राष्ट्रीय मेडिकल आयोग बनने से दूर होगी विशेषज्ञ डाक्टरों की कमी, बढ़ेंगी PG की सीटें
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि देश में डाक्टरों की कमी को दूर करने के लिए कई उपाय किये गए हैं।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। राष्ट्रीय मेडिकल आयोग (एनएमसी) के गठन के बाद देश में विशेषज्ञ डाक्टरों की कमी को दूर करने का रास्ता साफ हो सकता है। अभी तक निजी मेडिकल कालेजों में पीजी की सीट बढ़ाने में मेडिकल कौसिंल आफ इंडिया सबसे बड़ी बाधा साबित हो रहा था। ध्यान देने की बात है कि बुधवार को ही कैबिनेट ने राष्ट्रीय मेडिकल आयोग के संशोधित विधेयक को हरी झंडी दे दी है और इसे संसद के मानसून सत्र में पास कराने की कोशिश होगी। एनएमसी के गठन के बाद एमसीआइ का वजूद खत्म हो जाएगा।
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि देश में डाक्टरों की कमी को दूर करने के लिए कई उपाय किये गए हैं। विशेषज्ञ डाक्टरों की संख्या बढ़ाने के लिए मेडिकल के पीजी कोर्स में कई नियमों में ढील दी गई। इसके तहत पहले मेडिकल पीजी में छात्रों और प्रोफेसर के अनुपात को बदल दिया गया। पहले एक असिस्टेंट प्रोफेसर के तहत एक छात्र और एक प्रोफेसर के तहत दो छात्र पीजी कर सकते थे। लेकिन अब यह इसमें ढील कर एक असिस्टेंट प्रोफेसर के मातहत दो और प्रोफेसर के मातहत तीन छात्रों को पीजी करने की छूट दे दी गई। सरकारी मेडिकल कालेजों में इसे लागू किया जा चुका है। जिससे इनमें हजारों छात्रों को पीजी करने का मौका मिल गया।
स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार एमसीआइ निजी मेडिकल कालेजों में इसे लागू करने के लिए तैयार नहीं है और इसके लिए गुणवत्ता में कमी आने को वजह बता रहा है। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जब एमसीआइ की देखरेख में मेडिकल कालेज किसी छात्र को एमबीबीएस की डिग्री देती है और बाद में वही एमसीआइ उसे प्रैक्टिस करने की छूट देता है, तो उन्हीं डाक्टरों को पीजी में पढ़ने की छूट क्यों नहीं दी जा सकती है।
यही नहीं, लिखित परीक्षा में एमसीआइ की ओर से पीजी के छात्रों के कम चयन करने की वजह से हर साल पीजी की हजारों सीटें खाली रह जाती है। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि देश में कुल 38 हजार मेडिकल पीजी की सीटों के लिए एमसीआइ केवल 62 हजार उत्तीर्ण छात्रों की सूची भेजता है। साक्षात्कार के बाद इनमें से सारी सीटें नहीं भरी जा सकती हैं। एमसीआइ को कई बार बताया जा चुका है कि परीक्षा में उत्तीर्ण छात्रों की संख्या खाली सीटों की तुलना में तीन गुना होनी चाहिए। डेंटल कौंसिल आफ इंडिया इसे मान चुका है। लेकिन एमसीआइ इसके लिए तैयार नहीं है।