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शहरों से निराश लौटे, गांव में तलाशा नया रोजगार; अब अपनी ही माटी से आत्मनिर्भर बनने का फैसला

Migrant Labourers मध्यप्रदेश के विदिशा से करीब 20 किलोमीटर दूर नेशनल हाईवे 146 के किनारे रामपुर चक्कपाटनी के ग्रामीण लॉकडाउन के बीच शहरों से लौट आए हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 01 Jun 2020 09:48 AM (IST)Updated: Mon, 01 Jun 2020 09:48 AM (IST)
शहरों से निराश लौटे, गांव में तलाशा नया रोजगार; अब अपनी ही माटी से आत्मनिर्भर बनने का फैसला
शहरों से निराश लौटे, गांव में तलाशा नया रोजगार; अब अपनी ही माटी से आत्मनिर्भर बनने का फैसला

अजय जैन, विदिशा। Migrant Labourers कोरोना संकट ने बहुत सारे लोगों की धारणा बदल दी है। शहर की अनजानी दुनिया की जगह अपनी मिट्टी से लगाव बढ़ा है और उसी में भविष्य दिख रहा है। आखिर हो भी क्यों न, आय के साधन की तलाश में कल गांव से पलायन कर जिस शहर गए थे, वहां भूखे मरने की नौबत आ गई। सहारा बना वही गांव, जहां आते ही आंखों में जीवन की चमक लौट आई है।

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मध्यप्रदेश के विदिशा से करीब 20 किलोमीटर दूर नेशनल हाईवे 146 के किनारे रामपुर चक्कपाटनी के ग्रामीण लॉकडाउन के बीच शहरों से लौट आए हैं। करीब 100 घरों की बस्ती में पत्थर की खदानें शुरू होने से परंपरागत जलस्नोत सूख गए थे। इसका सीधा असर खेती पर पड़ा और छोटे किसानों व मजदूरों को जीविका चलाने के लिए बड़े शहरों का रुख करना पड़ा। अब लॉकडाउन के कारण लोग परिवार सहित गांव लौटे हैं। इस विपदा में सब साथ खड़े हैं। ठान लिया है कि खुद के साथ गांव की भी तकदीर और तस्वीर बदल देंगे। उन्नत खेती और रोजगार के अन्य साधनों से इसे संभव करेंगे।

सिंघाड़ा व फूलों की खेती करेंगे : सिंचाई के साधन खत्म होने पर करीब 35 बीघा जमीन के मालिक राजेश पाठक परिवार की आजीविका चलाने कई साल पहले गांव छोड़कर विदिशा आए थे। उनका बड़ा बेटा तरुण शास्त्रों की शिक्षा लेकर र्धािमक कर्मकांड करने लगा। छोटे बेटे ने पढ़ाई के साथ ही दूसरे शहर में निजी कंपनी में नौकरी शुरू कर दी। सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन अचानक कोरोना संकट ने सब कुछ बदल दिया। लॉकडाउन लागू हुआ तो भविष्य को लेकर आशंकित राजेश दोनों बेटों के साथ गांव लौट आए हैं। अब गांव में ही खेती करेंगे।

सिंचाई की बड़ी समस्या थी तो एक बड़े तालाब का निर्माण करा लिया है, जिसमें बारिश के पानी का संचय कर बाप-बेटे सिंघाड़ा व कमल के फूल की खेती करेंगे। बची जमीन पर सब्जी की जैविक खेती की तैयारी है। राजेश के बेटे तरुण का कहना है कि कोरोना के कारण सबकुछ बदल गया है। साल-दो साल तक र्धािमक आयोजन और कर्मकांड मुश्किल है, इसलिए अब गांव में ही खेती करेंगे।

फूलों की खेती से गांव को महकाएंगे : इसी गांव के रामू कुशवाह अब तक निजी फैक्ट्री में दिहाड़ी मजदूर थे। लॉकडाउन में गांव लौट आए हैं। रामू कहते हैं अब कभी वापस शहर नहीं जाऊंगा। गांव में 8 बीघा जमीन पर सब्जी और फूलों की खेती करूंगा। गांव के ही शैलेन्द्र कुशवाह ने दूसरे लोगों को देख कर अपने खेत में तालाब खुदवा लिया है, वे भी गांव में ही उन्नत खेती करेंगे।

पशुपालन और औषधि खेती करेंगे पिता-पुत्र : ग्राम सोजना के कुलदीप रघुवंशी अब तक विदिशा में दुकान चलाते थे। लॉकडाउन के बीच वे भी गांव लौट आए हैं। कुलदीप अपने पिता महेन्द्र सिंह के साथ पशुपालन और औषधि खेती करेंगे। जल्द ही खेत में मोरिंगा (सहजन) लगाएंगे। काकरखेड़ी के नथन सिंह ने लॉकडाउन में गोबर की खाद से पहली बार सब्जी लगाई है। अब वह व्यावसायिक रूप से सब्जी की जैविक खेती करेंगे।


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