हेल्थ: जानिए 10 शहरों के इन रियल हीरो और उनके अनुकरणीय कार्यों को
इन शहरों के कुछ चर्चित तो कुछ अनाम हीरो खुद के बलबूते ही शहर-समाज को सुधारने की कवायद कर रहे हैं। इनके छोटे-छोटे प्रयासों से शहर में बेहतरी भी दिखाई दे रही है।
शहरों को बेहतर बनाने के आपके साथ शुरू की गई 'माय सिटी माय प्राइड' पहल के सकारात्मक असर दिखने लगे हैं। पहली जुलाई से शुरू हुए इस अभियान में हेल्थ, एजुकेशन, इंफ्रास्ट्रक्चर, इकॉनमी और सेफ्टी के क्षेत्र में अनेक समस्याओं को पहचाना गया, लेकिन निजी स्तर पर किए जा रहे कुछ बहुत अच्छे काम भी सामने आए। इन शहरों के कुछ चर्चित तो कुछ अनाम हीरो खुद के बलबूते ही शहर-समाज को सुधारने की कवायद कर रहे हैं। इनके छोटे-छोटे प्रयासों से शहर में बेहतरी भी दिखाई दे रही है।
चिकित्सा के क्षेत्र में चल रहे ऐसे ही कुछ अनुकरणीय प्रयासों का यहां पर उल्लेख किया जा रहा है। इंदौर शहर केंद्र सरकार विभिन्न रेटिंग में शीर्ष के शहरों में बना रहता है। यहां के डॉक्टर अनिल भंडारी और उनके सहयोगियों की सेवाभावी पहल उल्लेखनीय है। उनका एक मोबाइल अस्पताल है। यह अस्पताल रोजाना 5 गांवों में जाता है, इसमें डॉक्टर और दवाइयां उपलब्ध रहती हैं। प्राकृतिक आपदाओं के वक्त भी संस्था ने अपनी सेवाएं देकर अमिट छाप छोड़ी है। इसके साथ ही उनकी संस्था पिछले 19 सालों से निशुल्क प्लास्टिक सर्जरी शिविर का आयोजन भी कर रही है।
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इसी शहर के डॉ. दिगपाल धारकर कैंसर से लड़ाई में मरीजों की मदद कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने कैंसर के इलाज की एक 'रजिस्ट्री' बनाई है। इसमें किस तरह कैंसर के लिए, किस स्टेज पर बेहतर इलाज कराए जाने पर कितना खर्च आएगा, इसकी एक-एक रुपए की जानकारी है। इंदौर शहर के ही व्यवसायी संदीपन आर्य और जीतू बागानी का मेडिकल क्षेत्र से दूर-दूर तक नाता नहीं है लेकिन वे अंगदान अभियान में जुटे हैं। ब्रेन डेड घोषित हो चुके मरीज के परिजन से मिलकर वे उन्हें अंगदान के लिए प्रेरित करते हैं।
धर्म से कैसे असहाय और गरीब लोगों का भला किया जाता है, ये तो पटना के महावीर मंदिर से सीखा जा सकता है। पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल अब धर्म के रंग में पूरी तरह रम गए हैं। उन्होंने महावीर मंदिर में मिलने वाले दान से कई अस्पताल बनवाए हैं। इन अस्पतालों में गरीबों का निशुल्क इलाज होता है। एक और अनुकरणीय उदाहरण है इसी शहर के निवासी मुकेश हिसारिया का। वे सोशल साइट की मदद से जरूरतमंद लोगों को आपातकालीन स्थिति में ग्रुप के अनुसार खून उपलब्ध कराते हैं। अभी तक वह 13 हजार लोगों की मदद कर चुके हैं। अगर ऐसी ही पहल अन्य शहर भी कर लें तो किसी की भी मौत खून की कमी से नहीं होगी।
दिल्ली से सटे मेरठ में भी एक से एक काम चिकित्सा के क्षेत्र में हो रहे हैं। यहां के डॉक्टर राजीव अग्रवाल पिछले 16 सालों में 450 लोगों को निशुल्क पेसमेकर लगा चुके हैं। इसी शहर में रहने वाले डॉक्टर संदीप मित्तल कॉर्निया बैंक की स्थापना करके नेत्रदान अभियान चला रहे हैं। वहीं डॉ. रवि बख्शी अब तक दस हजार से ज्यादा लोगों का मोतियाबिंद का ऑपरेशन कर चुके हैं, या उसमें सहयोगी रहे हैं।
लुधियाना के समाजसेवी राकेश जैन पोलियो से ग्रस्त लोगों के लिए काम कर रहे हैं। वे अनेक लोगों की सर्जरी भी करवा चुके हैं। वह पोलियो पीड़ितों के लिए स्पेशल सेंटर्स की पहल कर रहे हैं। इसी शहर के डॉक्टर रमेश चंद्र पूरी सक्रियता से लोगों को नेत्रदान के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। उनके इस प्रयास से अनेक लोगों की जिंदगी में रोशनी आई है।
वाराणसी में रक्तदान के लिए प्रदीप इसरानी सपरिवार समर्पित हैं। वह अब तक 108 बार खुद भी रक्तदान कर चुके हैं। उन्हें लगता है कि अगर इसके लिए समूह बना लिया जाए तो यह काम और बेहतर ढंग से किया जा सकता है। इलाज में सबसे बड़ा खर्च दवाइयों पर होता है। इसको ध्यान में रखते हुए बीएचयू के छात्र कामेश्वसर मिश्रा ने मेडीबॉक्स नाम की पहल की। जिन मरीजों की दवाई इलाज के बाद बच जाती है, वह उसे सुंदरलाल अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में जमा करवा देते हैं। जमा की गई दवा की रसीद भी देते हैं। इससे जरूरतमंद लोगों की काफी मदद हो जाती है।
कानपुर के पनकी हनुमान मंदिर में निशुल्क नेत्र एवं स्वास्थ्य चिकित्सालय संचालित हो रहा है। महंत जितेंद्र दास महाराज स्वास्थ्य क्षेत्र में योगदान को सबसे आवश्यक काम मानते हैं। उनके अनुसार मंदिरों को इलाज के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। देश में कुपोषण एक बड़ी समस्या है। कानपुर के डॉक्टर यशवंत राव ने कुपोषित बच्चों के लिए अभियान शुरू किया है, वह अपने हाथों से अमृत नाम का पौष्टिक आहार बांटते हैं। इसी शहर के मनोज सेंगर लोगों को देहदान के लिए जागरूक कर रहे हैं और अब तक 193 लोगों को देहदान करवा चुके हैं।
रायपुर के होम्योपैथिक डॉक्टर सुरेश श्रीवास्तव के क्लीनिक में इलाज के बाद मरीज दवाई वापस कर देते हैं ताकि वह किसी जरूरतमंद के काम आ सके। वहीं अस्पतालों की गंदगी से निपटने का एक अच्छा तरीका रायपुर ही में देखने को मिला है। यहाँ डॉक्टर विवेक चौधरी ने डॉ. भीमराव आंबेडकर अस्पताल में गंदगी करने वालों के लिए शर्म की दीवार बनाई है । इसमें जो लोग भी गंदगी करते हैं यहाँ उनकी तस्वीर चस्पा की जाती है।
तो आइए, आप भी ऐसी कोई पहल शुरू करें या ऐसी पहल से जुड़ें। ऐसी समाजसेवा कर रहे किसी किसी रियल हीरो को अगर आप जानते हैं तो हमें भी बताएं।
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