नक्सल प्रभावित बस्तर के जंगलों में घनघनाएगी मोबाइल की घंटी
बस्तर संभाग के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित तीन जिलों सुकमा, दंतेवाड़ा और बस्तर में भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) ने कुल 532 टॉवर खड़े किए हैं।
रायपुर [अनिल मिश्रा]। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के धुर नक्सल प्रभावित जिलों में बीएसएनएल के टॉवरों ने सिग्नल देना शुरू कर दिया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, बस्तर संभाग के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित तीन जिलों सुकमा, दंतेवाड़ा और बस्तर में भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) ने कुल 532 टॉवर खड़े किए हैं। इनमें से 521 टॉवरों से मोबाइल सिग्नल मिलने लगा है।
इसका सबसे ज्यादा फायदा घर परिवार से दूर जंगल में रहकर नक्सलियों से मोर्चा लेने वाले अर्धसैनिक बलों के जवानों को मिलेगा। बस्तर के जंगलों में तैनात जवानों को मोबाइल सिग्नल के लिए पेड़ों पर मोबाइल टांगकर घंटों इंतजार करना पड़ता था। फोर्स के कई कैंप ऐसे इलाकों में हैं जहां नेटवर्क नहीं है।
ऐसे इलाकों में जवानों को अपने घर परिवार से बात करने के लिए भी कई-कई दिन इंतजार करना पड़ता था। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित 16 जिलों में 1028 टॉवर लगाने की स्वीकृति दी है। प्रदेश सरकार की स्काई स्मार्ट फोन वितरण योजना में भी करीब ढाई हजार टॉवर लगाने का लक्ष्य है। यह सभी टॉवर खड़े हो जाएंगे तो प्रदेश का हर कोना मोबाइल कवरेज में होगा।
नक्सलियों के निशाने पर रहे हैं मोबाइल टॉवर
बस्तर में मोबाइल टॉवर नक्सलियों के निशाने पर रहे हैं। पिछले साल कांकेर जिले में नक्सलियों ने एक मोबाइल टॉवर के बैटरी हाउस पर हमला किया था। इससे पहले दंतेवाड़ा जिले में भी मोबाइल टॉवर उड़ाने की कुछ घटनाएं हो चुकी हैं। पिछले तीन वर्षों में अकेले बस्तर में करीब 20 मोबाइल टॉवर नक्सली उड़ा चुके हैं। इसी अवधि में देश के अन्य नक्सल प्रभावित राज्यों में मोबाइल टॉवर उड़ाने की करीब 70 घटनाएं हो चुकी हैं। अब टॉवर अर्धसैन्य बलों के कैंप में लगाए जा रहे हैं।
2019 तक खड़े कर दिए जाएंगे तीन जिलों में सभी 180 टॉवर
बस्तर, सुकमा और दंतेवाड़ा जिलों में 2017 में कुल 180 मोबाइल टॉवर थे। नारायणपुर, बीजापुर, कांकेर, कोंडागांव आदि जिलों में भी मोबाइल टॉवर खड़े किए जा रहे हैं। बीएसएनएल के अफसरों के मुताबिक नक्सल इलाकों में 2019 तक सभी टॉवर खड़े करने हैं। जंगल में टॉवर खड़ा करना आसान नहीं है। दुरूह भौगोलिक स्थिति और पहाड़ों तक टॉवर खड़ा करने के लिए सामग्री को पहुंचाना भी एक बड़ी चुनौती है।
पिछले कुछ वर्षों में फोर्स की पहुंच अंदरूनी इलाकों में बढ़ी है। नक्सलियों के कोर इलाकों तक फोर्स के कैंप खुल चुके हैं। अर्धसैनिक बलों की सुरक्षा में बिजली, पानी, सड़क, नेटवर्क आदि विकास के काम किए जा रहे हैं। अबूझमाड़ के जंगलों तक बिजली और मोबाइल नेटवर्क पहुंचाने की तैयारी सरकार कर रही है।