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डच स्वर्ण युग के बहुचर्चित कलाकार रैंब्रांट द्वारा समुद्र के रास्ते लघु चित्रकला का सफर

डच स्वर्ण युग के बहुचर्चित कलाकार रैंब्रांट हारमनजून फान रैन के चित्रों को पूरब और पश्चिम के बीच का कलासेतु माना जाता है और इसकी वजह हैं मुगलकालीन लघु चित्रों से प्रेरित उनकी कृतियां। इनके माध्यम से हमें ऐसे अद्भुत नेटवर्क को समझने में मदद मिलती है... (सौजन्य https//map-academy.io)

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalPublished: Sun, 27 Nov 2022 10:33 AM (IST)Updated: Sun, 27 Nov 2022 10:33 AM (IST)
डच स्वर्ण युग के बहुचर्चित कलाकार रैंब्रांट द्वारा समुद्र के रास्ते लघु चित्रकला का सफर
समुद्र के रास्ते लघु चित्रकला का सफर (सौजन्य https://map-academy.io)

श्रेय मौर्या, मैप अकादमी। वर्ष 1650 में डच स्वर्ण युग के मास्टर कलाकार रैंब्रांट हारमनजून फान रैन ने कुछ चित्रों का सेट तैयार किया था जो कि सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत में बनाए गए मुगलकालीन लघु चित्रों पर आधारित थे। इस सेट में मुगल बादशाह शाहजहां, जहांगीर, दारा शिकोह और अन्य मुगल दरबारियों के चित्र शामिल हैं। गैर-पश्चिमी कलाकृतियों के साथ रैंब्रांट के जुड़ाव को दर्शाने वाला यह सबसे महत्वपूर्ण काम है। साथ ही रैंब्रांट के संपूर्ण काम में दूसरों के बनाए गए चित्रों की अनुकृतियों का यह सबसे बड़ा संकलन है। इस सेट में वर्तमान में कुल 23 चित्र शेष रह गए हैं, जो दुनिया भर के विभिन्न संग्रहालयों में रखे हुए हैं, जिनमें ब्रिटिश म्यूजियम, क्लीवलैंड म्यूजियम आफ आर्ट, जे. पाल गेटी म्यूजियम, रिक्स म्यूजियम और कई निजी संग्रहालय शामिल हैं।

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चित्रों का यह सेट इसलिए उल्लेखनीय है क्योंकि इसके माध्यम से हमें विश्व जगत में फैले अद्भुत नेटवर्क को समझने में मदद मिलती है, जिसे व्यापारिक समुद्री जहाजों द्वारा निर्मित किया गया था और जिसने वैश्विक स्तर पर संस्कृतियों के आदान-प्रदान में अहम भूमिका निभाई। एकत्र किए तमाम नमूने कलाकार और शिक्षक होने के साथ-साथ रैंब्रांट आर्ट कलेक्टर और आर्ट डीलर भी थे। अपने निजी कला कक्ष में उन्होंने दुनियाभर के कई बेहतरीन कलाकारों के काम को इकट्ठा किया था। साथ ही उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप सहित दूरदराज के क्षेत्रों से जानवरों और पौधों के कई नमूने भी इकट्ठे किए थे।

कला क्षेत्र से संबंधित विद्वानों ने यह बहुत समय पहले स्थापित कर दिया था कि रैंब्रांट ने अपने चित्रों के लिए प्रेरणा के रूप में अपने संग्रह की वस्तुओं का इस्तेमाल किया था, लेकिन यह अभी स्पष्ट नहीं है कि उनके संग्रह में मुगलकालीन लघु चित्र शामिल थे या नहीं। जहाजों से बाजारों तक संभवत: रैंब्रांट का इन लघु चित्रों से परिचय एम्स्टर्डम में हुआ, जहां वे रहते थे। वहीं पर उन्हें महंगा जापानी टोरिनोको पेपर भी मिला, जिस पर उनके कामों की चित्रकारी मौजूद है। सत्रहवीं शताब्दी में एम्स्टर्डम बहुत ही सक्रिय बंदरगाह हुआ करता था, जहां दुनियाभर से जहाज आते थे। ये जहाज अपने साथ तरह-तरह की वस्तुएं और कलाकृतियां एम्स्टर्डम के बाजारों में बेचने के लिए लाते थे। शायद वास्तविक मुगलकालीन लघु चित्र एम्स्टर्डम तक भारत में बनाई गई डच व्यापारिक चौकी से आए होंगे।

यह भी संभव है कि रैंब्रांट ने उन चित्रों को अमीर व्यापारियों या डच ईस्ट इंडिया कंपनी के विभिन्न अधिकारियों के संग्रह में देखा हो, जो उनके दोस्त और अक्सर ग्राहक भी हुआ करते थे। भारतीय चित्रों से समानता काली स्याही से बनाए गए रैंब्रांट के चित्रों में रेखाओं का उतना ही ध्यान और संयम के साथ इस्तेमाल किया गया है जितना भारतीय मूल के चित्रों में पाया जाता है। इसके साथ-साथ ही गहनों, वेशभूषाओं और चित्र की मुद्राओं में सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारी का सटीक अनुकरण किया गया है। कुछ कामों में उन्होंने मूल चित्रों के रंगीन बैकग्राउंड की नकल करने के लिए इंक वाश का इस्तेमाल किया है।

कुछेक चिन्हित चित्रों में सम्राट के प्रभामंडल को दर्शाया गया है, जो कि मुगल कलाकारों द्वारा नियोजित प्रभामंडलों की हूबहू नकल है। चित्रों की बारीकी से तुलना करने पर पता चलता है कि रैंब्रांट ने मूल चित्रों की संरचना की बिल्कुल सटीक कापी की है, साथ ही अपने संस्करणों में छायांकन और परिप्रेक्ष्य के तत्वों को भी भलीभांति जगह दी है। विचारों का अद्भुत प्रवाह आज ये चित्र एशिया के साथ डच ईस्ट इंडिया कंपनी के समुद्री व्यापार द्वारा मजबूत किए गए सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अनुस्मारक हैं।

मजे की बात यह है कि रैंब्रांट के चित्र हमारे सामने एक अनूठा परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि कैसे पूर्व और पश्चिम के बीच विचारों का प्रवाह हुआ करता था। यह सर्वविदित है कि मुगल कलाकारों ने यूरोपीय प्रिंट और कलाकृतियों से प्रेरणा ली, जो उपमहाद्वीप के तटों पर आने वाले व्यापारियों और अधिकारियों द्वारा इस क्षेत्र में लाए गए थे, लेकिन एक विपुल डच मास्टर कलाकार द्वारा तैयार किए गए रेखाचित्रों के संकलन से हमें यह भी पता चलता है कि मुगलकालीन चित्र शैली का प्रभाव केवल क्षेत्र विशेष तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उपमहाद्वीप से बहुत आगे तक फैला हुआ था।

(सौजन्य https://map-academy.io)


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