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Kargil Vijay Diwas: शहीद का बेटा बना लेफ्टिनेंट तो गर्व से भर उठी मां, पूरा हुआ सपना

विषम हालात के बावजूद मां ने धैर्य खोने के बजाय बेटों को भी वतन की हिफाजत में लगाने की ठान ली। मेहनत रंग लाई और ख्वाब आकार लेने लगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 23 Jul 2019 10:46 AM (IST)Updated: Tue, 23 Jul 2019 10:46 AM (IST)
Kargil Vijay Diwas: शहीद का बेटा बना लेफ्टिनेंट तो गर्व से भर उठी मां, पूरा हुआ सपना
Kargil Vijay Diwas: शहीद का बेटा बना लेफ्टिनेंट तो गर्व से भर उठी मां, पूरा हुआ सपना

कपिल कुमार, मुजफ्फरनगर। कारगिल युद्ध के दौरान छह वर्ष की उम्र में जुड़वां बेटों के सिर से पिता का साया उठ गया। इन मासूमों के लिए भला इससे दुखद घड़ी क्या होगी। शहादत पर सबको गर्व था, लेकिन वेदना विकट। विषम हालात के बावजूद मां ने धैर्य खोने के बजाय बेटों को भी वतन की हिफाजत में लगाने की ठान ली। मेहनत रंग लाई और ख्वाब आकार लेने लगा। एक बेटा सेना में लेफ्टिनेंट बना तो मानो मां का जीवन सफल हो गया। बेटा पिता की ही रेजीमेंट में देशसेवा में जुटा है तो दूसरा बेटा भी वर्दी पहनकर इस रवायत को आगे बढ़ाने की राह पर है।

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ये जुड़वां बेटे हैं लांस नायक शहीद बचन सिंह के। मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश के गांव पचेंडा कलां निवासी बचन सिंह ऑपरेशन विजय के दौरान तोलोलिंग चोटी पर दुश्मन को खदेड़ते हुए शहीद हो गए थे। उनके जुड़वां बेटे हेमंत और हितेश की उम्र तब महज छह वर्ष थी। पत्नी कामेश बाला पर दुखों का पहाड़ टूटा, लेकिन उन्होंने धैर्य नहीं खोया। पति को खोने के जख्म ताजा थे, लेकिन इसके बावजूद बेटों को भी देशसेवा की खातिर फौज में भर्ती कराने का संकल्प ले लिया। कलेजे के टुकड़ों को खुद से दूर किया और हिमाचल प्रदेश के चहल सैन्य स्कूल में पढ़ाया। श्रीराम कॉलेज, दिल्ली से स्नातक करने के बाद अक्टूबर 2016 में हितेश का चयन भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट पद पर हो गया। देहरादून सैन्य अकादमी में ट्रेनिंग के बाद जून 2018 को पासिंग आउट परेड हुई। इन दिनों हितेश कुमार की तैनाती 2 राजपूताना रायफल्स बटालियन जयपुर (राजस्थान) में है। दूसरा बेटा हेमंत भी फौज में अफसर बनने की तैयारी कर रहा है। हितेश और हेमंत के मामा ऋषिपाल फौजी बताते हैं कि बहन कामेश के दिल में दुखों के अंबार है, लेकिन बेटे के सैन्य अफसर बनने से वह खुश भी हैं।

लांस नायक शहीद बचन सिंह

पूरा हुआ मां का ख्वाब : पति की शहादत के बाद छोटे बच्चों की परवरिश के साथ-साथ कामेश बाला के सामने कई अन्य चुनौतियां भी थीं। कामेश ने खुद को बिखरने से रोका और साहस बटोरकर बच्चों पर ध्यान केंद्रित किया। कामेश ने ठान लिया था कि दोनों बेटों को भी देशसेवा में अर्पित करेंगी। कामेश कहती हैं कि जिस दिन बेटे का सैन्य अफसर के रूप में चयन हुआ, वह पल उनकी जिंदगी के लिए बहुत खास था। ऐसा लगा मानो जीवन सफल हो गया। हितेश कहते हैं कि सैनिक बनकर उन्होंने पिता को श्रद्धांजलि अर्पित की है और पिता की तरह ही वे भी मातृभूमि के चरणों में सर्वस्व अर्पित करने में कभी पीछे नहीं हटेंगे।


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