राजनीति में कालेधन की सफाई को चुनावी बांड लाई मोदी सरकार
चुनावी बांड से सिर्फ वे पार्टियां ही चंदा ले पाएंगी जिन्हें पिछले लोक सभा चुनाव या राज्य विधान सभा चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हैं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नोटबंदी से कालेधन पर कड़ा प्रहार करने के बाद मोदी सरकार राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाने के लिए चुनावी बांड (इलेक्टोरल बान्ड) योजना लायी है। देश का कोई भी नागरिक या कंपनी पंजीकृत राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए एसबीआई की चुनिंदा शाखाओं से एक हजार रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक का चुनावी बांड खरीद सकेगा। राजनीतिक दल इस चुनावी बांड को अपने निर्धारित बैंक खाते में जमा कर भुना सकेंगे। हालांकि चुनावी बांड से सिर्फ वे पार्टियां ही चंदा ले पाएंगी जिन्हें पिछले लोक सभा चुनाव या राज्य विधान सभा चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हैं।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को लोक सभा में चुनावी बांड योजना की जानकारी देते हुए यह घोषणा की। उनके इस ऐलान के कुछ देर बात सरकार ने चुनावी बांड योजना की अधिसूचना जारी कर दी। वित्त वर्ष 2017-18 के बजट भाषण में जेटली ने देश में राजनीतिक फंडिंग पारदर्शी बनाने के लिए चुनावी बांड जारी करने की घोषणा की थी।
चुनावी बांड एक हजार रुपये, दस हजार रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये के होंगे और इन्हें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनिंदा शाखाओं से खरीदा जा सकेगा। कोई भी नागरिक या देश में रजिस्टर्ड कंपनी इस बांड के जरिए प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत दल को इसके जरिए दान दे सकेगा। हालांकि चुनावी बांड खरीदने वालों के नाम सार्वजनिक नहीं किए जाएंगे। वह किस दल को यह चुनावी बांड देगा इसकी जानकारी भी गुप्त रहेगी। चुनावी बांड राजनीतिक दल के सिर्फ एक बैंक खाते में ही भुनाया जा सकेगा जिसकी सूचना उसे चुनाव आयोग को देनी होगी। साथ ही आयोग को यह भी बताना होगा कि चुनावी बांड से उसे कुल कितना चुनावी चंदा मिला है।
सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रीय राजधानी के साथ-साथ राज्यों की राजधानी में एसबीआई की एक-एक शाखा को चुनावी बांड जारी करने के लिए अधिकृत किया जा सकता है। चुनावी बांड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में दस दिन के भीतर इन शाखाओं से खरीदा जा सकेगा। जिस साल लोक सभा के लिए आम चुनाव होंगे उस साल बांड खरीदने के लिए 30 दिन की अवधि मिलेगी। यह अवधि केंद्र सरकार अधिसूचित करेगी। हालांकि बांड की वैधता अवधि सिर्फ 15 दिन की होगी। इसका मतलब यह है कि जिस तारीख को यह जारी किया गया है, उसके पंद्रह दिन के भीतर राजनीतिक दल को इसे अपने खाते में जमा करके भुनाना होगा। वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि यह समयसीमा इसलिए तय की गयी है ताकि इसका इस्तेमाल समानांतर मुद्रा की तरह न हो। अगर इसकी वैधता अवधि अधिक समय तक रखी जाती तो इसके समानांतर मुद्रा के रूप में दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाती। सूत्रों ने यह भी कहा कि चुनावी बांड से राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया काफी हद तक पारदर्शी हो जाएगी। सूत्रों ने कहा कि चुनावी बांड के सिक्योरिटी फीचर बिल्कुल करेंसी नोट की तरह होंगे। इसकी छपाई शुरु हो गयी है।
वित्त मंत्री ने कहा कि आरंभिक सुझाव के आधार पर सरकार ने यह योजना तैयार की है और आने वाले समय में इसमें और भी सुझाव आते हैं तो सरकार उन पर विचार कर सकती है। उन्होंने कहा कि राजग सरकार ने 2001 में एक अहम सुधार करते हुए चैक से राजनीतिक चंदा देने वालों को टैक्स में छूट देने की पहल की थी। कुछ राजनीतिक दलों को चैक से मिलना शुरु हुआ लेकिन आज भी अज्ञात स्रोत से चंदा अधिक आ रहा है। इस व्यवस्था को बदलने के लिए सरकार ने चुनावी बांड की वैकल्पिक व्यवस्था बनायी है। नए सिस्टम से राजनीति में स्वच्छ धन आएगा और चुनावी फंडिंग में काफी हद तक पारदर्शिता आएगी।
क्या है चुनावी बांड?
करेंसी नोट जैसे सिक्योरिटी फीचर वाले चुनावी बांड को कोई भी नागरिक या कंपनी खरीद कर पंजीकृत पार्टियों को दान दे सकेंगे।
इतने के खरीदे जा सकेंगे चुनावी बांड
1000 रुपये
10,000 रुपये
1,00,000 रुपये
10,00,000 रुपये
1,00,00,000 रुपये
...''चुनावी बांड का उद्देश्य राजनीतिक फंडिंग को पारदर्शी और स्वच्छ बनाना है। अब तक यह आलोचना रही है कि पिछले सत्तर साल में जो व्यवस्था चली आ रही है उसमें राजनीतिक फंडिंग में कितना पैसा आता है, किस तरीके से आता है। किन लोगों से आता है और कहां-कहां खर्च होता है। इसलिए सरकार ने इस स्थिति को बदलने के लिए चुनावी बांड की वैकल्पिक व्यवस्था बनायी है।''
- अरुण जेटली, वित्त मंत्री
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