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दालों की घरेलू मांग को पूरा करने के लिए मोदी सरकार को कारगर रणनीति बनानी होगी

इस बार भारी बारिश ने पहले खरीफ की खड़ी फसलों को खराब किया और अब रबी में बोआई रकबा के घटने का अनुमान है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 02 Dec 2019 08:40 PM (IST)Updated: Mon, 02 Dec 2019 08:40 PM (IST)
दालों की घरेलू मांग को पूरा करने के लिए मोदी सरकार को कारगर रणनीति बनानी होगी
दालों की घरेलू मांग को पूरा करने के लिए मोदी सरकार को कारगर रणनीति बनानी होगी

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। चालू रबी सीजन में दलहनी फसलों की अच्छी पैदावार के आसार नहीं हैं। बीते खरीफ सीजन में पहले ही दलहन की पैदावार में कमी का अनुमान है। चालू रबी सीजन में शुरुआती धीमी गति के बाद अब गेहूं की बोआई ने रफ्तार पकड़ ली है, लेकिन दलहन और तिलहन वाली फसलों के बोआई रकबा में अब वृद्धि होने की संभावना नहीं है। इससे उत्पादन पर विपरीत असर पड़ेगा, जिससे दालों की महंगाई उपभोक्ताओं को परेशान कर सकती है।

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तिलहनी फसलों का उत्पादन घट सकता है

खरीफ सीजन के दौरान दलहनी फसलों वाले राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में मानसून की भारी बारिश ने खेत में खड़ी इन फसलों को चौपट कर दिया। इससे दलहन का पैदावार 82.3 लाख टन रह जाने का अनुमान है, जबकि कृषि मंत्रालय ने 1.01 करोड़ टन पैदावार का लक्ष्य निर्धारित किया था। इसी तरह तिलहनी फसलों का घरेलू उत्पादन वैसे भी बहुत कम है, जो इस बार और घट सकता है। इससे सरकार की तिलहनी फसलों की पैदावार बढ़ाने की मंशा को धक्का लगेगा।

गेहूं की बोआई देर से शुरु हुई

चालू रबी सीजन में गेहूं की बोआई देर से शुरु हुई, लेकिन अब रफ्तार पकड़ चुका है। कृषि मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़े के मुताबिक पिछले सप्ताह तक 1.50 करोड़ हेक्टेयर पहुंच गया है, जो पिछले साल के इसी अवधि के मुकाबले साढ़े नौ लाख हेक्टेयर ज्यादा है। लेकिन राजनीतिक रूप से संवेदनशील दलहनी फसलों की बोआई पिछले साल के 99.15 लाख हेक्टेयर के मुकाबले रकबा लगभग 10 लाख हेक्टेयर पीछे है। हालांकि बोआई छिटपुट जारी है। सामान्य तौर पर रबी सीजन में कुल दलहनी खेती 1.46 करोड़ हेक्टेयर में होती है।

दलहनी फसलों में संतोषजनक संकेत नहीं

घरेलू दालों में चना दाल की हिस्सेदारी 40 फीसद तक होती है। चना का बोआई रकबा पिछले साल के 68.40 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 61.59 लाख हेक्टेयर हो सकी है। जबकि सीजन के आखिर तक चने का औसतन कुल रकबा 93.53 लाख हेक्टेयर रहता है। अन्य दलहनी फसलों में भी बहुत संतोषजनक संकेत नहीं हैं। सरकार को इसके लिए समय से कारगर रणनीति बनानी होगी, जिससे दालों की घरेलू मांग को पूरा किया जा सके।

तिलहनी फसलों का रकबा घटा

इसी तरह तिलहनी फसलों का रकबा भी घटता हुआ दिख रहा है। दरअसल, मानसून की अच्छी बारिश न होने पर इन दोनों फसलों का रकबा बढ़ जाता है और उत्पादन भी, लेकिन इस बार भारी बारिश ने पहले खरीफ की खड़ी फसलों को खराब किया और अब रबी में बोआई रकबा के घटने का अनुमान है। खाद्य तेलों का सस्ता आयात होने से तिलहनी फसलों को लेकर बहुत हायतौबा नहीं मचती है, लेकिन दालों की कमी खामियाजा उपभोक्ता 2015-16 में भुगत चुके हैं, जब अरहर दाल 200 किलो तक बिक गई थी। 


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