सरकार के नीतिगत फैसलों की वजह से अर्थव्यवस्था ने पकड़ी रफ्तार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में एनडीए सरकार के चार वर्ष पूरे होने पर इस बात को लेकर बहस-मुबाहिसों का दौर जारी है कि इस सरकार ने देश के आम आदमी के लिए ‘अच्छे दिन’ लाने की दिशा में कितनी प्रगति की है।
[सुषमा रामचंद्रन]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में एनडीए सरकार के चार साल पूरे होने पर इस बात को लेकर बहस-मुबाहिसों का दौर जारी है कि इस सरकार ने देश के आम आदमी के लिए ‘अच्छे दिन’ लाने की दिशा में कितनी प्रगति की है। इसी तारतम्य में पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के कार्यकाल से भी तुलनाएं की जा रही हैं। हालांकि ऐसी तुलनाएं हमेशा अप्रिय होती हैं, चूंकि विभिन्न दौर में परिस्थितियां (खासकर बाहरी) हमेशा अलग होती हैं, जिन्हें नियंत्रित करना किसी भी सरकार के लिए बेहद मुश्किल होता है। फिर भी यह तो किया ही जा सकता है कि नीतियों की एक खास दिशा तय की जाए और इसमें नीयत की भूमिका भी उतनी ही अहम हो जाती है। जहां तक यूपीए सरकार की बात है तो इसके कार्यकाल में आखिरी कुछ वर्षो में आर्थिक मोर्चे पर इसकी सबसे बड़ी समस्या फैसले लेने में जड़ता की स्थिति थी, जो कि सिलसिलेवार घोटालों के सामने आने के बाद इसके भीतर घर कर गई थी। इन घोटालों में 2जी स्पेक्ट्रम व कोल ब्लॉक आवंटन जैसे घोटाले भी शामिल थे।
इसके अलावा तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की अत्यधिक उच्च कीमतों से भी जूझना पड़ रहा था, जो एक समय 140 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं। फिर भी मनमोहन सरकार 7.7 फीसद की औसत विकास दर हासिल करने में सफल रही। हालांकि 2013-14 में विकास दर 6.6 फीसद रही, जब मनमोहन सरकार का कार्यकाल खत्म हो रहा था। इसके उलट मोदी सरकार इस मायने में खुशकिस्मत रही कि इसके सत्ता संभालने के एक साल के भीतर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें 50 डॉलर प्रति बैरल तक गिर गईं। इससे न सिर्फ तेल का आयात बिल कम हो गया, बल्कि सरकार को चालू खाता घाटे को नियंत्रित करने में भी मदद मिली और जिसने उसे उत्पाद शुल्क में तीव्र बढ़ोतरी के लिए भी प्रोत्साहित किया। इससे राजस्व आय में अप्रत्याशित इजाफा हुआ और राजकोषीय घाटे को नियंत्रित रखने में मदद मिली। गौरतलब है कि यूपीए सरकार के कार्यकाल के अंत में राजकोषीय घाटा 4.5 फीसद था, जिसे पिछले वित्त वर्ष तक 3.5 फीसद तक ले आया गया। ऐसा कुछ हद तक बाहरी माहौल के बेहतर होने से तो कुछ अपने संसाधनों के कुशल प्रबंधन की वजह से संभव हो सका।
गौरतलब है कि जहां पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के दौरान नीति-निर्माण में जड़ता की स्थिति थी, वहीं मोदी की अगुआई वाली मौजूदा एनडीए सरकार ने बीते चार साल में ऐसे कई बड़े नीतिगत कदम उठाए, जिनका देश की अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर पड़ा। हालांकि यह असर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का रहा। मोदी सरकार द्वारा अपने अब तक के कार्यकाल में उठाए गए दो सबसे बड़े कदम रहे-नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करना। वर्ष 2016 में नोटबंदी की घोषणा के चलते न सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार कई महीनों तक सुस्त रही, बल्कि इसकी वजह से आम आदमी को अनेक तरह की दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा। इसके बाद वर्ष 2017 के मध्य से जीएसटी को लागू कर दिया गया, जिसके चलते छोटे कारोबारियों के लिए मुश्किलें पैदा हो गईं। नोटबंदी और इस नई परोक्ष कर व्यवस्था के लागू होने के दोहरे असर के चलते अर्थव्यवस्था की रफ्तार कम होना लाजिमी था।
वह तो अच्छा हुआ कि जीएसटी काउंसिल ने धीरे-धीरे इस नई कर व्यवस्था की जटिलताएं कम कीं और इसमें नौकरशाही का दखल भी घटाया। इससे लघु व मध्यम उद्योग को कई समस्याओं से राहत मिली, लेकिन इस नई व्यवस्था में अब भी काफी लालफीताशाही बरकरार है, जिसे दूर करने की जरूरत है। मोदी सरकार द्वारा बीते चार साल के दौरान कई और भी महत्वपूर्ण नीतिगत फैसले लिए गए, जिनके प्रभाव दूरगामी हैं। ऐसा ही एक फैसला है, नए रीयल एस्टेट (विनियमन व विकास) अधिनियम की राह प्रशस्त करना। यह कानून अपना घर खरीदने की चाह रखने वाले आम लोगों के लिए बड़ी राहत लेकर आया, जो कि सालों से रीयल एस्टेट डेवलपर्स द्वारा ठगे जाते रहे हैं। इस कानून (जो फिलहाल राज्य सरकारों से अनुमोदन की प्रक्रिया में है) में रीयल एस्टेट सेक्टर को अनुशासित व विनियमित करने के व्यापक उपाय किए गए हैं।
दूसरा बेहद जरूरी और बहु-प्रतीक्षित कानून है-इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड। इसने कंपनियों को दीवालिया घोषित करना आसान बना दिया, जिससे उनकी संपत्तियों को बेचा जा सकता है और यह सुनिश्चित होता है कि उसके कर्जदाताओं को उनका कुछ पैसा तो वापस मिल सके। यह प्रक्रिया सफलतापूर्वक शुरू हो गई है और हाल ही में कुछ बड़ी कारोबारी इकाइयों को इस कानून के तहत बेचा भी गया है, जिससे बैंकों के न चुकाए गए कर्जो की कुछ हद तक भरपाई भी हो सकी। इस सरकार द्वारा शुरू की गई तीसरी व्यापक बदलावकारी योजना है-ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन देने की उज्जवला योजना। यह योजना ग्रामीण महिलाओं के लिए वरदान बनकर आई है, जो रसोई ईंधन के रूप में लकड़ी का इस्तेमाल करती रही हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है।
चौथी प्रमुख नीति जन-धन खातों का शुभारंभ किया जाना है। हालांकि इसकी इस आधार पर आलोचना भी की जा रही है कि सरकारी लक्ष्यों को पाने के लिए बड़ी संख्या में फर्जी खाते खोले जा रहे हैं। ऐसी आलोचनाएं अपनी जगह, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि जन-धन योजना ने व्यापक शहरी व ग्रामीण गरीब वर्ग के वित्तीय समावेशन का दायरा काफी हद तक बढ़ा दिया है। फिलहाल हमारे देश की विकास दर बहुत खराब नहीं है। इस वक्त देश की अर्थव्यवस्था का ग्राफ ऊपर की ओर है। हालांकि आंकड़ों से पूरी कहानी बयां नहीं होती। इसमें कोई शक नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई में एनडीए सरकार इन चार वर्षो में बड़े आर्थिक सुधारों को लागू करने में काफी सक्रिय रही है, जिनके प्रभाव दीर्घकाल में नजर आएंगे। लिहाजा अभी इस सबका स्पष्ट मूल्यांकन करना जल्दबाजी हो सकती है। इसमें कोई शक नहीं कि यह एक ऐसी सरकार है, जिसने साहसिक ढंग से जीएसटी जैसे बड़े आर्थिक सुधारों को लागू किया है, जो आने वाले कुछ वर्षो में देश की अर्थव्यवस्था को आखिरकार तीव्र विकास के पथ पर ले जा सकते हैं।
[लेखक वरिष्ठ आर्थिक विश्लेषक हैं]