विवाहेतर संबंध में महिला को भी दंडित करने पर हो रहा विचार
केंद्र सरकार ने याचिका में धारा 497 को स्त्री-पुरुष में भेदभाव करने वाला बताते हुए निरस्त करने की मांग की गई है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने विवाहेतर संबंध बनाने पर सिर्फ पुरुष के लिए सजा का प्रावधान करने वाली आइपीसी की धारा 497 (व्याभिचार यानी एडल्टरी) को रद करने की मांग का सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया है। सरकार ने कहा है कि इससे विवाह संस्था को नुकसान पहुंचेगा। हालांकि यह भी कहा है कि स्त्री-पुरुष में भेदभाव करने वाली इस धारा में समानता लाने के मुद्दे पर विचार हो रहा है। विधि आयोग इस पर विचार कर रहा है और वह जल्दी ही अपनी रिपोर्ट देगा।
केंद्र सरकार ने यह बात धारा 497 को चुनौती देने वाली याचिका का विरोध करते हुए बुधवार को दायर अपने हलफनामे में कही है। जोसेफ शाइने की याचिका में धारा 497 को स्त्री-पुरुष में भेदभाव करने वाला बताते हुए निरस्त करने की मांग की गई है। इस धारा में विवाहेतर संबंध बनाने पर महिला को अपराधी मानने से छूट देती है। इसके साथ ही सीआरपीसी की धारा 198(2) की वैधानिकता को भी चुनौती दी गई है। गत पांच जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर केंद्र से जवाब मांगते हुए विचार के लिए संविधान पीठ को भेजा था। समलैंगिकता के बाद संविधान पीठ के सामने यह मामला आया है।
केंद्र ने कहा है कि याचिका खारिज करने योग्य है। आइपीसी की धारा 497 विवाह संस्था को संरक्षण और सुरक्षा प्रदान करती है। आइपीसी की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198(2) को रद करने से विवाहेतर संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर करना होगा। इससे विवाह संस्था की गरिमा और समाज का व्यापक तानाबाना नष्ट होगा। सरकार का कहना है कि इस कानून में भेदभाव चिह्नित हुआ है उस पर विचार हो रहा है। कानून में महिला को अपराध के लिए उकसाने वाली होने पर भी अपराधी मानने से छूट दी गई है। मार्च 2003 में अपराध न्याय प्रणाली में सुधार पर विचार कर रही कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इस कानून में शादीशुदा महिला से संबंध बनाने पर पुरुष को व्याभिचार का दोषी माना गया है। इसका उद्देश्य विवाह संस्था की गरिमा को संरक्षित रखना है।
समाज वैवाहिक अनिश्चितता से नफरत करता है। कमेटी ने कहा था कि ऐसे में इस बात का कोई उचित कारण नहीं है कि यही व्यवहार विवाहित पुरुष से संबंध बनाने वाली महिला के साथ होना चाहिए। सरकार ने कहा है कि मलिमथ कमेटी ने इस धारा में संशोधन कर इसे जेंडर न्यूट्रल (लैंगिक भेदभाव रहित) बनाने की सिफारिश की थी।केंद्र के हलफनामे में कहा गया है कि इन धाराओं को रद करने से विवाह संस्था को महत्व देने वाली भारतीय परंपरा और मान्यता को धक्का पहुंचेगा।
भारतीय समाज की विशिष्ट संस्कृति और ढांचे को ध्यान में रखते हुए विवाह संस्था को संरक्षित करने के लिए कानून में यह प्रावधान किया गया है। इस धारा में स्त्री-पुरुष का भेदभाव दूर कर बराबरी लाने पर उचित अथारिटी विचार कर रही है। सरकार ने कहा है कि इसमें संशोधन की मलिमथ कमेटी की सिफारिश पर विधि आयोग विचार कर रहा है। सरकार उसकी रिपोर्ट का इंतजार कर रही है। आयोग ने बताया है कि वह जल्दी ही रिपोर्ट देगा।
आइपीसी की धारा 497
कोई व्यक्ति दूसरे की पत्नी से उसके पति की सहमति के बगैर शारीरिक संबंध बनाता है और वह संबंध दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं आता है, तो वह व्यक्ति एडल्टरी का अपराध करता है। उसे पांच वर्ष तक की कैद या जुर्माने की सजा हो सकती है।
सीआरपीसी की धारा 198(2)
इस अपराध में सिर्फ पति ही शिकायत कर सकता है। पति की अनुपस्थिति में महिला की देखभाल करने वाला व्यक्ति कोर्ट की इजाजत से पति की ओर से शिकायत कर सकता है।