लाख 70 हजार जलाशयों का इस्तेमाल किसी न किसी रूप में हो रहा था।

अजब तथ्य

1944 में गठित अकाल जांच आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा था कि आने वाले वर्षों में पेयजल की बड़ी समस्या हो सकती है। इससे बचने के लिए तालाब ही कारगर होंगे। जहां इनकी बेकद्री ज्यादा होगी, वहां जल समस्या हाहाकारी रूप लेगी। आज बुंदेलखंड, तेलंगाना और कालाहांड़ी जैसे क्षेत्र पानी संकट के पर्याय हैं, कुछ दशक पहले अपने प्रचुर और लबालब तालाबों के रूप में इनकी पहचान थी।

खात्मे की वजह

इनकी जमीन का दूसरे मदों में इस्तेमाल किया जा रहा है। दरअसल तालाबों पर अवैध कब्जा इसलिए भी आसान है क्योंकि देश भर के तालाबों की जिम्मेदारी अलग-अलग महकमों के पास है। कोई एक स्वतंत्र महकमा अकेले इनके रखरखाव-देखभाल के लिए जिम्मेदार नहीं है


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.