नई दिल्ली [ नीलू रंजन ]। होटल देने के बदले में मॉल की जमीन लेने के आरोप में लालू यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी और बेटे तेजस्वी यादव की मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं। सीबीआइ की एफआइआर के बाद इस मामले में अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) मनी लांड्रिंग का केस दर्ज करने की तैयारी में है। मनी लांड्रिंग रोकथाम कानून (पीएमएलए) के तहत ईडी मॉल की जमीन के साथ-साथ होटल को भी जब्त कर सकता है।
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार ईडी इस मामले में मनी लांड्रिंग का केस दर्ज करने का मन बना चुकी है और सीबीआइ से एफआइआर की प्रति मांग चुकी है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मनी लांड्रिंग का यह सटीक केस है। इस मामले में लालू यादव, उनकी पत्नी, बेटे के साथ-साथ चाणक्य होटल के मालिक विनय कोचर ने फायदा उठाया है। कोचर रांची और पुरी के आइआरसीटीसी के दो होटलों का लीज सस्ते में लेने में सफल रहे, वहीं इसके एवज में लालू यादव, राबड़ी देवी और तेजस्वी प्रसाद को 94 करोड़ की जमीन 64 लाख रुपये में मिल गई। इसी जमीन पर तेजस्वी यादव बिहार का सबसे बड़ा मॉल बना रहे थे।
मनी लांड्रिंग रोकथाम कानून के अनुसार होटल और जमीन दोनों ही अवैध कमाई का हिस्सा है और ईडी को इन्हें जब्त करने का अधिकार है। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जल्द ही इस मामले में मनी लांड्रिंग का केस दर्ज कर लिया जाएगा और शुरूआती सबूत जुटाने के साथ ही दोनों होटलों और मॉल की जमीन को अस्थायी रूप से जब्त कर लेगा। उन्होंने कहा कि अदालत में आरोप सही साबित होने के बाद इन्हें स्थायी रूप से जब्त किया जाएगा।
लालू यादव पहली बार मनी लांड्रिंग रोकथाम कानून का सामना करेंगे। चारा घोटाले की जांच के समय मनी लांड्रिंग का कानून था ही नहीं। इसीलिए उनके खिलाफ सिर्फ सीबीआइ ने भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धाराओं के तहत जांच किया था। मनी लांड्रिंग का कानून 2002 में बना था और उसकी जांच के दायरे में भ्रष्टाचार से की गई काली कमाई को 2010 में लाया गया था। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोडा पहले राजनेता थे, जिनके खिलाफ मनी लांड्रिंग रोकथाम कानून के तहत कार्रवाई हुई थी। इस मामले में उनकी सैंकड़ों करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त हो चुकी है।
आरोप है कि रेल मंत्री रहते हुए लालू यादव ने पटना के चाणक्य होटल के मालिकों के साथ मिलीभगत कर उन्हें रांची और पुरी के आइआरसीटीसी होटलों को सस्ते में लीज पर दे दिया था। इसके लिए टेंडर के तय नियमों का पालन नहीं किया गया था। इसके एवज में लालू यादव के निकट सहयोगी प्रेमचंद गुप्ता के परिवार के सदस्यों की कंपनियों के नाम पर पटना के प्राइम इलाके में तीन एकड़ की प्रापर्टी ट्रांसफर कर दी गई। 2010 में यह धीरे-धीरे लालू यादव, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव की स्वामित्व वाली कंपनी में अधिकार में आ गई। तमाम कोशिशों के बावजूद सीबीआइ ने पूरे मामले के घोटाले के तहत तक पहुंचने में सफल रही।