शहर की प्रगति उसके संसाधन से ही हो
रोजगार के अवसर जिस तरह एक ही ओर शिफ्ट हो रहें हैं,उसके लिए राज्य सरकारों को सोचना चाहिए।
प्रो आलोक कुमार राय
(बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय )
मुझे लगता है किसी भी शहर की अपनी एक स्थानीय पहचान होती है, अगर उस पर फोकस किया जाये तो रोजगार के मौके वहीं पैदा हो सकते हैं। किसी भी शख्स को बाहर जाने की जरूरत न पड़े , लेकिन दिक्कत यह है कि एक शहर दूसरे शहर से प्रतिस्पर्धा करता हुआ दिख रहा है। मसलन बेंगलुरू अगर आईटी सिटी के रूप में प्रगति कर रहा है तो जरूरी नहीं कि बनारस भी वैसा हो।
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बनारस की अपनी पहचान पर्यटन, शास्त्रीय संगीत, होटल इंडस्ट्री है। नीति निर्धारकों को इस पर ही फोकस करना चाहिए। शहर की मूलभूत पहचान को समझे। ताकि उस शहर की प्रगति उसके संसाधन से ही हो सके। किसी भी शहर के विकसित होने की बात होती हैं तो इससे पहला सवाल आता है कि क्या वह शहरवासियों की जरूरत पूरा कर पा रहा है ?
वहीं दूसरा सवाल होता है क्या वह शहर में प्रगति के मानक पूरे कर रहा है। किसी भी शहर को उसकी अर्थव्यसवस्था बेहतर करनी है तो उसे अपने स्थानीय संसाधनों की पहचान करनी होगी। बनारस में मंदिर, धर्म, पर्यटन संगीत, नृत्य, योग अर्थव्यवस्था का अहम केंद्र है। इन सभी के लिए कोई फैक्ट्री लगाने की जरूरत नहीं है। इसके बाद यह पहचानने की जरूरत है कि इन संसाधनो के लिए सपोर्ट सिस्टम कैसा है ?
यानि शहर की दूसरी जगहों से कनेक्टिीविटी कैसी है। रेल, रोड की स्थिति और एयरपोर्ट कैसे हैं। कोई आएगा तो रहेगा कहां, यानि मैचिंग सपोर्ट सिस्टम कैसा है ? होटल है या नहीं। इस बारे में सोचा जा रहा है या नहीं। हर साल यहां साढ़े तीन लाख से 4 लाख लोग पर्यटन के लिए आते हैं।
सबसे खास चीज जो किसी भी शहर की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाती है वह है - इंटैल्चुअल सपोर्ट सिस्टम । इसके दो भाग हैं- पहला है पॉलिसी, जिसे शासन को देखना है। यह सीधे तौर पर सरकार से जुड़ी है। दूसरे हैं इससे जुड़े लोग। पॉलिसी वाकई लागू हो रही है या नहीं, इसके लिए निगरानी सिस्टम।
देश के कई शहर ऐसे हैं जहां संसाधनों में कोई कमी नहीं है। लेकिन उसे यदि इंटैल्चुअल सपोर्ट सिस्टम नहीं मिलेगा तो वह तरक्की नहीं कर पाएगा। शहर की आर्थिक प्रगति के लिए लोगों का जुड़ाव होना भी जरूरी है। वहीं रोजगार के अवसर जिस तरह एक ही ओर शिफ्ट हो रहें हैं,उसके लिए राज्य सरकारों को सोचना चाहिए।
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