एससी एसटी आरक्षण के आड़े आ रहा मेडिकल कौंसिल आफ इंडिया
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस मामले में एमसीआइ के साथ कई दौर की बातचीत हो चुकी है। लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। केंद्र सरकार भले ही दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के उत्थान को अपनी सरकार की पहली प्राथमिकता में गिनाते हों, लेकिन स्वायत्त संस्था मेडिकल कौंसिल आफ इंडिया (एमसीआइ) निजी मेडिकल कॉलेजों में एससी, एसटी और पिछड़े छात्रों को मिल रहे आरक्षण को खत्म करने पर अड़ा हुआ है। यहां तक कि एमसीआइ ने स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से मेडिकल कालेजों में नामांकन के लिए सरकार की ओर प्रस्तावित सुधारों को अधिसूचित करने से इनकार कर दिया है।
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में मेडिकल शिक्षा को सुचारू बनाने के लिए कई संशोधनों का प्रस्ताव किया था। लेकिन एमसीआइ ने इन सुधारों के साथ-साथ अभी तक चले आ रहे निजी मेडिकल कालेजों में राज्य सरकारों के लिए निर्धारित 50 फीसदी कोटे को समाप्त करने की शर्त जोड़ दी। गौरतलब है कि निजी मेडिकल कालेजों में मिलने वाली सीटों में से राज्य सरकारें एससी, एसटी और पिछड़ी जाति के छात्रों को आरक्षण भी देती हैं। जबकि निजी मेडिकल कालेजों के सामान्य 50 फीसदी सीटों पर आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाता है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने एमसीआइ को साफ कर दिया कि राज्यों की 50 फीसदी सीटें खत्म होने के बाद उनमें मिलने वाले आरक्षण के लाभ से एससी, एसटी और पिछड़े वर्ग के छात्र वंचित रह जाएंगे।
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस मामले में एमसीआइ के साथ कई दौर की बातचीत हो चुकी है। लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है। उनके अनुसार पहले तो एमसीआइ ने इस मुद्दे को विभिन्न बहाने से टालने की कोशिश की। शुरू में एमसीआइ ने अदालत के फैसले का हवाला देकर राज्यों के 50 फीसदी कोटे को खत्म करने की मांग की। लेकिन जब अदालती आदेश की जांच की गई, तो पता चला कि वह एक-दो कालेजों से संबंधित था, न की सभी मेडिकल कालेजों से जुड़ा था। एमसीआइ ने साफ कर दिया कि निजी कालेजों में राज्यों के 50 फीसदी कोटे के प्रावधान के हटाए बिना वह मेडिकल शिक्षा में अन्य संशोधनों को अधिसूचित नहीं करेगा। जाहिर है एमसीआइ के अडि़यल रवैये के कारण मेडिकल शिक्षा में सुधार की कोशिशें धराशायी हो गई हैं।