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रेलवे बोर्ड कुलियों पर मेहरबान, कंधे से खत्म होगा सामान का बोझ, स्टेशनों पर बनेंगे 'पाथवे'

सहायकों के लिए स्टेशनों पर रेस्टरूम बनाए जाएंगे जिनमें टीवी आरओ का पानी व बैरक बेड्स की व्यवस्था होगी।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Thu, 07 Mar 2019 08:11 PM (IST)Updated: Thu, 07 Mar 2019 08:11 PM (IST)
रेलवे बोर्ड कुलियों पर मेहरबान, कंधे से खत्म होगा सामान का बोझ, स्टेशनों पर बनेंगे 'पाथवे'
रेलवे बोर्ड कुलियों पर मेहरबान, कंधे से खत्म होगा सामान का बोझ, स्टेशनों पर बनेंगे 'पाथवे'

नई दिल्ली, प्रेट्र। लंबे अरसे बाद रेलवे बोर्ड ने स्टेशनों पर यात्रियों के मददगार कुलियों (सहायक) के हित में कई अहम फैसले किए हैं। सबसे अहम फैसला है कि अब सभी स्टेशनों पर 'पाथवे' बनाए जाएंगे, ताकि उन्हें यात्रियों के सामान कंधे पर न ढोना पड़े। 'पाथवे' पर वे ट्रालियों का उपयोग सुगमता से कर सकते हैं।

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फिलहाल स्टेशनों पर सहायकों को ट्रॉली और हाथ से खींचने वाले ठेलों के इस्तेमाल का विकल्प दिया गया है। लेकिन, व्यस्त समय में स्टेशनों पर ट्रॉली और ठेलों के कारण आवाजाही में परेशानी हो जाती है। इसके मद्देनजर ही 'पाथवे' का निर्माण किया जा रहा है, ताकि यात्रियों और सहायकों का आवागमन सुगम हो सके।

दरअसल, 'पाथवे' सिर्फ यातायात को सुगम बनाने के लिए नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य असंगठित क्षेत्र के लिए सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा देना भी है।

बोर्ड ने सहायकों के बच्चों की पढ़ाई की सुविधा को भी हरी झंडी दिखाई है। इसके तहत जिस रेल डिवीजन में सहायक काम करते हैं, उसके किसी भी स्टेशन पर रेलवेमेंस आर्गनाइजेशन या महिला समिति द्वारा संचालित स्कूलों में उनके बच्चे पढ़ाई कर सकेंगे।

सहायकों के लिए स्टेशनों पर रेस्टरूम बनाए जाएंगे, जिनमें टीवी, आरओ का पानी व बैरक बेड्स की व्यवस्था होगी। ये सुविधाएं उन स्टेशनों पर मिलेंगी, जहां 50 से ज्यादा सहायक काम करते हैं।

वर्दी की संख्या और पास की समय सीमा भी बढ़ाई

बोर्ड ने सहायकों को मिलने वाली वर्दी की संख्या में भी इजाफा किया है। उन्हें बतौर वर्दी दो साल में एक बार दो लाल शर्ट व एक ऊनी शर्ट दी जाती थीं। अब उन्हें हर साल तीन लाल शर्ट व एक ऊनी शर्ट दी जाएंगी। इसके अलावा उन्हें मिलने वाले सौजन्य पास की वैधता मौजूदा दो माह की बजाय रेलकर्मियों की तरह पांच माह होगी।

कुली नहीं, 'सहायक' कहिए जनाब!

वर्ष 2016 में तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कुलियों को 'सहायक' का नया नाम दिया था। उनका मानना था कि कुली शब्द उपनिवेशवाद का प्रतीक है। हालांकि, अब भी ज्यादातर लोग उन्हें कुली ही बुलाते हैं। 


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